Kishtwar में बादल फटने की घटना के बाद की स्थिति: आज भी है अपनों का इंतजार नहीं टूटी है आस, एक विस्तृत रिपोर्ट
किश्तवाड़ के पाडर इलाके में बादल फटने की घटना के एक महीने बाद भी लापता लोगों का सुराग नहीं मिला है। इस घटना में 66 लोगों की मौत हो गई और 31 लोग लापता हैं। सरकार ने प्रभावित परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान की है लेकिन चिशोती गांव में डर का माहौल है।

बलबीर सिंह जम्वाल, जागरण, किश्तवाड़। किश्तवाड़ के पाडर इलाके के चिशोती गांव में बादल फटने की घटना को एक महीने से ज्यादा समय बीत गया है, लेकिन आज भी कई लोगों के परिजन लापता हैं। उनको अभी भी उम्मीद है कि उनके लापता परिजनों का कोई सुराग मिलेगा।
इस घटना में 66 लोगों की मौत हो गई जबकि 31 लोग अभी भी लापता हैं। जिन लोगों का इलाज अस्पतालों में चल रहा था, उन्हें अस्पतालों से छुट्टी दे दी गई है। जम्मू में 100 से ज्यादा घायलों को पहुंचाया गया था।
सरकार ने प्रभावित परिवारों की मदद के लिए कदम उठाए हैं। मारे गए लोगों के परिवारों को एसडीआरएफ और मुख्यमंत्री राहत कोष से आर्थिक सहायता प्रदान की गई है। जिन लोगों के मकान क्षतिग्रस्त हुए हैं, उन्हें भी आर्थिक सहायता दी गई है।
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हालांकि, इस घटना के बाद से चिशोती गांव के लोगों में डर का माहौल बना हुआ है। लोग शाम को अंधेरा होने से पहले ही अपने घरों के अंदर चले जाते हैं और बाहर निकलने से डरते हैं। इस घटना के कारण पाडर इलाके में करोड़ों का नुकसान हुआ है। मचेल यात्रा प्रभावित हो जाने की वजह से इस इलाके में लोगों का कारोबार भी प्रभावित हुआ है।
लापता लोगों को नहीं मिल रहा सुराग
14 अगस्त का वह काला दिन जब मचैल यात्रा के दौरान चिशोती गांव में बादल फटा कभी न भूलने वाली घटना बन गई है। जिन लोगों के अपने लापता हैं वे आज भी रोजाना चिशोती गांव में लोगों को फोन करके पूछते हैं कि आज कोई शव तो नहीं मिला। जब जवाब में मिलता है तो वे मायूस हो जाते हैं। एक महीना बीत जाने के बाद भी 31 लोगों का कोई सुराग नहीं है।
शुरुआती में तो राहत कार्य काफी तेजी से चला। चिशोती के साथ लगते हुए भोटनाले को भी दूर दूर तक खंगाला गया परंतु जेसाबी मशीनों की खुदाई के बाद भी लापता लोगों का कोई सुराग नहीं मिल पा रहा है। अब एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना तथा पुलिस के जवान भी वापस लौट गए हैं।
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खौफ सा बैठा हुआ है चिशोती गांव के लोगों के अंदर
चिशोती गांव में बादल फटने की घटना को एक महीने से ज्यादा समय बीत गया है। शुरुआती दस बारहां दिन तक तो गांव में काफी चहल पहल रही। सेना, सुरक्षा बल, मीडिया, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ, आते जाते रहे। रात-रात भर चहल पहल सी रही लेकिन 24 अगस्त के बाद धीर-धीरे करके सब चले गए। चिशोती गांव के लोगों के दिलों के अदर डर बैठा हुआ है। वह शाम को अंधेरा होने से पहले ही अपने घरों के अंदर चले जाते हैं।
बाहर चाहे जो कुछ भी हो जाए। लेकिन कोई भी बाहर नहीं निकलता। अगर कोई निकलता भी है तो वह अपने साथ किसी ना किसी को साथ लेकर क्योंकि गांव के लोगों ने वहां पर लाशों के ढेर देखे हैं। अब गांव सुनसान सा हो गया है, कहीं से कोई आवाज़ तक नहीं सुनाई देती।
चिशोती गांव में धीरे धीरे मिल रही है सरकारी मदद
इस त्रासदी में खाली चिशोती गांव के ही 11 लोग मारे गए जिनमें 3 आज भी लापता हैं। उनमें एक पास के गांव हाको का भी है। कुल मिलाकर चिशोती के 4 लोग आज भी लापता है। यही नहीं बाढ़ में गांव के 16 मकान पूरी तरह से खत्म हो गए।
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जिनकी मदद के लिए सरकार धीरे धीरे आगे आ रही है। जो लोग मारे गए हैं उन्हें एसडीआरएफ तरफ से चार-चार लाख रुपये और मुख्यमंत्री राहत कोश से दो-दो लाख मिल चुके हैं। प्रधानमंत्री राहत कोष से दो दो लाख और आ जाएंगे।
मकान बनाने के लिए भी की जा रही मदद
हादसे में जिन लोगों के मकान तबाह हुए हैं उन्हें पहले एसडीआरएफ की तरफ से एक लाख तीस हजार और मुख्यमंत्री की तरफ से एक-एक लाख रुपये दिए गए हैं। इसके अलावा एक-एक लाख रुपये प्रधानमंत्री राहत कोष से बाद में सभी को आएगा।
ये सारी जानकारी देखते हुए एसडीएम पाडर डॉ अमित कुमार भगत ने कहा कि जिन लोगों के मकान पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हुए हैं उन लोगों को सीएसआर की तरफ से मकान बनाकर देने की योजना है। इसके साथ ही गांव के बाकी लोगों को भी सामाजिक संस्थाओं की तरफ से राशन कपड़े किचन का सम्मान तथा और भी जरूरी सामग्री उपलब्ध कराई गई है।
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यात्रा बंद होने से पाडर इलाके में हुआ करोड़ों का नुकसान
मचैल यात्रा जम्मू-कश्मीर की तीसरी प्रमुख यात्राओं में से एक मानी जाती है। नंबर एक पर माता वैष्णो देवी जी की यात्रा नंबर दो पर बाबा श्री अमरनाथ जी की यात्रा है। इस यात्रा में हर साल लाखों यात्री आकर माता चंडी के दरबार में माथा टेकते हैं। इस यात्रा के शुरू होते ही पूरे इलाके में लोगो का कारोबार भी शुरू हो जाता है।
यात्रा मार्ग पर दुकानें, पड़ाव पर बने होटल, होम स्टे, टेंट आदि में सैंकड़ों श्रद्धालु इनका लाभ उठाते हैं। इस बार यात्रा 14 अगस्त को बादल फटने की त्रासदी के बाद बंद हो गई। जबकि यह यात्रा 5 सितंबर तक जारी रहती है। 20 दिन पहले यात्रा के बंद हो जाने से पूरे इलाक़े में सौ करोड से ज्यादा का नुकसान हुआ है।
लोगों को कहना है कि यात्रा प्रभावित हो जाने की वजह से उनकी दुकानों पर इतना सामान बच गया जो अगले साल तक खराब हो जाएगा। अब मरने वालों की और जिन लोगों के मकानों का नुकसान हुआ है। उनकी भरपाई तो सरकार धीरे धीरे कर रही है लेकिन जो आर्थिक नुकसान गुलागढ़ से लेकर मुचैल गांव तक स्थानीय लोगों को हुआ है, इसकी ना तो कोई भरपाई करने वाला है और ना ही इनकी कोई मदद करने वाला।
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