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    दुमका की बेटी ने नाम किया रोशन, आदिम जनजाति की बबीता बनी JPSC परीक्षा पास करने वाली पहली सदस्य

    Updated: Fri, 08 Aug 2025 07:53 PM (IST)

    दुमका की बबीता सिंह ने झारखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर अपने आदिम जनजाति समुदाय में इतिहास रचा है। विलुप्त प्राय माल पहाड़िया समुदाय से आने वाली बबीता की सफलता शिक्षा की मशाल है। अशिक्षा और रूढ़िवादी बेड़ियों से जकड़े समाज के लिए वह प्रेरणा बनी हैं। बबीता शिक्षा और स्वास्थ्य के महत्व को वंचितों तक पहुंचाना चाहती हैं। उनके पिता ने उनका पूरा सहयोग दिया।

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    दुमका आदिम जनजाति की बबीता बनी JPSC परीक्षा पास करने वाली पहली सदस्य।

    राजीव, दुमका। आजादी के इतने वर्षों बाद भी आदिम जनजाति समुदाय अपेक्षित प्रगति के लिए जद्दोजहद कर रहा। अशिक्षा की बेड़ियों में जकड़े इस समाज में आज भी कंद मूल खाकर गुजारा करने, पहाड़ों-पेड़ों पर बसने, जड़ी-बूटियों से इलाज करने का चलन है।

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    इस विपरीत परिस्थिति में एक बेटी ने उम्‍मीद की मशाल जलाई है। वो मशाल जो समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे और शिक्षा की रोशनी से घना अंधेरा कैसे छंटेगा इसका महत्‍व समझे।

    बेटी का नाम है बबीता सिंह। बबीता ने हाल ही में झारखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास की है। यह कामयाबी हासिल करने वाली वह समाज की पहली सदस्‍य हैं।

    वह जिस माल पहाड़िया आदिम जनजाति समुदाय से आती हैं उसे सरकार ने विलुप्त प्राय की श्रेणी में रखा है। शिक्षा की दर महज छह से आठ प्रतिशत है। ऐसी परिस्थितियों में यह कामयाबी खास है।

    बबीता रोल माडल के तौर पर देखी जा रहीं। आदिम जनजाति पहाड़िया समाज के रामजीवन आहड़ी कहते हैं, बबीता की सफलता आदिम जनजाति समुदाय के लिए आशा की एक किरण है। समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े युवक-युवतियों को इससे नई ऊर्जा मिलेगी यह तय है।

    बेटी का संकल्प, पिता ने दिया साथ

    बबीता के पिता बिंदुलाल सिंह और मां रेखा देवी पहाड़िया समाज की रुढ़ीवादी व्यवस्थाओं की बेड़ी से बांधने के बजाए उसके लिए सबसे बड़े मददगार बने हैं।

    दुमका के एक प्राइवेट स्कूल के कर्मचारी बिंदुलाल सिंह मूलत: मसलिया प्रखंड के मणिपुर गांव के रहने वाले हैं, लेकिन बच्चों को शिक्षा देने की ललक से वह अपने घर से निकल कर दुमका के आसनसोल में आकर बस गए।

    परीक्षा पास करने की जानकारी मिलनेे के बाद बबीता को मिठाई खिलाते माता-पिता।

    दो पुत्र और दो पुत्रियों के पढ़ाने के लिए दिन-रात संघर्ष किया। हालांकि बबीता की उम्र जब 18 की हुई तो कहा, शादी कर लो। समाज में दूसरे परिवारों का उदाहरण देते हुए स्‍वजनों ने कहा, हमें ताना दिया जा रहा है।

    लोग कह रहे, क्‍या होगा पढ़कर। लेकिन, बबीता संकल्‍प की पक्‍की थी। कहा, पापा अभी मुझे शादी नहीं करनी। पढ़ना है, अपने पांव पर खड़ा होकर समाज के लिए कुछ करना है। पिता और परिवार ने साथ दिया तो बबीता ने साबित किया कि लगन सच्ची हो तो परिणाम मिलता ही है।

    शिक्षा की मशाल जागृत करना मकसद

    बबीता कहती हैं, सफलता के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। सामाजिक दबाव के साथ-साथ आर्थिक परिस्थितियां भी पढ़ाई में रोड़ा बन रही थीं, लेकिन सबसे पार पाया।

    जेपीएससी परीक्षा में सफलता हासिल करने के बाद बबीता को सम्मानित करते दुमका के उपायुक्त अभिजीत सिन्हा।

    इंटर पास करने के बाद बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया फिर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों में जुट गईं। बबीता कहती हैं, मेरी लड़ाई सिर्फ मेरी नहीं है। 377वीं रैंक मिली है।

    प्रशासनिक अधिकारी का दायित्व मिल जाएगा। मेरा सपना है कि मैं अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य के महत्व को वंचित समाज तक पहुंचा पाऊं।

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