Jammu Kashmir: अपने बच्चे का दिल प्यार से जीतें, मुकदमें से नहीं: अलग हुए माता-पिता से जज की भावुक अपील
अनंतनाग की अदालत में न्यायाधीश ताहिर खुर्शीद रैना ने एक बच्चे की कस्टडी के मामले में माता-पिता से भावुक अपील की कि वे मुकदमेबाजी से बच्चे को नहीं बल्कि प्यार से जीतें। उन्होंने कहा कि बच्चा माता-पिता के झगड़े में संपत्ति जैसा बन गया है। अदालत ने पिता के नियंत्रणकारी व्यवहार पर चिंता जताई और मां से प्रेम का सेतु बनने का आग्रह किया।

डिजिटल डेस्क, श्रीनगर। कानूनी प्रक्रिया से ऊपर उठे एक भावुक अदालती पल ने कोर्ट में मौजूद सभी की आंखों को उस समय नम कर दिया जब अदालत में बच्चे के लिए झगड़ रहे माता-पिता से जज ने भावुक होकर अपील की कि "मुकदमेबाजी के बजाय अपने बच्चे को प्यार से जीतें।"
जिला एवं सत्र न्यायाधीश अनंतनाग ताहिर खुर्शीद रैना ने बच्चे की कस्टडी मामले में गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट के तहत फैसला सुनाते हुए अलग हुए दंपत्ति से आग्रह किया कि वे अपने बच्चे को "रस्साकस्सी" में "इनाम" की तरह न समझें और इसके बजाय करुणा और धैर्य अपनाएं।
जज ने पिता से कहा, "मुकदमेबाज़ी के जरिए बच्चे को जीतने की कोशिश मत करो। उसे अपने धैर्य और बिना शर्त प्यार से जीतो। उसे मां की गोद और प्यार में अपने सच्चे, अविचल स्नेह से बढ़ने दो।"
अदालत ने कहा कि वह छोटा लड़का माता-पिता के बीच "झगड़े का कारण" बन गया था। उसकी हालत ऐसी हो गई थी जैसे कि एक संपत्ति - दो विरोधियों के बीच फंसकर रह जाती है। "झूठे अहंकार, असहिष्णुता और अशिक्षा" से प्रेरित माता-पिता को भी बच्चे के दिल की कोई चिंता नहीं है।
बच्चे के कल्याण के संरक्षक की भूमिका निभाते हुए न्यायाधीश रैना ने कहा कि पिता के नियंत्रणकारी व्यवहार ने बच्चे को बहुत व्यथित और उसके प्रति "पूर्ण घृणा" से भर दिया था।
न्यायाधीश ने कहा, "यह अदालत किसी बच्चे को किसी ऐसे व्यक्ति से मिलने के लिए मजबूर नहीं कर सकती जिससे वह मिलना नहीं चाहता। यह एक प्रकार की मनोवैज्ञानिक यातना होगी।"
रैना ने कहा कि बच्चे की स्कूली शिक्षा और दैनिक जीवन के निर्णयों पर हावी होने की पिता की कोशिशों ने "एक अहंकारी दृष्टिकोण" को उजागर किया जिसने भावनात्मक दरार को और बढ़ा दिया।
उन्होंने कहा, "पितृत्व केवल एक जैविक बंधन नहीं है। यह भावनात्मक और नैतिक है। इसमें त्याग, कठिन निर्णय और बिना शर्त प्यार शामिल है।"
अदालत ने मां के सहयोग की सराहना की और उनसे "घृणा की दीवार नहीं, प्रेम का सेतु" बनने का आग्रह किया। न्यायाधीश ने पिता के वकील को भी सीधे संबोधित करते हुए कहा कि वह "अपने मुवक्किल को प्रतीक्षा करने और धैर्य रखने के लिए मनाएं। वह ऐसे प्रयास करें जिससे बच्चे के जीवन में शांति आए न कि व्यवधान।"
अदालत कक्ष के बाहर, प्रतिवादी पक्ष के वकीलों ने कहा कि उन्होंने संदेश सुन लिया है। "हम अदालत की भावनाओं का सम्मान करते हैं और अपने मुवक्किलों को सलाह देंगे कि वे बच्चे की भावनात्मक भलाई को प्राथमिकता दें।"
कश्मीर भर के वकीलों ने भी इस फैसले का स्वागत किया और इसे "एक मानवीय फैसला बताया जो शत्रुता के बजाय उपचार का द्वार खोलता है।" अनंतनाग जिला अदालत के वरिष्ठ आपराधिक वकीलों में से एक, अधिवक्ता सुहैल हक्कानी ने कहा कि "कुछ फैसले कानून को छूते हैं, तो कुछ आत्मा को।"
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न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि "यह अदालत चाहती है कि टूटा हुआ परिवार फिर से एकजुट हो जाए और बच्चा अपने माता-पिता के बीच एक सेतु बन जाए, बढ़े, फले-फूले, और बच्चा जो बड़े होकर न्यायाधीश बनने की इच्छा रखता है, अपना सपना पूरा करे।"
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