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    Holi पर तमिलनाडु में मनाया जाता है काम-दहनम का त्योहार, प्रहलाद नहीं शिव और कामदेव से जुड़ी है इसकी कहानी

    Updated: Sat, 23 Mar 2024 04:46 PM (IST)

    देशभर में इस समय Holi की धूम देखने को मिल रही है। रंगों का यह त्योहार हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। होली रंगों का त्योहार है जिसे रंग-गुलाल और पानी के साथ मनाया जाता है। हालांकि देश के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। काम दहनल ऐसा ही एक पर्व है जिसे होली के रूप में तमिलनाडु समेत दक्षिण भारत में मनाया जाता है।

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    दक्षिण भारत में काम दहनम के तौर पर मनाते हैं होली

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। देशभर में होली (Holi 2024) की तैयारियां हो चुकी हैं। हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होली का त्योहार सेलिब्रेट किया जाता है। इसी क्रम में इस साल 25 मार्च को रंगों का यह त्योहार मनाया जाएगा। होली हिंदू धर्म के सबसे बड़े और अहम पर्वों में से एक है, जिसे देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है। हालांकि, इस त्योहार को मनाने का तरीका और इनके काम पूरे देश में अलग-अलग है।

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    वहीं, दक्षिण भारत का तमिलनाडु इन्हीं जगहों में से एक है, जहां होली के त्योहार को अलग ढंग से मनाया जाता है। यह होली के दिन कामदेव की पूजा की जाती है। यह पूजा दुनिया के लिए दिए गए उनके बलिदान की याद में की जाती है। यही वजह है कि यहां होली के त्योहार को काम दहनम के नाम से जाना जाता है।

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    सदियों से मन रहा है

    तमिलनाडु में यह त्योहार कई सदियों से मनाया जा रहा है। इस उत्सव को मनाने की यहां के लोगों की मान्यताएं और रीति-रिवाज भारत के अन्य हिस्सों की तुलना में अलग है। यह त्योहार तमिलनाडु के साथ ही आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में भी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान कर्नाटक में रति और उनके पति कामदेव की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है।

    लकड़ियां और घास को प्रतीक स्वरूप जलाते हैं

    यहां शिव और कामदेव की कथा का भी काफी महत्व है। तमिलनाडु के लोग इस कथा में गहरी आस्था रखते हैं और इसी के आधार काम दहनम का पर्व मनाया जाता है। इस त्योहार को मनाने के लिए लोग कामदेव के प्रतीक के रूप में सूखे गोबर के गोले, लकड़ियां और घास को जलाते हैं। इस गोबर के गोले को जलाने के बाद बनी राख को यहां बेहद पवित्र माना जाता है। इसी राख को लोग एक-दूसरे को लगाते हैं। यह त्योहार तमिलनाडु के नागपट्टिनम जिले में कोरुक्कई वीरतनम मंदिर और कर्नाटक के हम्पी के विरुपाक्ष मंदिर से भी जुड़ा हुआ है।

    शिव और कामदेव की पौराणिक कहानी

    काम दहनम को मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के मुताबिक, जब भगवान शिव अपनी पत्नी देवी सती की मृत्यु के बाद गहरे ध्यान में चले गए, तो सभी देवता इसकी वजह से चिंतित हो गए। इसी बीच माता पार्वती शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या कर रही थीं। ऐसे में उनके ध्यान को भंग करने के लिए प्रेम के देवता कामदेव ने शिव पर अपना पुष्प बाण चलाया था।

    बाण लगने से शिव का ध्यान भंग हो गया और इससे क्रोधित होकर उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोलकर कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया। इसके बाद सभी के मनाने के बाद में भगवान शिव, पार्वती जी से विवाह करने के लिए माने। वहीं, कामदेव के भस्म होने पर दुखी उनकी पत्नी रति के निवेदन के बाद शिवजी ने कामदेव को पुनर्जीवित किया। वह दिन होली का ही दिन था और इसी कथा के आधार पर तमिलनाडु में काम दहनम मनाया जाता है।

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    Picture Courtesy: Instagram