कश्मीरी सेब की फसल पर खतरा, अप्रत्याशित मौसम के प्रभाव से किसान चिंतित, बीमारियों की चपेट में फसल
कश्मीर में हुई बारिश के बाद सेब उत्पादकों की चिंता बढ़ गई है। मौसम में बदलाव के कारण कश्मीरी सेब की फसल पर बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है। घाटी में बदलते मौसम ने अल्टरनेरिया और नेक्रोटिक लीफ ब्लॉच जैसी बीमारियों को जन्म दिया है जिससे पत्तियां और फल प्रभावित हो रहे हैं। किसानों ने बागवानी विभाग से हस्तक्षेप की अपील की है ताकि फसल को बचाया जा सके।

जागरण संवाददाता, श्रीनगर। कश्मीर में गत दिनों हुई बारिश के बाद सबे उत्पादकों के चेहरों पर आई खुशी एक बार फिर चिंता में बदल गई है। मौसम की बेरुखी की वजह से देश-विदेश में प्रसिद्ध कश्मीरी सेब की फसल पर खतरा मंडराने लगा है। अप्रत्याशित मौसम ने सेब की फसलों को प्रभावित करने वाली कई बीमारियों को जन्म दे दिया है।
किसानों और विशेषज्ञों के अनुसार कश्मीर घाटी में हर पल बदलते मौसम ने अल्टरनेरिया (यह एक फफूंद जनित रोग) को जन्म दिया है जो सेब के पेड़ों की पत्तियों को प्रभावित कर रहा है। शुरुआत में स्तह पर छोटे पीले धब्बे दिखाई देते हैं। परंतु समय के साथ इससे मिट्टी और फलों को नुकसान हो सकता है।
इसके अलावा नेक्रोटिक लीफ ब्लॉच की बीमारी भी सामने आई है। एक उत्पादन ने बताया कि यह एक शारीरिक दोष है जो कुछ सेब किस्मों में आम है। इससे सेब पर काले धब्बे और समय से पहले पत्तियों के गिरने का कारण बनता है। यही नहीं इससे पेड़ कमजोर हो जाता है और फलों की वृद्धि और गुणवत्ता प्रभावित होती है। ये दोनों ही बीमारियां सेब बागानों में तेजी से बढ़ रही हैं।
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उत्तरी कश्मीर के हिंदुगाहू, लंगेट और अन्य आसपास के इलाकों में कई सेब के बाग भी इस अचानक और रहस्यमय बीमारी से प्रभावित हुए। जिससे बागवानी क्षेत्र से जुड़े सैकड़ों किसानों में काफी चिंता है। लगभग 10 दिन पहले फैली इस बीमारी के परिणामस्वरूप पत्ते पीले पड़ गए और समय से पहले गिर गए। जिसका सीधा असर सेब की फसल पर पड़ा। सेबों को लगी इन बीमारियों ने उत्पादकों को एक नई परेशानी में डाल दिया है। अपनी फसल को लेकर वह चिंता में पड़ गए हैं।
जहूर अहमद डार नामक एक सेब उत्पादक ने कहा कि मैंने सेब के पत्तों पर काले धब्बे और कुछ शुरुआती फल गिरते हुए देखे। हमने देखा है कि मौसम अप्रत्याशित रहा है - एक दिन धूप, अगले दिन बारिश। हमें डर है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारे उत्पादन को भारी नुकसान होगा।
शोपियां के एक और उत्पादक अब्दुल करीम मीर ने कहा, मैंने जब से अपने बाग के आधे से ज्यादा सेबों पर काले धब्बे व फफूंद लगी देखी तब से परेशान हूं। मीर ने कहा,इससे पहले भी एक वर्ष मेरे सेब की फसल को इन्हीं बीमारियों ने तबाह किया था। आज भी मुझे एेसे ही आसार नजर आ रहे हैं। ये बीमारियां न केवल फलों के रंग और आकार को प्रभावित करते हैं बल्कि अगले सीजन के लिए कलियों के निर्माण को भी प्रभावित करते हैं।
किसानों ने कहा कि इस बीमारी के फैलने के बाद, उन्होंने बीमारी से निपटने के लिए विभिन्न दवाओं का छिड़काव किया लेकिन हर गुजरते दिन के साथ स्थिति बदतर होती जा रही है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, बागवानी विभाग से हस्तक्षेप करने की अपील की गई है। लंगेट के एक स्थानीय निवासी अब्दुल वाहिद ने कहा, यह कोई छोटी समस्या नहीं है। वाहिद ने कहा, सेब की खेती हमारे उत्तरी कश्मीर की रीढ़ है और अगर इस फसल को नुकसान होता है तो यह क्षेत्र को प्रभावित करेगा।
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इधर विशेषज्ञ भी सेब की फसलों पर लगी इन बीमारियों का कारण मौसम के अप्रत्याशिता को ही करार दिया है। कश्मीर विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, कश्मीर के पादप रोग विज्ञान के सहायक प्रोफेसर वसीम घरकू ने कहा कि इस बीमारी ने लगभग 30 प्रतिशत क्षेत्र को प्रभावित किया है। उनके अनुसार, इस घटना के पीछे उतार-चढ़ाव वाला तापमान मुख्य चालक है।
गरकू ने कहा, आलटर्नारिया और नेक्रोटिक से सेब के पेड़ों की पत्तियां प्रभावित हुई हैं।" दोनों धब्बे पारंपरिक सेब के खेतों में अधिक आम हैं जहां फसल की छतरी घनी होती है। पेड़ रोग के प्रसार के लिए अनुकूल सूक्ष्म जलवायु प्रदान करते हैं। गरकू ने कहा कि जिंक-आधारित कवकनाशी संक्रमण को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।
लंगेट क्षेत्र के ब्लॉक विकास परिषद के पूर्व अध्यक्ष शौकत पंट ने कहा कि समय पर हस्तक्षेप के बिना, न केवल इस वर्ष की फसल बर्बाद हो जाएगी साथ ही अगले सीजन का उत्पादन भी प्रभावित होगा। उन्होंने कहा कि इससे उत्तरी कश्मीर में सेब की खेती पर निर्भर हजारों लोग प्रभावित होंगे। परिवारों की आर्थिक स्थिति खराब हो सकती है।
उन्होने बागवानी विभाग से स्थिति की समीक्षा करने और प्रभावी उपाय सुझाने पर जोर दिया। यह कोई साधारण समस्या नहीं है और नुकसान अपूरणीय होने से पहले अधिकारियों को तुरंत इसकी जांच करनी चाहिए।" "ध्यान देने की आवश्यकता है।
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