जम्मू व श्रीनगर के भविष्य के विकास को आकार देने वाले हों मास्टर प्लान, उमर बोले-ध्यान रहे विजन दस्तावेज बनकर न रह जाएं
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने श्रीनगर और जम्मू के मास्टर प्लान को यथार्थवादी और कार्यान्वयन योग्य बनाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि योजनाएं पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ होनी चाहिए और शहरों की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करें। सभी विभागों को जमीनी आकलन और जनता की प्रतिक्रिया को शामिल करने का निर्देश दिया गया।

राज्य ब्यूरो, जागरण, जम्मू। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को कहा कि श्रीनगर और जम्मू शहरों के मास्टर प्लान यथार्थवादी, कार्यान्वयन योग्य और ज़मीनी हकीकत को दर्शाने वाले होने चाहिए।
यह केवल विजन दस्तावेज बनकर नहीं रह जाने चाहिए। उन्होंने निर्देश दिया कि योजनाओं में सभी हितधारकों के विचारों को ध्यान में रखा जाना चाहिए और ये पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ होने चाहिए तथा दोनों शहरों की सांस्कृतिक और पारिस्थितिक पहचान को संरक्षित करते हुए भविष्य की शहरी चुनौतियों का समाधान करने में सक्षम होने चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा ये मास्टर प्लान दशकों तक हमारे दोनों प्रमुख शहरों के भविष्य के विकास को आकार देंगे। यह ज़रूरी है कि ये न केवल दूरदर्शी हों बल्कि क्रियान्वयन में व्यावहारिक भी हों जिससे नागरिकों को ठोस लाभ सुनिश्चित हो।
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उन्होंने सभी संबंधित विभागों को योजनाओं के सफल कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए जमीनी आकलन, जनता की प्रतिक्रिया और अंतर-विभागीय समन्वय को शामिल करने का भी निर्देश दिया।
मुख्यमंत्री ने सह निर्देश श्रीनगर और जम्मू शहरों के मास्टर प्लान और जम्मू-कश्मीर के लिए एकीकृत भवन उपनियमों की समीक्षा के लिए एक बैठक की अध्यक्षता करते हुए दिए।
बैठक में मुख्यमंत्री के सलाहकार नासिर असलम वानी, मुख्य सचिव अटल डुल्लू, आवास एवं शहरी विकास विभाग की आयुक्त सचिव मनदीप कौर, कश्मीर और जम्मू के मंडलायुक्त, श्रीनगर और जम्मू के उपायुक्त, श्रीनगर नगर निगम और जम्मू नगर निगम के आयुक्त, श्रीनगर और जम्मू विकास प्राधिकरणों के उपाध्यक्ष और अन्य संबंधित वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए।
बैठक में श्रीनगर मास्टर प्लान-2035, जम्मू मास्टर प्लान-2032 और एकीकृत भवन उपनियम-2021 पर विस्तृत विचार-विमर्श हुआ। आवास एवं शहरी विकास विभाग के आयुक्त सचिव ने मास्टर प्लान पर एक प्रस्तुति दी जिसमें उनके रणनीतिक दृष्टिकोण, अनुमानित शहरी विकास पैटर्न, बुनियादी ढांचे की आवश्यकताओं और नीतिगत हस्तक्षेपों पर प्रकाश डाला गया।
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एकीकृत भवन उपनियमों पर भी चर्चा की गई। विशेष रूप से आवासीय, औद्योगिक, सार्वजनिक और अर्ध सार्वजनिक स्थलों के लिए भूमि उपयोग से संबंधित उपनियमों पर, साथ ही शहरी विकास को सुव्यवस्थित करने के उद्देश्य से अन्य तकनीकी प्रावधानों पर भी चर्चा की गई।
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