Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Shibu Soren: जब इंदिरा ने कहा 'गुरुजी', भावुक हो गए थे शिबू सोरेन; आदिवासियों को दिलाया हक

    Updated: Mon, 04 Aug 2025 05:38 PM (IST)

    दिशोम गुरु शिबू सोरेन अब नहीं रहे पर महाजनी प्रथा के खिलाफ उनका आंदोलन अविस्मरणीय है। वे साहसी और दयालु थे इंदिरा गांधी भी उन्हें सम्मान देती थीं। 1980 में ईसीएल परियोजना में 2500 आदिवासियों की जमीन ली गई पर नौकरी सिर्फ 800 को मिल रही थी। सोरेन ने आंदोलन किया इंदिरा गांधी ने हस्तक्षेप कर सभी को नौकरी दिलवाई।

    Hero Image
    संशोधित : इंदिरा गांधी ने जब गुरुजी कहा था तो भावुक हो गए थे शिबू सोरेन

    रामजी यादव, मैथन (धनबाद)। आज भले ही पूर्व मुख्यमंत्री दिशोम गुरु शिबू सोरेन नहीं रहे, लेकिन महाजनी प्रथा के खिलाफ उनके उग्र आंदोलन को हमेशा याद किया जाएगा। वे कट्टर आंदोलनकारी के साथ-साथ साहसी व दयालू भी थे। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी भी उन्हें काफी मानती थी और गुरुजी कहकर संबोधन करती थी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    हम बात कर रहे हैं वर्ष 1980 की। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। उसी दौरान ईसीएल का राजमहल प्रोजेक्ट शुरू हुआ था। प्रोजेक्ट के आसपास में रहने वाले करीब 2500 आदिवासियों व गैर आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण कर लिया गया था, मगर जब नौकरी देने की बात हुई तो तत्कालीन केंद्रीय कोयला मंत्री अबू बरकत अताउर गनी खान चौधरी ने सिर्फ 800 लोगों को ही नौकरी देने को तैयार थे।

    जब इस बात की जानकारी शिबू सोरेन को हुई, तो उन्होंने हजारों लोगों को लेकर उग्र आंदोलन किया और प्रोजेक्ट का काम रोक दिया। शिबू सोरेन का साफ कहना था कि 2500 लोगों की जमीन ली गई है तो सभी को नौकरी मिले। मगर मंत्री गनी खान चौधरी इसके लिए तैयार नहीं थे।

    इंदिरा गांधी ने गुरुजी कहकर बुलाया

    इसके बाद शिबू सोरेन ने कांग्रेस के युवा नेता संजय गांधी के माध्यम से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिले। चूंकि इंदिरा गांधी पूर्व से ही शिबू सोरेन को जानती थीं, इसलिए वह मिलने को तैयार हो गईं। शिबू सोरेन जब पहली बार इंदिरा गांधी से मिले तो इंदिरा जी ने उन्हें गुरु जी कहकर अभिवादन किया।

    इस पर शिबू सोरेन काफी भावुक हो गए और उनसे कहा कि कम से कम आप तो मुझे गुरुजी मत बोलिए। इसके बाद दोनों के बीच बात शुरु हुई और इंदिरा गांधी ने तुरंत शिबू सोरेन के फाइल पर हस्ताक्षर कर राजमहल प्रोजेक्ट में 2500 लोगों को नौकरी देने की अनुशंसा कर दी।

    इंदिरा गांधी से बढ़ीं करीबियां

    इसके बाद शिबू सोरेन इंदिरा गांधी के काफी गरीबी हो गए थे। उन्होंने इंदिरा गांधी के कहने पर ही वर्ष 1980 में पहली बार कांग्रेस के साथ गठबंधन कर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़े और इसमें झामुमो ने संताल परगना क्षेत्र के 18 सीटों में सात पर जीत दर्ज की थी। झामुमो के कई प्रत्याशी काफी कम अंतर से हारे थे।

    धान काट लेने के एवज में पढ़ाया व सांसद भी बनाया

    वर्ष 1973 से 75 के बीच शिबू सोरेन ने धनबाद जिले के टुंडी से महाजनी प्रथा के खिलाफ उग्र आंदोलन शुरू किया था। इस दौरान शराब पिलाकर आदिवासियों की जमीन हड़पने वाले सूदखोरों के खिलाफ धनकटनी आंदोलन शुरू हुआ था। इसका नेतृत्व शिबू सोरेन कर रहे थे।

