भारत की सबसे चहेती मिठाई है रसगुल्ला, क्या आप जानते हैं इसकी दिलचस्प कहानी?
रसगुल्ला (Rasgulla history) एक भारतीय मिठाई है लेकिन इसका इतिहास विवाद से जुड़ा रहा है। कुछ लोग इसे ओडिशा की 700 साल पुरानी मिठाई मानते हैं जिसका संबंध जगन्नाथ मंदिर से है। वहीं पश्चिम बंगाल का दावा था कि 1868 में नवीन चंद्र दास ने इसे कोलकाता में सबसे पहले बनाया था। रसगुल्ला भारत की लोकप्रिय मिठाई है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Rasgulla History: भारत की पहचान सिर्फ उसके रंग-बिरंगे त्योहारों और विविध संस्कृति से नहीं होती है, बल्कि यहां का पारंपरिक खानपान भी देश विदेश में अपनी पहचान बना चुका है। भारतीय मिठाइयों की दुनिया तो इतनी बड़ी और स्वादिष्ट है कि हर राज्य में आपको कोई न कोई खास मिठाई जरूर मिलेगी। इन्हीं में एक मिठाई है रसगुल्ला। ये सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि ये हमारी फीलिंग्स से भी जुड़ी हुई है।
चाहे शादी-ब्याह का मौका हो या कोई खुशी का मौका, रसगुल्ला हमेशा मिठास घोलने आ ही जाता है। उसका नरम और रस भरा रूप देखकर बच्चों से लेकर बड़ों तक सबका दिल खुश हो जाता है। भारत में दूध से बनने वाली मिठाइयों की तो कमी ही नहीं है। लेकिन रसगुल्ले की जगह सबसे अलग है। ये मिठाई न सिर्फ स्वाद में खास है, बल्कि लोगों की यादों में भी बसी हुई है। भारत के पारंपरिक खानपान में रसगुल्ला का अहम स्थान है।
आपको बता दें कि आज ये मिठाई सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी छाई हुई है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रसगुल्ला (Indian sweets facts) सबसे पहले कहां बना था, और इसका इतिहास क्या है? अगर नहीं, तो हम आपको इसकी दिलचस्प कहानी बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं विस्तार से -
हमेशा से रहा है विवाद
आपको बता दें कि रसगुल्ले के इतिहास (Rasgulla Facinating Story) को लेकर हमेशा से मतभेद रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि रसगुल्ला सबसे पहले ओडिशा में बनाया गया था, वहीं कुछ लोग मानते हैं कि रसगुल्ले की उत्पत्ति वेस्ट बंगाल से हुई थी। ओडिशा के लोगों का कहना है कि रसगुल्ला 700 साल पुरानी मिठाई है। इसका इतिहास पुरी के जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा है।
पुरी के जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा है कनेक्शन
माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ ने रथ यात्रा के दौरान अपनी रूठी हुई पत्नी को मनाने के लिए ये मिठाई दी थी। 11वीं सदी में इसे 'खीरा मोहन' कहा जाता था और ये एकदम सफेद होता था। इसे पुरी के जगन्नाथ मंदिर में देवी लक्ष्मी को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है।
बंगाल ने भी किया था दावा
इसके अलावा वेस्ट बंगाल यानी कि पश्चिम बंगाल, जो कि अपनी मिठाइयों के लिए मशहूर है, वो दावा करता है कि रसगुल्ला उन्हीं की देन है। बताया जाता है कि हलवाई नवीन चंद्र दास ने 1868 में कलकत्ता में रसगुल्ले का आविष्कार किया था। आज भी उनके परिवार की पीढ़ियां उनकी मिठाई की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं।
खाने में स्पंजी था रसगुल्ला
नवीन चंद्र दास ने सुतानुटी में स्थित अपनी मिठाई की दुकान पर सबसे पहले रसगुल्ला बनाना शुरू किया था। उनकी रेसिपी असली मानी जाती थी। ये लंबे समय तक चलती थी और खराब नहीं होती है। ये खाने में एकदम नरम और स्पंजी होती थी।
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ब्रिटिश कुक और रसगुल्ले का कनेक्शन
एक दिलचस्प किस्सा और भी है। बताया जाता है कि एक फेमस ब्रिटिश कुक विलियम हेरोल्ड को भारत भेजा गया था। उनकी लजीज डिशेज की वजह से एक अधिकारी ने उन्हें अपना पर्सनल कुक बना लिया। एक दिन उस अधिकारी ने विलियम से वैसा रसगुल्ला बनाने को कहा, जैसा उसने पहले कभी खाया था। लेकिन्र उस समय रेसिपीज लिखी नहीं जाती थी, इसलिए विलियम को हर घर जाकर रेसिपी पूछनी पड़ी।
रसगुल्ले के 10 डिब्बे साथ लेकर गया था ये अंग्रेज
उन्होंने पूरा गांव छान मारा, लेकिन कोई भी सही रेसिपी नहीं बता सका। काफी कोशिशों के बाद भी उन्हें सही रेसिपी नहीं मिली और वो हार मानकर भारत छोड़कर चले गए। खास तो ये थी कि जब वो भारत छोड़कर जा रहे थे तो अपने साथ रसगुल्ले के 10 डिब्बे लेकर गए थे।
जीआई टैग का फैसला
रसगुल्ले को लेकर बंगाल और ओडिशा के बीच कानूनी लड़ाई भी चल रही थी। रसगुल्ले पर कानूनी लड़ाई आखिर 14 नवंबर 2017 को खत्म हो गई। उस दौरान पश्चिम बंगाल को रसगुल्ले पर जीआई टैग मिल गया। उसके बाद 29 जुलाई 2019 को ओडिशा को रसगुल्ला के लिए जीआई का दर्जा मिला।
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