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    झारखंड का दर्दनाक 2025: पांच पॉइंट्स में जानिए राज्य को क्यों पड़े भारी झटके

    Updated: Fri, 26 Dec 2025 02:44 PM (IST)

    साल 2025 झारखंड के लिए प्राकृतिक आपदाओं, खनन हादसों, राजनीतिक उथल-पुथल और आर्थिक पिछड़ेपन के कारण चुनौतीपूर्ण रहा। दशक की सबसे भयानक मानसून ने 458 जान ...और पढ़ें

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    झारखंड के लिए 2026 बेहतर होगा।

    डिजिटल डेस्क, रांची। साल 2025 झारखंड के लिए कई मायनों में चुनौतीपूर्ण रहा। प्राकृतिक आपदाओं से लेकर खनन हादसों, राजनीतिक विवादों और आर्थिक पिछड़ेपन तक, राज्य ने कई झटके झेले जो साल की बुरी यादों के रूप में दर्ज हो गए।

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    जहां एक तरफ मौसम की मार ने सैकड़ों जानें लीं, वहीं खनन क्षेत्र की लापरवाही और राजनीतिक अस्थिरता ने राज्य की जनता को परेशान किया। इस रिपोर्ट में हम साल की प्रमुख नकारात्मक घटनाओं पर नजर डालते हैं, जो झारखंड के विकास पथ पर बाधा बनीं।

    1. दशक की सबसे भयानक मानसून: 458 मौतें व तबाही

    साल 2025 में झारखंड ने दशक की सबसे भारी मानसून वर्षा का सामना किया, जो जलवायु परिवर्तन से जुड़ी मानी जा रही है। जून से सितंबर तक 1,199.5 मिलीमीटर बारिश हुई, जो सामान्य से 18% अधिक थी।

    इसकी वजह से बाढ़, भूस्खलन, बिजली गिरने और घर ढहने जैसी घटनाओं में 458 लोगों की मौत हुई। इनमें 186 मौतें बिजली गिरने से, 178 डूबने से और बाकी बाढ़ व अन्य आपदाओं से हुईं। 467 घर पूरी तरह नष्ट हो गए, जबकि 8,000 से अधिक आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए।

    फसलें 2,390 हेक्टेयर में बर्बाद हुईं, और साहिबगंज जिले में गंगा के बढ़ते जलस्तर से करीब 20,000 लोग विस्थापित हुए। रांची, गुमला, लोहरदगा और सिमडेगा जैसे जिलों में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ।

    विशेषज्ञों ने बंगाल की खाड़ी में बढ़ते समुद्री तापमान को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया, जो राज्य के आदिवासी समुदायों को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहा है।

     2. खनन हादसों की सिलसिला जारी: दर्जनों मौतें

    झारखंड की अर्थव्यवस्था खनन पर निर्भर है, लेकिन 2025 में यह क्षेत्र मौत का पर्याय बन गया। साल भर में कई बड़े हादसे हुए, जिनमें दर्जनों लोग मारे गए। जुलाई में रामगढ़ जिले में एक कोयला खदान का हिस्सा ढहने से 4 लोग मारे गए और कई फंसे रहे।

    सितंबर में धनबाद के बीसीसीएल क्षेत्र में भूस्खलन से एक सर्विस वैन गहरी खाई में गिर गई, जिसमें 7 लोगों की मौत हो गई। अक्टूबर में धनबाद में ही एक कोयला खदान की दीवार ढहने से एक ट्रक ड्राइवर की मौत हुई और दो घायल हुए।

    दिसंबर में हजारीबाग में ओपनकास्ट कोयला खदान की दीवार गिरने से दो मजदूर मारे गए, जबकि एक अन्य घटना में तीन अवैध सोने की खदान मजदूर शाफ्ट ढहने से मर गए।

    ये हादसे अवैध खनन, सुरक्षा मानकों की अनदेखी और पुरानी खदानों की वजह से हुए, जो राज्य के मजदूरों के लिए बड़ा झटका साबित हुए।

    3. राजनीतिक उथल-पुथल और दिशोम गुरु का निधन

    राजनी तिक मोर्चे पर भी 2025 अशांत रहा। झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के संस्थापक और दिग्गज आदिवासी नेता शिबू सोरेन का अगस्त में निधन राज्य के लिए बड़ा सदमा था।

    उनकी विरासत कानूनी विवादों से प्रभावित रही, लेकिन उनके जाने से आदिवासी आंदोलन को झटका लगा। इसके अलावा, बीजेपी ने हेमंत सोरेन सरकार पर झूठे वादों, विफलताओं और धोखाधड़ी के आरोप लगाते हुए चार्जशीट जारी की।

    डीजीपी अनुराग गुप्ता के कार्यकाल को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव, स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी का पासपोर्ट विवाद, और सांप्रदायिक तनाव ने राज्य की शांति को प्रभावित किया। राम नवमी के दौरान सांप्रदायिक हिंसा और आदिवासी-मुस्लिम तनाव ने स्थिति को और बिगाड़ा।

    4. आर्थिक पिछड़ापन और आदिवासी विस्थापन

    25 साल पूरे होने पर झारखंड की आर्थिक स्थिति ने निराश किया। प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत के मुकाबले घटकर 56.82% रह गई, जबकि बहुआयामी गरीबी दर 28.81% पर बनी रही - बिहार के बाद देश में सबसे ऊंची।

    आदिवासी जिलों में गरीबी और साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से नीचे रही। कोयला खनन और विकास परियोजनाओं से आदिवासी विस्थापन बढ़ा, जिससे हजारों लोग अपनी पैतृक भूमि छोड़ने को मजबूर हुए।

    यूएन ने टाइगर रिजर्व में विस्थापन की चेतावनी दी, जबकि कुर्मी समुदाय की एसटी स्टेटस की मांग पर आदिवासियों का विरोध प्रदर्शन हुआ। बाल श्रम और प्रवासन जैसी समस्याएं भी आदिवासी समुदायों को प्रभावित करती रहीं।

    5. सड़क हादसों में बढ़ोतरी: जुलाई में रिकॉर्ड मौतें

    सड़क सुरक्षा भी बड़ी समस्या बनी। जुलाई में हादसों में मौतों की संख्या बढ़ी, जिसमें रांची में 39, हजारीबाग में 28 और सरायकेला में कई मौतें शामिल थीं। भारी बारिश और खराब सड़कों ने स्थिति को और खराब किया।

    साल 2025 में नक्सलवाद में कमी आई और सुरक्षा बलों ने 32 नक्सलियों को मार गिराया, लेकिन पिछले 25 सालों में सुरक्षा बलों की भारी क्षति एक दर्दनाक याद रही।

    कुल मिलाकर, ये घटनाएं झारखंड के लिए सबक हैं कि विकास के साथ-साथ सुरक्षा, पर्यावरण और सामाजिक न्याय पर ध्यान देना जरूरी है। राज्य सरकार ने राहत पैकेज और सुधारों का वादा किया है, लेकिन 2026 में इनकी अमल कितना होगा, यह देखना बाकी है।