आज से नहीं, सदियों से बनी हुई है लहरिया साड़ियों की ठाठ, जानें कैसे बनी यह राजस्थान की पहचान
लहरिया प्रिंट (Leheriya Print) का राजस्थान से खास नाता है। इसे बनाने की शुरुआत राजस्थान में हुई थी और आज यह उसकी संस्कृति (Rajasthan Culture) का अहम हिस्सा बन चुका है। लहरिया प्रिंट में सिर्फ साड़ियां ही नहीं बल्कि और भी कई चीजें बनाई जाती हैं। आइए जानें कैसे हुई थी लहरिया प्रिंट की शुरुआत।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Leheriya Print History: भारत में ऐसी कई तरह की हस्तकलाएं हैं, जो दुनियाभर में अपनी पहचान बना चुके हैं। लहरिया प्रिंट भी एक ऐसी ही तकनीक है, जिसे सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी खूब पसंद किया जाता है। कपड़े पर धारियों से बना यह डिजाइन (Traditional Rajasthani Sarees) कैसे इतना मशहूर हो गया यह जानने के लिए आपको इसका इतिहास समझना होगा कि इस प्रिंट की शुरुआत कैसे और कहां हुई थी। आइए जानें।
क्या है लहरिया प्रिंट?
लहरिया प्रिंट भारत की एक ट्रेडिशनल टाई-डाई तकनीक है, जिसकी शुरुआत राजस्थान में हुई थी। इसलिए लहरिया प्रिंट राजस्थान की खास पहचान बन चुका है और राजस्थानी संस्कृति का एक अहम हिस्सा, जिसे अलग नहीं किया जा सकता। लहरिया का मतलब ‘लहर’ यानी ‘तरंग’ होता है। इसका नाम लहरिया इसलिए ही रखा गया, क्योंकि यह कपड़ों पर लहरदार पैटर्न होता है। राजस्थान के जयपुर और जोधपुर जैसे शहरों में इसे खासतौर से बनाया जाता है।
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कैसे हुई लहरिया प्रिंट की शुरुआत?
ऐसा माना जाता है कि सतरहवीं शताब्दी में राजस्थान के ऊंचे घराने के पुरुष इस प्रिंट की पगड़ी पहना करते थे। इसे बनाने के लिए सिर्फ कुछ खास रंगों का इस्तेमाल किया जाता था और कपड़े को नेचुरल डाई में रंगकर लहरिया प्रिंट बनाया जाता था। धीरे-धीरे महिलाओं ने भी इस प्रिंट को अपनाना शुरू किया और इस प्रिंट की साड़ियां राजस्थानी महिलाओं के पहनावे-ओढ़ावे का अहम हिस्सा बन गया।
लहरिया प्रिंट क्या दर्शाता है?
लहरिया प्रिंट की शुरुआत राजस्थान में हुई थी, जो वहां की रेत की लहरों को दर्शाता है। लहरिया हवा के कारण रेत की बनती लहरों को दर्शाती है। इससे इसका राजस्थान से गहरा नाता झलकता है।
कैसे बनता है लहरिया प्रिंट?
लहरिया दिखने में जितना साधारण दिखता लगता है, उसे बनाना उतना ही मुश्किल होता है। लहरिया प्रिंट को बनाने के लिए हाथ से कपड़ों को बांधने की तकनीक अपनाई जाती है और फिर उन्हें रंगा जाता है।
- सबसे पहले सूती, रेशम या जॉर्जेट के कपड़े को चुना जाता है और कपड़े को रातभर पानी में भिगोकर रखा जाता है और अगर जरूरत पड़े, तो गर्म पानी में उबाला भी जाता है।
- इसके बाद कपड़े को रोल किया जाता है, लेकिन कपड़े को तिरछा करके मोड़ा जाता है, ताकि डिजाइन बन सके।
- इसके बाद कपड़े पर कुछ-कुछ दूरी पर धागे बांध दिए जाते हैं।
- अब बंधे हुए कपड़ों को पंसद के रंगों में डुबोया जाता है। इसके बाद कपड़े से एक्स्ट्रा पानी को निकाला जाता है। जब कपड़ा सूख जाता है, तब इसके धागों को खोला जाता है और धागे बंधे होने की वजह से कपड़े के कुछ हिस्सों पर रंग नहीं चढ़ा होता, जिसके कारण लहरिया पैटर्न उभरते हैं।
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