रांची की 'लाइफलाइन' वेंटिलेटर पर: रूक्का प्लांट के 11 फिल्टर बेड खराब, 3 लाख की आबादी पी रही है गंदा पानी
रांची का रूक्का वाटर ट्रीटमेंट प्लांट जर्जर हालत में है, जिससे शहर की जलापूर्ति गंभीर संकट में है। 1960 के दशक में बने इस प्लांट के 11 फिल्टर बेड खराब ...और पढ़ें

रूक्का के वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के अंदर मौजूद फिल्टर बेड की तस्वीर।
जागरण संवाददाता, रांची। राजधानी रांची की शहरी जलापूर्ति व्यवस्था इन दिनों गंभीर संकट से गुजर रही है। शहर की मुख्य लाइफलाइन माने जानेवाले रूक्का वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की हालत बेहद जर्जर हो चुकी है। 1960-65 के दशक में लगभग 70 लाख रुपये की लागत से बने इस प्लांट में लगे अधिकांश उपकरण अपनी उम्र पूरी कर चुके हैं।
बार-बार खराब हो रहे उपकरणों के कारण न केवल जलापूर्ति प्रभावित हो रही है, बल्कि घरों तक पहुंचने वाले पानी की गुणवत्ता भी लगातार गिरती जा रही है। प्लांट में लगे कुल 20 फिल्टर बेड में से 11 फिल्टर बेड महीनों से खराब पड़े हैं।
इसके चलते शहर के करीब तीन लाख आबादी को साफ पानी नहीं मिल रहा। इंजीनियरों के अनुसार यह वाटर ट्रीटमेंट प्लांट करीब 50 साल की अनुमानित आयु के लिए बनाया गया था, लेकिन अब इसे बने 50 साल से भी अधिक समय बीत चुका है।
इस दौरान शहर की आबादी और क्षेत्रफल दोनों ही कई गुना बढ़ गए हैं, जबकि जलशोधन की व्यवस्था लगभग उसी पुराने ढांचे पर टिकी हुई है। वहीं शहर के कडरू, कोकर, चुटिया, कांटाटोली, बहुबाजार, लालपुर, मधुकम, पहाड़ी मंदिर, रातू रोड, पिस्का मोड, टैगोर हिल आदि क्षेत्रों में गंदा पानी पहुंचने से लोग परेशान है।
मरम्मत के सहारे चल रही जलापूर्ति
समय के साथ प्लांट को जिंदा रखने के लिए पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की ओर से बार-बार मरम्मत कर किसी तरह जलापूर्ति की जा रही है। फिलहाल प्लांट का भवन, वायरिंग सिस्टम, फिल्टर बेड, पाइपलाइन, मोटर, संप और पंप हाउस सहित कई अहम हिस्से बार-बार जवाब दे रहे हैं। इसका सीधा असर शहरी जलापूर्ति पर पड़ रहा है।
रूक्का वाटर ट्रीटमेंट प्लांट को शहरी जलापूर्ति की रीढ़ माना जाता है। शहर के करीब 70 प्रतिशत हिस्से में यहीं से पानी की आपूर्ति होती है। लगभग 8 लाख लोग इस प्लांट से मिलने वाले पानी पर निर्भर हैं। इसमें आर्मी कैंट, सरकारी संस्थान, अस्पताल और अन्य महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान भी शामिल हैं। प्लांट की क्षमता घटने और तकनीकी खामियों के कारण कई इलाकों में जलापूर्ति का प्रेशर बेहद कम हो गया है।
नतीजतन शहर के अनेक हिस्सों में नलों तक पानी पहुंच ही नहीं पा रहा। सबसे अधिक परेशानी ड्राई जोन में रहने वाले लोगों को हो रही है, जहां लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। पहले जहां रूक्का प्लांट से प्रतिदिन लगभग 200 एमजीडी (मिलियन गैलन प्रति दिन) पानी की सप्लाई पूरे शहर में होती थी, वहीं अब यह घटकर करीब 100 से 120 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रति दिन) रह गई है।
