चार माह पहले सूखे की मार से त्रस्त जम्मू-कश्मीर आज बारिश-बाढ़ से उपजे हालात से जूझ रहा, विशेषज्ञों ने बताई यह वजह
जम्मू-कश्मीर में मौसम का मिजाज बदला है। मई-जुलाई में कम बारिश से सूखा पड़ा जिससे झेलम का जलस्तर घटा और कृषि प्रभावित हुई। अगस्त में अत्यधिक बारिश हुई खासकर जम्मू में जहाँ मानसून की गतिविधियां तेज रहीं। इससे बाढ़ और बादल फटने की घटनाएं हुईं जिससे संपत्ति का नुकसान हुआ।

राज्य ब्यूरो,जागरण, श्रीनगर। बारिश और बाढ़ से उपजे हालात से जूझ रहे जम्मू कश्मीर की स्थिति को देखकर कोई नहीं कहेगा कि लगभग चार महा पहले यह प्रदेश सूखे की मार से त्रस्त था। जून में दिन का अधिकतम तापमान अपने सारे पुराने रिकार्ड तोड़ रहा था।
बीते पांच माह के दौरान जम्मू-कश्मीर में रही मौसमी परिस्थतियां वैश्विक जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को दर्शा रही हैं। यह बदलाव जम्मू कश्मीर में आम जनजीवन से लेकर कृषि और अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है।
जम्मू कश्मीर में विशेषकर कश्मीर घाटी में मई- जुलाई के बीच सामान्य से कहीं कम बारिश हुई। कारण- पश्चिमी विक्षोभ घाटी के वायुमंडल में जब दाखिल हुआ तो वह लगभग निष्क्रिय हो चुका था। इससे सूखे की स्थिति पैदा हो गई और झेलम समेत विभिन्न नदियो का जलस्तर घट गया, कृषि भूमि सूख गई, धान की फसल के लिए पानी कम पड़ गया और खेतों में पानी के लिए तरस रहे किसानों के चेहरों पर पसीना ही नजर आता था।
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अगस्त में अब तक की सबसे अधिक बारिश हुई
जुलाई बीतने के बाद अगस्त आया तो मौसम का मिजाज पूरी तरह बदल गया और जम्मू-कश्मीर में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के असर को दर्शाया। जम्मू-कश्मीर मेंं मौसम विभाग के निदेशक मुख्तार अहमद के अनुसार, अगस्त में जम्मू कश्मीर में विशेषकर जम्मू प्रांत में और उत्तर पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में मानसून की गतिविधियां तेज रहीं। अगस्त में अब तक की सबसे ज्यादा बारिश हुई है।
उन्होंने बताया पिछले मानसून के दौरान जम्मू में 300 मिमी बारिश दर्ज की गई थी, लेकिन चालू सीजन में प्रांत में 400 मिमी वर्षा दर्ज की गई। उन्होंने बताया कि जम्मू में हुई इस अत्यधिक वर्षा और मौसम में उतार-चढ़ाव के कारण जम्मू प्रांत में बाढ़ और बादल फटने की घटनाएं हुई हैं, इससे संपत्ति को नुकसान पहुंचा और लोग विस्थापित हुए हैं।
वैश्विक स्तर पर सभी को मिलकर करना होगा प्रयास
पर्यावरणविदों ने कहा कि ये अत्याधिक बदलाव अब केवल मौसम संबंधी घटनाएं नहीं हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी एक वैश्विक प्रवृत्ति का हिस्सा हैं, जिसका स्थानीय प्रभाव कम करने के लिए वैश्विक स्तर सभी को मिल जुलकर प्रयास करने की जरुरत है। कश्मीर विश्वविद्यालय में जियोइन्फॉर्मेटिक्स के शोध छात्र इम्तियाज अहमद बट ने कहा कि जम्मू और कश्मीर का मौसम दो प्रमुख प्रणालियों से प्रभावित होता है: कश्मीर घाटी में पश्चिमी विक्षोभ और जम्मू क्षेत्र में मानसून का प्रभाव रहता है।
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मई और जून में, हमने यहां पश्चिमी विक्षोभ को निष्क्रिय देखा जो असामान्य है। पश्चिमी विक्षोभ की निष्क्रियता के कारण यहां सूखे जैसी स्थिति पैदा हो गई। अब अगस्त में, जम्मू में मानूसन असामान्य रूप से तीव्र है।ये दोनों मौसम प्रणालियां ग्लोबल वार्मिंग से इस हद तक प्रभावित हो रही हैं कि हम अत्यधिक असामान्य परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं: एक महीने में सूखा और अगले महीने बाढ़।"
प्रभाव कम करने में स्थानीय शमन उपाय हो सकते हैं मददगार
इम्तियाज बट ने कहा कि हालांकि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक परिघटना है, लेकिन स्थानीय स्तर पर इसके प्रभाव को कम करने के लिए स्थानीय शमन उपाय मददगार हो सकते हैं। वनों से रहित भूमि पर वनरोपण, जल और भूमि संसाधनों के खनन को नियंत्रित करना और ग्लेशियरों को जल्दी पिघलने से बचाने के लिए प्रदूषण कम करना ज़रूरी है। जब कार्बन प्रदूषण ग्लेशियरों की सतह पर छा जाता है, तो वे गर्मी धारण करने की क्षमता खो देते हैं। वे सूर्य के प्रकाश को वापस वायुमंडल में परावर्तित कर देते हैं, जिससे तापमान बढ़ जाता है।
यह अनियमित पैटर्न यहाँ जल प्रबंधन, कृषि और बागवानी पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है - ये दो मुख्य क्षेत्र हैं जो 1.25 करोड़ लोगों के जीवन और अर्थव्यवस्था को सहारा देते हैं। मई और जून में, बारिश और जल प्रबंधन की कमी ने धान की रोपाई और अन्य कृषि गतिविधियों को प्रभावित किया। अब, बाढ़ ने जम्मू-कश्मीर में धान की फसल को प्रभावित किया है, जो अगले महीने पकने वाली थी।
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