300 साल पुरानी है जयपुर के गुलाल गोटे की परंपरा, राजा-महाराजाओं ने शुरू किया था होली खेलने का यह तरीका
देशभर में इस समय होली की धूम देखने को मिल रही है। रंगों का यह पर्व हर साल फाल्गुन पूर्णिमा पर मनाया जाता है। इस मौके पर लोग एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर मिलकर जश्न मनाते हैं। यूं तो होली से जुड़ी देश में कई परंपराएं प्रचलित है लेकिन जयपुर का गुलाल गोटा (Gulal Gota Tradition History) इन सब में अलग है।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। होली का त्योहार लगभग आ ही गया है। यह त्योहार हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। इसे हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। रंगों का यह त्योहार हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा पर पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान लोग एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं और मिलकर जश्न मनाते हैं।
आमतौर पर होली खेलने के लिए लोग आर्टिफिशियल रंग का इस्तेमाल करते हैं, जो कई मायनों में हानिकारक होता है। आप बाजार से कितने की हर्बल कलर क्यों न खरीद लें, लेकिन इसमें मिलावट की संभावना बनी रहती है। देशभर में होली खेलने की कई सारी परंपराएं मशहूर हैं। इन्हीं में से एक जयपुर का प्रचलित गुलाल गोटा (Gulal Gota Tradition History) है, जो होली मनाने का एक अनोखा तरीका है। आइए जानते हैं इस अनूठी परंपरा के बारे में सबकुछ-
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क्या होता है गुलाल गोटा?
गुलाल गोटा लाख से बनी एक छोटी सी गेंद होती है, जिसमें अलग-अलग रंग के सूखे गुलाल को भरा जाता है। गुलाल से भरे जाने पर इसका वजन करीब 20 ग्राम होता है। होली के दिन लोग इन्हीं गेंदों को एक-दूसरे पर फेंकते हैं, जो टकराने पर टुकड़े-टुकड़े हो जाती हैं। जयपुर में होली खेलने की यह परंपरा लगभग 300 साल पुरानी (300- year old Royal Holi tradition) है।
राजसी परिवार खेलते थे इससे होली
गुलाल गोटे से होली खेलने की यह परंपरा राजा-महाराजाओं (jaipur Royal Holi celebrations) के समय से चली आ रही है। यहां कुछ मुस्लिम परिवार पीढ़ियों से इसे बनाने का काम करते आ रहे हैं। हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें स्थानीय कारीगर इन गुलाल गोटे को बनाते नजर आ रहे हैं।
देश-विदेश में मशहूर गुलाल गोटा
यूं तो गुलाल गोटे से होली खेलने की रस्म शाही परिवारों से शुरू हुई थी और तब से लेकर आज तक यहां इससे होली खेलने की परंपरा है। खास बात यह है जयपुर में तैयार होने वाले ये इन गुलाल गोटे की मांग सिर्फ देश ही नहीं, विदेश में भी काफी ज्यादा। मथुरा-वृंदावन से लेकर ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और इंग्लैंड तक लोग इसे काफी पसंद करते हैं।
कैसे होता है तैयार?
इन्हें बनाने वाले स्थानीय कारीगरों के मुताबिक गुलाल गोटे को बनाने के लिए प्राकृतिक लाख का इस्तेमाल किया जाता है। सबसे लाख को आग में तपाया जाता है और पिघले हुए इस लाख को छोटी-छोटी गेंदों का आकार दिया जाता है। इसके बाद इन गेंदों को ठंडा करने के लिए पानी में डाला जाता है। ठंडा होने के बाद इन गेंदों में अलग-अलग रंगों के गुलाल भरे जाते हैं और फिर इन्हें सील कर दिया जाता है।
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