Kargil Vijay Diwas: ऑपरेशन सिंदूर भी जरुरी है, बलिदानी पिता को कारगिल में श्रद्धाजंलि देने पहुंची बेटी का छलका दर्द
कारगिल युद्ध में शहीद हुए एक सैनिक की बेटी प्राजक्ता अपनी माँ के साथ कारगिल विजय दिवस पर अपने पिता को श्रद्धांजलि देने आई। प्राजक्ता ने ऑपरेशन सिंदूर को हर हमले का जवाब बताया और कहा कि यह उनके पिता के बलिदान का भी जवाब है। उनकी माँ विद्या ने कहा कि पाकिस्तान को ऐसा जवाब मिलना चाहिए कि दोबारा कारगिल युद्ध जैसी स्थिति न आए।

राज्य ब्यूरो,जागरण, श्रीनगर। ऑपरेशन सिंदूर, हम पर होने वाले हर हमले का जवाब है, मुझे लगता है कि यह ऑपरेशन मेरे पिता के बलिदान का भी जवाब है, महाराष्ट्र के बीड जिले से अपने पिता के बलिदानस्थल पर अपनी मां संग आई प्राजक्ता ने युद्ध स्मारक पर अपने पिता को श्रद्धांजली अर्पित करने के बाद कहा। वह उस समय मात्र 14 माह की थी, जब उसके पिता करगिल में वीरगति को प्राप्त हुए थे।
पेशे से वकील प्राजक्ता ने कहा कि यह मेरे पिता की कर्मभूमि है, यहां आकर मैं उन्हें महसूस कर सकती हैं। मैंने उन्हें दो से तीन बार ही देखा है। वह सेना की 18वीं गढ़वाल रेजिमेंट में थे और उन्हें प्वांट 5140 पर कब्जा करने का जिम्मा मिला था। वह अपने मिशन को पूरा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।
उसने कहा कि जब मैं अपने रिश्तेदारों से मिलती हूं तो वे मुझे मेरे पापा के बारे में बताते हैं। पिछले दिनों मैं अपने पापा की यूनिट में भी गई थी, वहां भी उनके साथी मिले थे, उन्होंने भी मुझे मेरे पापा की कहानियां सुनाई। मुझे मेरे पापा की जिंदगी हमेशा प्रेरणा देती है।
ऑपरेशन सिंदूर के बारे में पूछे जाने पर उसने कहा कि यहां लोग युद्ध की बात करते हैं, लेकिन किसी बलिदानी के परिवार को पूछो, उसके लिए युद्ध हमेशा चलता रहता है। हम चाहते हैं कि युद्ध नहीं होना चाहिए, लेकिन जब जरुरी हो जाए तो ऑपरेशन सिंदूर भी जरुरी है।
यह सिर्फ पहलगाम हमले के लिए नहीं था। यह हर उस हमले के बारे में था जो हम पर हुआ। मेरे पापा के बलिदान का भी जवाब था। उसने कहा कि अगर पाकिस्तान दोबारा ऐसी कोई हरकत करता है तो सिंदूर से भी दोगुना जवाब देना चाहिए।
प्राजक्ता की मां विद्या ने कहा कि जब मैं 18 साल की थी तब शादी हुई थी और 21 साल की उम्र में मैं एक वीर की विधवा बन गई। वीर बलिदानी की वीरांगना को अपनी जिम्मेदारी स्वयं उठानी होती है।
मैं आजकल देखती हूं कि पत्नी अपने पति को कहती है चलो बाजार जाना है, सब्जी लानी है लेकिन हमें तो थैला उठाकर खुद ही अकेले जाना है। हमारे लिए और कौन करेगा। सभी सैनिकों की पत्नी और वीर नारी सब यही करती हैं। सब जिम्मेदारी अकेले और अच्छे से निभाती हैं।
उन्होंने कहा कि वह अपनी पति के वीरगति को प्राप्त होने के 26 साल में पहली बार यहां करगिल आई हैं। पहले घर की जिम्मेदारियां थी, नहीं आ सकी थी। विद्या कहती कि हमने युद्ध का दर्द देखा है। मुझे लगता है कि पाकिस्तान को एक बार ऐसा जवाब मिला ही चाहिए ताकि कभी कारगिल युद्ध या ऑपरेशन सिंदूर जैसी नौबत ना आए।
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