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    NC सांसद के लेटर से बढ़ गईं उमर अब्दुल्ला की मुश्किलें, अब क्या करेंगे जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री?

    Updated: Wed, 30 Oct 2024 12:59 PM (IST)

    जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को अपनी ही पार्टी के नेता आगा सैयद रुहुल्ला मेहदी ने पत्र लिखकर कई मुद्दों पर दबाव बनाया है। उमर अब्दुल्ला के लिए इन मुद्दों को हल करना बहुत जटिल होगा क्योंकि ये कानून व्यवस्था से जुड़े हैं और मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था में कानून व्यवस्था पुलिस व संबंधित मामले पूरी तरह से उपराज्यपाल के अधीन हैं।

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    नेकां सांसद ने विवादित मुद्दों को हवा दे उमर की बढ़ाईं मुश्किलें (फाइल फोटो)

    राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला बेशक कहें कि वह केंद्र सरकार व उपराज्यपाल के साथ समन्वय बनाकर और जम्मू को साथ लेकर चलेंगे, लेकिन उनके लिए यह आसान नहीं होगा। नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता व सांसद आगा सैयद रुहुल्ला मेहदी ने मंगलवार को मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को एक पत्र लिखकर नई सरकार पर दबाव बना दिया है।

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    इन मुद्दों को लेकर दिया सुझाव

    पत्र में रुहुल्ला ने कैदियों की रिहाई, आरक्षण, पासपोर्ट के लिए सीआईडी सत्यापन व जांच को सरल बनाने सहित नेकां के कई चुनावी मुद्दों को सरकार की प्राथमिकता में शामिल करने का सुझाव दे डाला है।

    पहले पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और सांसद इंजीनियर रशीद सरीखे विरोधी ही उमर पर सरकार के गठन के बाद अपने रुख और एजेंडे में बदलाव का आरोप लगाते थे।

    अब उनकी अपनी पार्टी के नेता ही विभिन्न मुद्दों को लेकर दबाव बनाने लगे हैं। रुहुल्ला ने राजनीतिक मुद्दों को हल करने के लिए मौजूदा सरकार से विधानसभा का मार्ग अपनाए जाने की उम्मीद भी जताई है।

    शिया समुदाय के धर्मगुरु हैं आगा सैयद रुहुल्ला

    नेकां नेताओं की ओर से ही दबाव बनाए जाने से आने वाले दिनों में उमर की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। श्रीनगर संसदीय सीट से निर्वाचित आगा सैयद रुहुल्ला नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रवक्ता और कश्मीर में शिया समुदाय के एक बड़े वर्ग के धर्मगुरु भी हैं।

    अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर वह केंद्र सरकार की नीतियों के मुखर विरोधी हैं। रुहुल्ला ने उमर को एक पत्र लिखकर उन्हें मुख्यमंत्री बनने पर बधाई देने के साथ कैदियों की रिहाई का आह्वान किया।

    उन्होंने कहा कि प्रदेश और देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित जेलों में कई कश्मीरी कैद हैं और इनमें से कइयों पर कोई मुकदमा भी नहीं है। यह एक मानवीय मुद्दा है और इनके साथ न्याय करते हुए इनकी रिहाई का प्रयास करना चाहिए।

    रुहुल्ला ने इन मुद्दों पर भी दिया जोर

    उन्होंने आरक्षण नीतियों को तर्कसंगत बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया है। आरक्षण को लेकर उमर को स्थानीय स्तर पर अपने राजनीतिक विरोधियों से लेकर आरक्षण से लाभान्वित होने वाले वर्गों के रोष का सामना करना पड़ सकता है।

    रुहुल्ला ने प्रदेश सरकार के अधीनस्थ विभिन्न सरकारी विभागों में रिक्त पदों को तेजी से भरने के साथ बिजली आपूर्ति और बिल का मामला भी उठाया। कहा कि सर्दियां शुरू होने वाली हैं और कश्मीर में बिजली संकट बढ़ सकता है।

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    पीछे नहीं हट सकता केंद्र

    कश्मीर मामलों के जानकार रमीज मखदूमी ने कहा कि जेलों में पत्थरबाज, आतंकी, आतंकियों के समर्थक और अलगाववादी बंद हैं। उनके जेल में होने के कारण ही जम्मू-कश्मीर में पथराव व हिंसक प्रदर्शन बंद हैं।

    पासपोर्ट और नौकरी के लिए सत्यापन की प्रक्रिया को कठोर अवांछित तत्वों को विदेश भागने या सरकारी तंत्र में शामिल होने से रोकने के लिए ही बनाया गया है। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और केंद्र सरकार इन मुद्दे से पीछे नहीं हट सकते। यह उमर अब्दुल्ला भी जानते हैं।

    सरकार के लिए ये मुद्दे हल करना बहुत जटिल होगा

    मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के लिए आरक्षण के मुद्दे को हल करना बहुत जटिल होगा। अगर वह अनुसूचित जनजाति-2 वर्ग का आरक्षण घटाते हैं या समाप्त करते हैं या फिर इसे गुज्जर-बक्करवाल व अन्य अनुसूचित जनजातीय समुदायों के साथ जोड़ देते हैं तो विरोध तय है।

    इसका उन्हें राजनीतिक नुकसान हो सकता है। इसके बाद कैदियों की रिहाई और सरकारी नौकरी व पासपोर्ट के लिए पुलिस जांच का मुद्दा है। यह दोनों मामले कानून व्यवस्थ से जुड़े हैं और मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था में कानून व्यवस्था, पुलिस व संबंधित मामले पूरी तरह से उपराज्यपाल के अधीन हैं। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला सिर्फ आग्रह कर सकते हैं, कोई निर्देश नहीं दे सकते। अगर वह इसे मुद्दा बनाएंगे तो टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है।

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