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    ‘जानाम आयोय रेंगेज रेहं…’, जमशेदपुर में भावुक हुईं राष्ट्रपति मुर्मू, गीत गुनगुनाया तो गूंज उठीं तालियां

    Updated: Mon, 29 Dec 2025 06:52 PM (IST)

    जमशेदपुर के करनडीह में ओल चिकी लिपि शताब्दी समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भावुक हो गईं। उन्होंने संताली और ओड़िया साहित्य की पंक्तियां गाकर मात ...और पढ़ें

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    सोमवार को जमशेदपुर में लोगों को संबोधित करतीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू।

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। जमशेदपुर के करनडीह में आयोजित ओल चिकी लिपि के शताब्दी समारोह में सोमवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का भावुक और मानवीय स्वरूप देखने को मिला। अपने संबोधन के दौरान जब राष्ट्रपति ने संताली और ओड़िया साहित्य की पंक्तियों को गुनगुनाया, तो पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। 
     
    राष्ट्रपति ने गीतों और साहित्य के माध्यम से मातृभाषा, लिपि और सांस्कृतिक पहचान के महत्व को बेहद सरल लेकिन गहरे शब्दों में प्रस्तुत किया। राष्ट्रपति ने ओल चिकी लिपि के जनक गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू की लिखी संताली पंक्तियों को लयबद्ध स्वर में प्रस्तुत किया-

    ‘जानाम आयोय रेंगेज रेहं, उनी गेय हा:रा-हा।
    जानाम रड़दो निधान रेहं, अना तेगे मारांग-आ।’

    इन पंक्तियों का भावार्थ समझाते हुए उन्होंने कहा कि जैसे एक गरीब मां अपने बच्चे को कठिन परिस्थितियों में भी पालकर बड़ा करती है, वैसे ही हमारी मातृभाषा चाहे कितनी भी सीमित क्यों न हो, हमें जीवन में आगे बढ़ने का मार्ग दिखाती है। मातृभाषा ही व्यक्ति को पहचान और आत्मबल देती है।

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    लिपि से ही जुड़ी है समाज की एकता 

    राष्ट्रपति ने गुरु गोमके की एक और पंक्ति साझा करते हुए समाज को चेताया कि यदि हम अपनी लिपि और शिक्षा की उपेक्षा करेंगे, तो धीरे-धीरे अपनी पहचान खो बैठेंगे। उन्होंने कहा कि लिपि के बिखरने का अर्थ है समाज का बिखरना। यह केवल भाषा का सवाल नहीं, बल्कि अस्तित्व का प्रश्न है।

    अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने ओल चिकी लिपि को समाज को जोड़ने वाली रस्सी बताया। उन्होंने कहा कि लिपि और शिक्षा वह शक्ति है, जो समाज को अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान और चेतना के प्रकाश की ओर ले जाती है। यह रस्सी समाज को एकता के सूत्र में बांधे रखती है।

    ओड़िया कविता और अटल जी को नमन 

    राष्ट्रपति ने ओड़िया कविता की पंक्ति- ‘आऊ जेते भाषा पारूछ शिख, निज मातृभाषा महत रख’- का उल्लेख करते हुए कहा कि चाहे जितनी भाषाएं सीखें, मातृभाषा का सम्मान सर्वोपरि होना चाहिए। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी नमन किया और कहा कि उनके प्रयासों से ही वर्ष 2003 में संताली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिला।

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