    वह आदिवासियों को टुंडी के पोखरिया आश्रम में एकजुट कर रात में पढ़ाते थे। उन्हें समझाते थे कि शिक्षा के बिना आदिवासियों का विकास नहीं हो सकता है। इसलिए पढ़ना लिखना जरूरी है। वे शराब पीने वाले आदिवासियों की पिटाई भी करते थे। उन्हें समझाते थे कि इसी शराब पीने के चक्कर में तुमलोग अपने खेतों को महाजनों (सूदखोरों) के पास गिरवी रखते हो।

    इस दौरान ही शिबू सोरेन ने धनकटनी आंदोलन शुरू किया और आदिवासियों की जमीन हड़पने वाले महाजनों के खतों में लगे धान को कटवाना शुरू कर दिया। इस जद में धनबाद के पूर्व राज्यसभा सदस्य संजीव कुमार के परिवार के सदस्य भी आ गए थे। शिबू सोरेन ने उनके खेतों में लगे धान भी कटवा दिए थे।

    इस पर संजीव कुमार के परिवार के सदस्यों ने शिबू सोरेन से कहा कि था कि अब वे लोग क्या खाएंगे। इस पर शिबू सोरेन ने कहा था कि चिंता मत करो, तुम्हारे बेटे संजीव कुमार को हम पढ़ाएंगे। इस वादे को शिबू सोरेन ने पूरा किया और संजीव कुमार को पढ़ा लिखाकर राज्य सभा सदस्य (सांसद) भी बनाया।

    ...जब गुरुजी ने सुदामडीह थाना का किया था घेराव

    बात 1973 की है। सूदखोरों व मजदूरों की समस्या को लेकर शिबू सोरेन के नेतृत्व में हजारों लोगों ने धनबाद जिले से सुदामडीह थाना को घेर लिया था। भारी संख्या में जिले से भी पुलिस पहुंच गई थी। आंदोलनकारियों को हट जाने को कहा गया। ऐसा नहीं करने पर गोली मार देने की धमकी दी गई। इससे मजदूरों में डर घर कर गया था।

    इस पर शिबू सोरेन ने सभी लोगों से कहा कि भागना नहीं है। डटकर मुकाबला करेंगे। सीने में गोली खाएंगे तो शदीह का दर्जा मिलेगा और पीठ में गोली लगी तो कायर कहलाएंगे। शिबू सोरेन की इस बात पर आंदोलनकारी पीछे नहीं हटे और आंदोलन करते रहे। इसी बीच मजदूर नेता एके राय व बिनोद बिहारी महतो धनबाद के तत्कालीन एसडीओ को लेकर पहुंच गए और गोली चलाने पर रोक लगवा दी। इससे मजदूरों की जीत हुई।

    निरसा से शिबू सोरेन का रहा पुराना लगाव

    निरसा विधानसभा क्षेत्र के लोगों से शिबू सोरेन का पुराना लगाव रहा है। उन्होंने वर्ष 1979 में डीवीसी के खिलाफ मैथन में विस्थापितों के पक्ष में उग्र आंदोलन किया था। मैथन डैम को काट देने की धमकी दी थी। इससे पूरे प्रशासन महकमा में खलबली मच गई थी।

    डैम को नुकसान नहीं पहुंचा दे इसके डर से डीवीसी प्रबंधन को झुकना पड़ा था और बाध्य होकर विस्थापितों का पैनल बनकर नौकरी देनी पड़ी थी। इस आंदोलन के बाद निरसा में शिबू सोरेन की लोकप्रियता बढ़ती चली गई।

    (स्व. शिबू सोरेन के करीब व झामुमो के पूर्व केंद्रीय कमेटी के सदस्य काजल चक्रवर्ती से बातचीत पर आधारित खबर)

    यह भी पढ़ें- शिबू सोरेन के निधन के बाद कांग्रेस का बड़ा फैसला, ECI के खिलाफ इन कार्यक्रमों को टालने का एलान

    यह भी पढ़ें- Shibu Soren के निधन से कोल्हान में शोक की लहर, मंत्री बोले-बिना दक्षिणा के ही...

    यह भी पढ़ें- Shibu Soren: खुले मैदान के योद्धा थे शिबू , कई राज्यों तक फैला था महाजनी शोषण के खिलाफ उनका आंदोलन