पहले धूप से बचने का कवच था काजल, अब है आंखों का श्रृंगार! जानें कहां से हुई इसकी शुरुआत
काजल सदियों से महिलाओं के सौंदर्य का अभिन्न अंग रहा है। यह 4000 साल पहले मिस्र में शुरू हुआ जहां पुरुष और महिलाएं दोनों ही इसका इस्तेमाल करते थे। भारत में इसे सुंदरता के साथ-साथ बुरी नजर से बचाव के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। इसे अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। आइए जानते हैं काजल का सदियों (Kajal history) पुराना इतिहास।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। काजल (Traditional uses of kajal) महिलाओं की खूबसूरती में चार चांद लगाने के लिए सदियों से इस्तेमाल किया जा रहा है। सोलह शृंगार का अहम हिस्सा होने की वजह से इसका काफी महत्व माना जाता है। सिर्फ महिलाएं ही नही बच्चों और कई पुरुष भी इसे आंखों की खूबसूरती बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
वर्तमान में काजल की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए बाजार में कई तरह के केमिकल वाले काजल मिलने लगे हैं, लेकिन ऑर्गेनिक या यूं कहें कि आयुर्वेदिक तरीके से तैयार काजल की बात ही अलग होती है। आंखों की खूबसूरती निखारने के लिए आपने काजल का इस्तेमाल तो खूब किया होगा, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर सबसे पहले काजल कब और कैसे बना होगा। आइए आपके बताते हैं काजल का इतिहास (History of kajal) और घर पर ऑर्गेनिक काजल बनाने का आसान तरीका-
सबसे पहले कब और कैसे बना काजल?
ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले काजल (Ancient eye makeup benefits) आज से 4000 साल पहले बनाया गया था। इसकी उत्पत्ति मिस्र में हुई थी, जहां इसका आविष्कार किसी व्यक्ति ने नहीं किया, बल्कि यह खुद ही प्राचीन प्रथाओं से विकसित हुआ है। कहा जाता है कि मिस्र के लोगों को साज-सज्जा करना बहुत पसंद था और इसका सबूत पिछले कई साल में पाए गए सभी भित्तिचित्रों में साफ नजर आता है। यहां के लोग पिसे हुए लेड सल्फाइड और मिनरल्स से बने एक गहरे, काले पदार्थ का इस्तेमाल आंखों में लगाने के लिए करते थे।
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यहां के लोग इसे "गैलेना" आई पेंट कहते थे। यहां के पुरुष और महिलाएं दोनों खुद को सूर्य से सुरक्षा और बुरी नजर से बचाए रखने के लिए आंखों पर इस काले पदार्थ को लगाते थे। धीरे-धीरे इसका इस्तेमाल मिस्र से बाहर भी किया जाने लगा और अफ्रीका में विभिन्न जनजातियां भी इसे सजावट और सुरक्षा के लिए इस्तेमाल करने लगीं। बात करें इसके नाम की, तो काजल शब्द की उत्पत्ति अरबी शब्द "कोहल" या "कुहल" से हुई है।
भारत में काजल का इस्तेमाल
बात करें भारत में इसके इस्तेमाल की, तो काजल भारतीय सौंदर्य और सांस्कृतिक परंपराओं का एक अहम हिस्सा है। यहां लोग न सिर्फ सुंदरता के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं, बल्कि बुरी नजर और शक्तियों से बचाव के लिए भी काजल लगाते हैं। यहां काजल का इस्तेमाल 7वीं शताब्दी या उसके आसपास से शुरू हुआ।
इस दौरान महिलाएं अजनबियों की बुरी नजर से खुद को बचाने, खुद को सजाने और गर्मियों में आंखों को ठंडा रखने के लिए कपूर और चंदन मिलाकर काजल का इस्तेमाल करती थी। साथ ही यहां बच्चों की आंखों को खूबसूरत बनाने के लिए काजल लगाया जाता है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाने के लिए इसका टीका भी लगाते हैं।
भारत में किन नामों से जाना जाता है काजल?
भारत विविधताओं का देश है, जहां हर चीज के कई नाम और इस्तेमाल होते हैं। ऐसा ही कुछ काजल के साथ भी है। यहां इसे पंजाब में ‘सूरमा’, तेलुगु में ‘काटुका’, तमिल में ‘कान माई’, कन्नड़ में ‘काडिगे’ कहते हैं।
घर पर कैसे बनाएं काजल?
सामग्री
- शुद्ध घी
- 2-4 केसर के धागे
- 4-6 बादाम
- चंदन का पेस्ट
- 1 चम्मच अजवाइन के बीज
- बाती के रूप में रुई
- तांबे की प्लेट
- चम्मच
- खाली कंटेनर
- बादाम का तेल
- 1 जलता हुआ दीपक
- 2-3 छोटी कटोरी
बनाने का तरीका
- सबसे पहले रुई को चंदन के पेस्ट में डुबोएं और सूखने दें।
- अब जलते हुए दीएं में शुद्ध घी भरें और चंदन से लिपटी रुई में अजवाइन के बीज और पिसे हुए बादाम डालकर इसे रोल करके बाती बनाएं।
- अब बाती को जलाएं और कटोरियों की मदद से दीएं के ऊपर तांबे की प्लेट रखें ताकि उसपर कालिख इकट्ठा हो जाए।
- जब बाती पूरी जल जाए, तो तांबे की प्लेट को ध्यान से हटाएम और जमा हुई काली कालिख को एक खाली कंटेनर में निकाल लें।
- अब, बादाम के तेल की कुछ बूंदें लें और इसे कालिख में तब तक मिलाएं जब तक आपको मनचाहा गाढ़ापन न मिल जाए।
- आपका अपना DIY ऑर्गेनिक काजल इस्तेमाल के लिए तैयार है।
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