इतनी कम सप्लाई में भी पानी की गुणवत्ता संतोषजनक नहीं है। पुराने उपकरणों और फिल्टर सिस्टम के कारण घरों तक पहुंचने वाले पानी में मिट्टी और बालू के कण मिल रहे हैं। कई इलाकों में पानी से तेज क्लोरीन की गंध आ रही है, जिससे लोग इसे पीने के लिए इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।
घरेलू काम तक सीमित हुआ सप्लाई पानी
हालात यह हैं कि शहर के हजारों परिवार मजबूरी में सप्लाई के पानी का उपयोग केवल घरेलू कामों जैसे बर्तन धोने, कपड़े धोने और नहाने तक सीमित कर रहे हैं। पीने के लिए लोगों को बोतलबंद पानी या अन्य वैकल्पिक साधनों पर निर्भर होना पड़ रहा है।
यह स्थिति तब है जब विभाग पुराने प्लांट की मरम्मत पर अब तक करोड़ों रुपये खर्च कर चुका है। आरोप यह भी लग रहे हैं कि विभागीय अधिकारियों और संवेदकों की मिलीभगत से बार-बार मरम्मत के नाम पर टेंडर निकाले जाते हैं और लीपापोती कर बिल बना दिया जाता है, जबकि स्थायी समाधान की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे।
नया प्लांट बन रहा, पर प्यास नहीं बुझेगी जल्द
शहर की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए झारखंड अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कंपनी (जुड़को) की ओर से शहरी जलापूर्ति योजना के तहत रूक्का में ही नया वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाया जा रहा है। इस पूरी योजना पर करीब 506 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं, जिसमें से लगभग 69 करोड़ रुपये केवल प्लांट के निर्माण पर हैं। नए प्लांट से प्रतिदिन 244 एमएलडी पानी की आपूर्ति का लक्ष्य रखा गया है।
अधिकारियों के अनुसार नया प्लांट अगले छह महीनों में बनकर तैयार हो जाएगा। हालांकि, इसके बावजूद शहरवासियों की प्यास तुरंत बुझने की संभावना कम है। कारण यह है कि प्लांट से जुड़ी पाइपलाइन का काम अभी अधूरा है और कई इलाकों में कनेक्शन नहीं पहुंच पाए हैं।
नई शहरी जलापूर्ति योजना के तहत 61 हजार घरों को कनेक्शन देना है। फिलहाल पहले चरण में एक से दस वार्ड के लोगों को नए प्लांट से जलापूर्ति किए जाने की योजना है।
लोगों की पीड़ा
चुटिया निवासी कुसुम रंजीता सिंह मुंडा का कहना है कि उन्होंने सप्लाई पानी का कनेक्शन ले रखा है, लेकिन पानी पीने लायक नहीं है। पानी में बालू के कण रहते हैं, इसलिए घर में पीने के लिए बोतलबंद पानी का ही इस्तेमाल करना पड़ता है।
वहीं बरियातू निवासी सुनील कुमार बताते हैं कि पानी कब आएगा, इसका कोई तय समय नहीं है। कभी रात दो बजे तो कभी शाम चार बजे पानी आता है। पानी का रंग पीला होता है और उसमें काफी गंदगी रहती है।
लोगों को शुद्ध पानी नए प्लांट के चालू होने के बाद ही मिल पाएगा। शहर की पाइपलाइन और उपकरण काफी पुराने हो चुके हैं, इसी कारण घरों तक पहुंचने वाले पानी में मिट्टी के कण मिल रहे हैं। उनके अनुसार प्लांट स्तर पर पानी पूरी तरह से पीने योग्य होता है, लेकिन पुरानी व्यवस्था के कारण समस्या पैदा हो रही है।
- चंद्रशेखर कुमार, शहरी कार्यपालक अभियंता, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग
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