Shibu Soren News: चंपई सोरेन ने दिशोम गुरु को किया याद, कहा- एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहते थे युवा
सरायकेला-खरसावां जिले से दिशोम गुरु शिबू सोरेन का गहरा नाता था। चंपई सोरेन ने उनके साथ आंदोलन में भाग लेकर पहचान बनाई। चंपई सोरेन ने झारखंड आंदोलन के दिनों को याद करते हुए बताया कि कैसे शिबू सोरेन के नेतृत्व में उन्होंने संघर्ष किया। शिबू सोरेन के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक युग का अंत है और उनके आदर्श हमेशा उनका मार्गदर्शन करते रहेंगे।

जागरण संवाददाता, सरायकेला। सरायकेला-खरसावां जिले में रहने वाले अपने लोगों के काफी करीब थे दिशोम गुरु शिबू सोरेन। शिबू सोरेन के साथ कई आंदोलनों में जुड़कर पूर्व मुख्यमंत्री व स्थानीय विधायक चंपई सोरेन ने अपनी पहचान बनाई। आज गुरुजी का साथ व तीर-धनुष के सहारे चंपई सोरेन ने अपनी पहचान बनाई।
चंपई सोरेन ने कहा कि झारखंड आंदोलन के दौरान शिबू सोरेन के साथ वे पहाड़ों, जंगलों एवं सुदूरवर्ती गांवों में भटकते रहे।
घर में उनके बच्चे व पत्नी अकेली रहती, लेकिन वे शिबू सोरेन के साथ झारखंड आन्दोलन के दौरान साथ-साथ चलते रहे। ऐसे ही शिबू सोरेन को लोग गुरु जी नहीं कहते हैं। उनके अंदर गुरुओं वाले गुण थे।
उन्होंने बताया कि गुरुजी के एक इशारे पर झारखंड के बेटे कुछ भी करने को तैयार रहते थे। महाजनी प्रथा एवं नशे के खिलाफ आदिवासियों, मूलवासियों तथा शोषित-पीड़ित जनता के संघर्ष को जिस प्रकार दिशा दी, उसे आने वाली पीढ़ियां सदैव याद रखेंगी।
शिबू सोरेन के निधन पर ही पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने अपने एक्स हेंडल पर शोक व्यक्त किया। उन्होने लिखा कि दिशोम गुरू के निधन की दुखद सूचना से शोकाकुल हूं।
मरांग बुरु दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें। उन्होंने आगे लिखा कि यह एक युग का अंत है। झारखंड आंदोलन के दौरान पहाड़ों से लेकर जंगलों फिर विधानसभा तक उनके साथ बिताए पल को वे याद कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वे हमेशा उनके दिल में रहेंगे, उनके आदर्श एवं विचार सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे। झारखंड की आम जनता के हितों को लेकर जो संघर्ष उन्होंने शुरू किया था, वह जीवनपर्यंत जारी रहेगा।
कई बार आ चुके गुरु जी सरायकेला व खरसावां
खरसावां गोली कांड के शहीदों को श्रद्धांजलि देने खरसावां आते थे। प्रत्येक विधानसभा चुनाव के समय प्रचार हेतु सरायकेला विधानसभा आते थे।
वर्ष 2004 में सरायकेला बिरसा मुंडा स्टेडियम, 2009 और 2014 में राजनगर हाई स्कूल मैदान, 2019 में सिदाडीह मैदान अंतिम बार आये थे।
गुरुजी का जाना सिर्फ एक जीवन का अंत नहीं बल्कि झारखंडियों की आवाज, आंदोलन, सोच एक विचारधारा के प्रतीक का विराम है।
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