कड़ी सुरक्षा के बीच जमशेदपुर पहुंचीं President द्रौपदी मुर्मू, 45 गाड़ियों के काफिले के साथ हुईं रवाना
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मंगलवार को जमशेदपुर पहुंचीं। सोनारी एयरपोर्ट पर उपायुक्त ने उनका स्वागत किया। सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए थे। 45 गाड़ियो ...और पढ़ें

करनडीह स्थित जाहेर गाड़ में पूजा-अर्चना करतीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर । देश की राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मू मंगलवार को पूर्वी सिंहभूम जिला के दौरे पर जमशेदपुर पहुंचीं। वे सेना के विशेष विमान से सोनारी एयरपोर्ट पहुंचीं, जहां उपायुक्त ने पुष्पगुच्छ भेंट कर जिला प्रशासन की ओर से उनका औपचारिक स्वागत किया।
राष्ट्रपति के आगमन को लेकर सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए थे। सोनारी एयरपोर्ट रोड पर राष्ट्रपति के पहुंचने से पहले ही आम राहगीरों की आवाजाही रोक दी गई थी।
राष्ट्रपति का काफिला लगभग 45 गाड़ियों का था, जो सोनारी एयरपोर्ट से रवाना हुआ। प्रोटोकॉल के तहत राष्ट्रपति के एयरपोर्ट के पिछले गेट से निकलने की संभावना थी, हालांकि मुख्य गेट और आसपास की सड़कों पर भी लोगों को खड़े होने की अनुमति नहीं दी गई।
ड्यूटी पर जाने वाले कई लोगों को वैकल्पिक मार्गों से भेजा गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू करनडीह स्थित जाहेर गाड़ में पूजा-अर्चना कीं। उनके दौरे को लेकर पूरे क्षेत्र में प्रशासन सतर्क नजर आया।
इस दौरान वाहनों के काफिले के साथ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्यपाल संतोष गंगवार भी थे। उन्होंने भी जाहेरगाड़ में पूजा अर्चना की।
ओल चिकी के अक्षरों में बसती है हमारी आत्मा
संताली भाषा की अपनी लिपि 'ओल चिकी' के 100 वर्ष पूरे होने के ऐतिहासिक अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश को अपनी जड़ों से जुड़ने का संदेश दिया। जमशेदपुर के करनडीह में आयोजित भव्य शताब्दी समारोह में उन्होंने कहा कि लिपि केवल लिखने का माध्यम नहीं, बल्कि किसी भी समाज की आत्मा और उसकी अस्मिता का प्रतीक होती है।
उन्होंने पंडित रघुनाथ मुर्मू के संघर्षों को याद करते हुए कहा कि उनके विजन ने संताल समाज को विश्व पटल पर एक नई पहचान दी है। समारोह को संबोधित करते हुए द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि 1925 में जब पंडित रघुनाथ मुर्मू ने इस लिपि का आविष्कार किया था, तब उन्होंने आने वाली कई शताब्दियों का भविष्य लिख दिया था।
गुरु गोमके को दी भावभीनी श्रद्धांजलि
उन्होंने गुरु गोमके के योगदान को अतुलनीय बताते हुए कहा कि संताली समाज आज अगर गर्व के साथ सिर उठाकर खड़ा है, तो उसमें ओल चिकी लिपि का सबसे बड़ा योगदान है। राष्ट्रपति ने भावुक होते हुए कहा कि एक आदिवासी समाज की बेटी होने के नाते इस गौरवशाली पल का हिस्सा बनना उनके लिए व्यक्तिगत रूप से भी अत्यंत सुखद है।
राष्ट्रपति ने नई शिक्षा नीति का उल्लेख करते हुए कहा कि बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा देना उनकी प्रतिभा को निखारने का सबसे सशक्त जरिया है। उन्होंने आह्वान किया कि संताली समाज अपनी लिपि का उपयोग न केवल बोलचाल में, बल्कि आधुनिक ज्ञान-विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भी करे।
मातृभाषा में शिक्षा पर दिया जोर
उन्होंने कहा कि जब कोई भाषा लिपिबद्ध होती है, तो उसका साहित्य और संस्कृति अमर हो जाती है। अपने संबोधन में द्रौपदी मुर्मू ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि ओल चिकी अब केवल दीवारों या कागजों तक सीमित नहीं है, बल्कि कंप्यूटर और मोबाइल के कीबोर्ड पर भी अपनी जगह बना चुकी है।
उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे अपनी सांस्कृतिक विरासत को डिजिटल दुनिया में और अधिक मजबूती से स्थापित करें। राष्ट्रपति ने कहा कि हमें गर्व होना चाहिए कि हमारी लिपि प्रकृति की ध्वनियों से निकली है, जो पर्यावरण और मनुष्य के गहरे संबंधों को दर्शाती है।
अतुलनीय जनसैलाब और सांस्कृतिक छटा
शताब्दी समारोह के दौरान पूरा करनडीह क्षेत्र संताली गौरव के रंग में रंगा नजर आया। पारंपरिक वाद्ययंत्रों की थाप पर हजारों की संख्या में जुटे लोगों ने अपनी राष्ट्रपति का स्वागत किया। इस दौरान राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी मौजूद रहे। कार्यक्रम में ओल चिकी के प्रचार-प्रसार में लगे विद्वानों और साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति के इस दौरे ने न केवल संताल समुदाय बल्कि पूरे जनजातीय भारत के लिए भाषाई और सांस्कृतिक स्वाभिमान का एक नया अध्याय लिख दिया है।




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