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    Shibu Soren: खुले मैदान के योद्धा थे शिबू , कई राज्यों तक फैला था महाजनी शोषण के खिलाफ उनका आंदोलन

    Updated: Mon, 04 Aug 2025 03:48 PM (IST)

    झारखंड आंदोलन के महानायक दिशोम गुरु शिबू सोरेन को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं झारखंड राज्य हिंदू धार्मिक न्यास बोर्ड के सदस्य हृदयानंद मिश्र ने खुले मैदान का योद्धा बयताया है। उन्होंने उनके साथ बिताए पल की स्मृतियों को साझा किया। कहा कि उनके संघर्ष और समर्पण ने झारखंड आंदोलन को गहराई और दिशा दी।

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    दिशोम गुरु शिबू सोरेन की समृतियों को साझा किया।

    जागरण संवाददाता, मेदिनीनगर (पलामू) । झारखंड आंदोलन के महानायक दिशोम गुरु शिबू सोरेन के जाने से न सिर्फ झारखंड, बल्कि संपूर्ण झारखंड शोक में डूबा है।

    दिशोम गुरु के निधन पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं झारखंड राज्य हिंदू धार्मिक न्यास बोर्ड के सदस्य हृदयानंद मिश्र ने उनके साथ बिताए पल की स्मृतियों को साझा किया। 

    कहा कि शिबू सोरेन एक खुले मैदान के योद्धा थे। वहीं उनके मित्र और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ज्ञान रंजन पर्दे के पीछे के रणनीतिकार। इन दोनों की साझी सोच, संघर्ष और समर्पण ने झारखंड आंदोलन को गहराई और दिशा दी। 

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    महाजनी प्रथा से शुरू हुआ आंदोलन

    शिबू सोरेन का आंदोलन महाजनी शोषण के खिलाफ शुरू हुआ था। यह सिर्फ झारखंड तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में भी फैल गया।

    शिबू सोरेन के नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने रेल रोको, चक्का जाम और गांव-गांव जनजागरण के माध्यम से आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाया।

    एक बार शिबू सोरेन और सूरज मंडल ज्ञानरंजन के आवास पर पहुंचे। पदयात्रा से थके शिबू जी नीचे सोफे पर ही बेसुध होकर सो गए। ज्ञानरंजन ने सभी को हिदायत दी कि जब तक वह खुद नहीं उठते, तब तक कोई आंदोलन की बात नहीं करेगा।

    कांग्रेस का द्वंद्व और मूक समर्थन

    उस समय कांग्रेस के कई नेता बिहार की सत्ता के दबाव में मूकदर्शक बने रहे, लेकिन ज्ञानरंजन के नेतृत्व में दर्जनों कार्यकर्ता शिबू सोरेन के साथ आंदोलन में सक्रिय थे।

    इनमें आर. पी. राजा, अनादि ब्रह्म, प्रदीप बलमुचू, प्रेमशंकर सिंह, गंगा प्रसाद, अरुण पांडेय, प्रतिभा पांडेय, कमल किशोर पांडेय, सोमेश्वर प्रसाद, मणिशंकर तिवारी, अशोक श्रीवास्तव, ईश्वर चंद्र पांडेय, अरुण श्रीवास्तव आदि थे।

    झारखंड बन गया, पर एक साथी छूट गया

    22 अप्रैल 1998 को अचानक ज्ञानरंजन का निधन हो गया। इस खबर से दिशोम गुरु टूट गए और दिन भर मौन, बिना खाए-पिए बैठे रहे। यह सिर्फ मित्र का नहीं, संघर्ष-संग्राम के सेनापति का अंत था।

    आज ज्ञानरंजन के परिवार में उनकी भाभी राजीव रंजन की पत्नी जीवित हैं। दिशोम गुरु हर माह 20,000 रुपये की सहायता उनके पास भिजवाते थे। यह उनके संवेदनशील और मानवीय चरित्र को दर्शाता है।