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    Ol chiki संताल समाज की आत्मा, इसके विस्तार से मजबूत होगी सांस्कृतिक अस्मिता: हेमंत सोरेन

    Updated: Mon, 29 Dec 2025 01:57 PM (IST)

    मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जमशेदपुर में ओल चिकी लिपि के शताब्दी समारोह में संताली लिपि को संताल समाज की अस्मिता और सांस्कृतिक पहचान का आधार बताया। उन् ...और पढ़ें

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    राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पुष्प गुच्छ देकर स्वागत करते मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन।

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संताली लिपि ओल चिकी को संताल समाज की अस्मिता और सांस्कृतिक पहचान का आधार बताते हुए कहा कि जिस समाज की अपनी भाषा और लिपि नहीं होती, उसकी पहचान मिटने में देर नहीं लगती। वे सोमवार को जमशेदपुर के करनडीह में आयोजित ओल चिकी लिपि के शताब्दी समारोह को संबोधित कर रहे थे। 
     
    इस अवसर पर उन्होंने संताली भाषा की शक्ति, उसके ऐतिहासिक संघर्ष और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। मुख्यमंत्री ने संताली लिपि के जनक पंडित रघुनाथ मुर्मू के योगदान को स्मरण करते हुए कहा कि ओल चिकी केवल अक्षरों का समूह नहीं है, बल्कि यह संताल समाज की आत्मा, चेतना और स्वाभिमान का प्रतीक है। 
     
    उन्होंने कहा कि सौ वर्ष पूर्व बोया गया यह बीज आज एक सशक्त सांस्कृतिक वृक्ष बन चुका है, जिसकी जड़ें गहरी और शाखाएं व्यापक हैं। आज जब कई भाषाएं और बोलियां विलुप्ति की कगार पर हैं, तब संताल समाज ने अपनी भाषा और लिपि को सहेज कर एक मिसाल कायम की है।


    भाषा ही समाज की सबसे बड़ी शक्ति 

    मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि भाषा किसी भी समाज की सबसे बड़ी ताकत होती है। यह समाज को एक सूत्र में बांधती है और उसकी पहचान को स्थायित्व देती है। 
     
    उन्होंने कहा कि ओल चिकी लिपि ने संताल समाज को न केवल सांस्कृतिक रूप से एकजुट किया है, बल्कि उसे वैश्विक पहचान भी दिलाई है। संताली भाषा का भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होना इसी संघर्ष और समर्पण का परिणाम है।

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    जमशेदपुर में आयोजित कार्यक्रम में पारंपरिक वस्त्र में मौजूद आदिवासी समुदाय के लोग।

    शिक्षा और प्रशासन में बढ़ेगा ओल चिकी का उपयोग 

    मुख्यमंत्री ने संताली भाषा और ओल चिकी लिपि के विस्तार के लिए राज्य सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने कहा कि स्कूलों में संताली भाषा की पढ़ाई को और अधिक प्रभावी बनाया जाएगा, ताकि नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा और लिपि में पढ़ने-लिखने में सक्षम हो सके। 
     
    उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया कि सरकारी कामकाज, सूचनाओं और जनसंपर्क से जुड़े माध्यमों में जहां संभव हो, ओल चिकी का उपयोग बढ़ाया जाए। इससे विशेषकर ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों के लोगों का शासन-प्रशासन से जुड़ाव और मजबूत होगा।


    रघुनाथ मुर्मू के संघर्षों को नमन 

    मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 1925 में सीमित संसाधनों और कठिन परिस्थितियों के बावजूद पंडित रघुनाथ मुर्मू ने ओल चिकी जैसी वैज्ञानिक और व्यवस्थित लिपि का निर्माण किया। यह उनके अद्भुत दूरदर्शी सोच और समाज के प्रति समर्पण का प्रमाण है। 
     
    उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे अपनी भाषा, संस्कृति और लिपि पर गर्व करें। इसे आगे बढ़ाने में आज की युवापीढ़ी सक्रिय भूमिका निभाएं।


    सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का संकल्प 

    मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड की असली पहचान उसकी आदिवासी संस्कृति और समृद्ध भाषाई विरासत में निहित है। उन्होंने टाटा स्टील फाउंडेशन समेत विभिन्न संस्थाओं द्वारा भाषा और संस्कृति संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। 
     
    कार्यक्रम के अंत में उन्होंने संकल्प लिया कि राज्य सरकार झारखंड की सभी क्षेत्रीय और जनजातीय भाषाओं को उनका उचित सम्मान और अधिकार दिलाने के लिए निरंतर कार्य करती रहेगी। 

    समारोह में उमड़े जनसैलाब ने मुख्यमंत्री के विचारों का स्वागत पारंपरिक वाद्ययंत्रों की गूंज और तालियों की गड़गड़ाहट के साथ किया, जिससे पूरा वातावरण सांस्कृतिक गर्व से सराबोर नजर आया।