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    Rasgulla History: रसगुल्ला का इतिहास है मीठास से भरा, बेहद दिलचस्प है इस मिठाई की कहानी

    By Saloni UpadhyayEdited By: Saloni Upadhyay
    Updated: Sat, 15 Jul 2023 02:00 PM (IST)

    Rasgulla Historyइतिहासकारों के अनुसार हरसगुल्ला की उत्पत्ति पुरी में खीर मोहन के रूप में हुई थी जो बाद में रसगुल्ला बन गया। इसे पुरी के जगन्नाथ मंदिर में देवी लक्ष्मी को भोग के रूप में चढ़ाने की परंपरा है। इसके अलवा कई लोक कथाएं भी हैं जिनमें रसगुल्ला को ओडिशा का होने का दावा किया गया है। तो आइए जानें इस मिठाई का दिलचस्प इतिहास।

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    Rasgulla History: रसगुल्ला का इतिहास है काफी दिलचस्प

    नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Rasgulla History: हमारे देश में मीठा खाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। कोई भी त्योहार या पार्टी, मीठी चीजों के बिना अधूरी है। अक्सर लोग खाना खाने के बाद मीठा खाना पसंद करते हैं। ऐसे में अगर रसगुल्ला मिल जाए तो फिर बात ही अलग है। देश के लगभग सभी राज्यों में बच्चे-बड़े रसगुल्ला बहुता चाव से खाते हैं, लेकिन क्या आपको पता है, आपकी पसंदीदा मिठाई रसगुल्ले का इतिहास क्या है? तो आइए जानें...

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    इस मिठाई की उत्पति को लेकर दो राज्यों का दावा है। बहुत से लोगों का मानना है कि सबसे पहले ओडिशा में रसगुल्ला बनाया गया। तो वहीं, पश्चिम बंगाल के लोगों का कहना है कि बंगाल ने दुनिया को रसगुल्ला दिया है।

    जानकारों का कहना है कि रसगुल्ले का सबसे पहला प्रमाण महाकाव्य दांडी रामायण में है। उसमें उल्लेख है कि नीलाद्रि बिजे नामक अनुष्ठान में भगवान जगन्नाथ ने मां लक्ष्मी को रसगुल्ला अर्पित किया था। इसके अलावा  इतिहासकारों का कहना है कि रसगुल्ला की उत्पत्ति पुरी में खीर मोहन के रूप में हुई थी, जो बाद में रसगुल्ला बन गया। इसे पुरी के जगन्नाथ मंदिर में देवी लक्ष्मी को भोग के रूप में चढ़ाने की परंपरा है। इसके अलवा कई लोक कथाएं भी हैं, जिनमें रसगुल्ला को ओडिशा का होने का दावा किया गया है।

    इधर पश्चिम बंगाल का भी दावा है कि रसगुल्ला उनके राज्य की मिठाई है। कहते हैं कि स्पंजी सफेद रसगुल्ला को वर्तमान पश्चिम बंगाल में साल 1868 में कोलकाता स्थित नबीन चंद्र दास नामक हलवाई ने बनाया था। दास ने सुतानुटी (बागबाजार) में स्थित अपनी मिठाई की दुकान रसगुल्ला बनाना शुरू किया था। उनके वंशजों का कहना है कि उनकी रेसिपी असली थी। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि नबीन ने ओडिशा के रसगुल्ले में ही परिवर्तन किया था, ताकि यह जल्दी खराब न हो, लंबे समय तक चल सके।

    कुछ इतिहासकारों का दावा है कि 18वीं सदी के मध्य में बंगाली घरों में कई ओडिया रसोइये कार्यरत थे, जिन्होंने कई ओडिशी पकवानों में रसगुल्ला भी पेश किया होगा। हालांकि इसका कोई ठोस सबूत नहीं है। वहीं, कुछ का कहना है कि पुरी में आने वाले बंगाली लोग रसगुल्ला की विधि बंगाल ले गए होंगे। हालांकि इन दावों में कोई ठोस आधार नहीं है।

    ओडिशा और पश्चिम बंगाल के बीच रसगुल्ले की उत्पति को लेकर एक समय नाराजगी भी थी। फिलहाल रंग, बनावट, स्वाद, रस सामग्री और निर्माण की विधि दोनों राज्यों के रसगुल्ले का अलग-अलग होने पर 14 नवंबर 2017 को भारत की जीआई रजिस्ट्री ने पश्चिम बंगाल को बांग्लार रसगुल्ला के लिए जीआई का दर्जा दिया गया। उसके बाद 29 जुलाई 2019 को ओडिशा को ओडिशा रसगुल्ला के लिए जीआई का दर्जा मिला।

    Pic Credit: Freepik