Shibu Soren News: तीर-धनुष लेकर चलने पर लगी थी रोक, दिशोम गुरु ने ऐसे हटवाया था बैन
चाईबासा में गुवा गोलीकांड के बाद बिहार सरकार ने आदिवासियों के तीर-धनुष रखने पर रोक लगा दी थी जिसका शिबू सोरेन ने विरोध किया था। उन्होंने चाईबासा में जनसभा कर तीर-धनुष के साथ भाग लिया और सरकार पर दबाव डालकर पाबंदी हटवाई। इस घटना के बाद आदिवासियों पर हुए अत्याचार के खिलाफ शिबू सोरेन सक्रिय हुए थे।

मो. तकी, चाईबासा। कोल्हान की राजनीति में गुवा गोली कांड का बहुत अधिक महत्व है। कई नेताओं को राजनीतिक पहचान इसी गोली कांड के बाद मिली थी। गुवा गोली कांड के बाद बिहार सरकार ने आदिवासियों के पारंपरिक हथियार तीर-धनुष लेकर चलने पर पाबंदी लगा दी थी, लेकिन शिबू सोरेन ने चाईबासा में जनसभा कर पहली बार इस आदेश को नहीं मानते हुए पारंपरिक हथियार तीर-धनुष के साथ शामिल हुए थे।
इसके बाद उन्हाेंने सरकार पर दबाव बना कर तीर-धनुष पर लगाई गई पाबंदी को हटावाया था। यह बातें गुवा गोलीकांड की घटना के प्रत्यक्षदर्शी सह झारखंड आंदोलनकारी भुवनेश्वर महतो ने बताई।उन्होंने कहा कि गुवा गोली कांड से पूर्व ग्रामीण जंगलों में अपने गांवों की जमीनों पर दखल करने और वहां जंगल काटकर फिर से खेती की तैयारी कर रहे थे।
गिरफ्तारी के विरोध में शुरू हुआ आंदोलन
जंगल काटने के आरोप में ग्रामीणों पर कार्रवाई करते हुए वन विभाग अगस्त 1980 में 108 लोगों को गिरफ्तार करके गुवा थाना ले गया। झारखंड मुक्ति मोर्चा से जुड़े नेता मछुवा गागराई, सूलापुर्ती, मोरा मुंडा, देवेंद्र मांझी, बहादुर उरांव आदि इस आंदोलन के नेतृत्व में थे।
भुवनेश्वर महतो ने बताया कि सूला पुर्ती ने गिरफ्तारी के खिलाफ गुवा थाना घेराव की योजना बनाई। देवेन्द्र मांझी ने बहादुर उरांव और मुझे आंदोलन का नेतृत्व के लिए गुवा भेजा। 8 सितंबर 1980 को गुवा हवाई अड्डे में भीड़ जुटी। मांग-पत्र बनाया गया और लोग बाजार में मीटिंग के लिए आगे बढ़े।
पुलिस की गोली हुई आदिवासियों की मौत
लोगों की मांग थी कि 108 गिरफ्तार लोगों को रिहा करो, पुलिस जुल्म बंद करो, गुवा-जामदा के मजदूरों को स्थायी करो, जमीन के लिए मुआवजा दो और झारखंड प्रांत अलग करो। मांग पत्र सौंपने के बाद मीटिंग में लगभग पांच हजार लोग जुटे थे। पुलिस ने मिटिंग खत्म करने को बोल कर लाठीचार्ज करना शुरू कर दिया। भीड़ में फायरिंग की गई। जीतू सोरेन और बागी देवगम इसी गोलीकांड में मारे गए।
इसके खिलाफ आंदोलनकारियों की ओर से तीर चलने लगे। आधा घंटे तक तीर-गोली की मुठभेड़ चलती रही। इसके बाद भी 9 घायलों को अस्पताल इलाज के लिए ले जाया गया, वहां पुलिस वालों ने घायलों पर गोली चला दी, जिससे 9 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद आदिवासियों के पारंपारिक हथियार तीर-धनुष पर तत्कालीन बिहार सरकार ने पाबंदी लगा दी।
शिबू सोरेन ने संभाला आंदोलन का मोर्चा
आदिवासियों पर हुए जुल्म की जानकारी होते ही दिशोम गुरु शिबू सोरेन सक्रिय हो उठे। 10 अक्टूबर 1980 को चाईबासा में आमसभा आयोजित की गई। आमसभा को रोकने के लिए प्रशासन के द्वारा 144 धारा लगा दी गई थी, फिर भी बैरिकेड तोड़कर 10-15 हजार लोग सभा में शामिल हुए। बाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सरकार पर दबाव डालकर तीर-धनुष पर से पाबंदी हटवाई।
शिबु सोरेन ने पत्तल के प्लेट में खाया था खाना
झारखंड आंदोलनकारी रहे मो. बारिक ने पहली जनवरी 1992 को याद करते हुए कहते हैं। खरसावां गोली कांड के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने दिशोम गुरु शिबू सोरेन आये हुए थे। उस दौरान झामुमो के जिला अध्यक्ष कैप्टन कुदादा थे। जबकि मुझे जिला उपाध्यक्ष का पद दिया गया था।
गुरुजी ने खबर भेजवाई कि चाईबासा परिसदन में भोजन का इंतजाम करके रखो। जिसके बाद चाईबासा परिसदन में सभी के लिए भोजन का इंतजाम किया गया। गुरुजी के साथ चाईबासा के सांसद कृष्णा मार्डी, विधायक हेबर गुड़िया समेत अन्य लोगों के साथ दोपहर तीन बजे चाईबासा परिसदन पहुंचे।
उनको भोजन लगाने के लिए प्लेट लगाया जा रहा था, तो उन्होंने स्टील के प्लेट को देखा और कहा कि इसे हटा लो और पत्तल के प्लेट में खाना लगाओ, क्योंकि गुरुजी सादा भोजन करते थे। इसलिए सभी को स्टील के प्लेट को हटा कर पत्तल का प्लेट लगाया गया।
सभी लोग खाना खाकर कुछ देर आराम करने के बाद वापस जमशेदपुर लौट गए बारिक ने कहा कि परिसदन में कई लोगों से मिल कर उनकी समस्या की जानकारी लिये और लोगों को एकजुट होकर रहने का निर्देश दिया था।
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