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    Kargil Vijay Diwas: नायब सूबेदार रवैल सिंह बलिदान हो गए, हाथ से नहीं छोड़ा तिरंगा; कारगिल वीर की गौरवगाधा आज भी है प्रेरणादायक

    Updated: Sat, 26 Jul 2025 01:19 PM (IST)

    कारगिल युद्ध में टाइगर हिल पर कब्ज़ा करने के बाद जश्न मना रहे भारतीय जवानों पर पाकिस्तान ने घात लगाकर हमला किया। आठ सिख रेजीमेंट के नायब सूबेदार रवैल सिंह ने बहादुरी से जवाब दिया घायल होने के बावजूद तिरंगा नहीं छोड़ा। उन्होंने कई दुश्मनों को मार गिराया और देश के लिए बलिदान हो गए। उनकी वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत सेना मेडल से सम्मानित किया गया।

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    नायब सूबेदार रवैल सिंह का बलिदान आज भी युवाओं को प्रेरित करता है।

    सतीश शर्मा, जागरण, बिश्नाह। पाकिस्तान कभी भी भरोसे के लायक नहीं है। हमेशा घात लगाकर पीठ पीछे वार करना उसकी आदत है और ऐसा ही कुछ कारगिल युद्ध के दौरान किया।

    टाइगर हिल पर पोस्ट पर कब्जे के बाद जश्न मना रहे भारतीय जवानों पर पीछे से छिपकर हमला कर दिया, जिसका आठ सिख रेजीमेंट के जवानों व खासकर बिश्नाह के मक्खनपुर के नायब सूबेदार रवैल सिंह ने मुंहतोड़ जवाब दिया। इसमें वह गंभीर रूप घायल व बलिदान तक हो गए, लेकिन हाथ से तिरंगा नहीं छोड़ा।

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    टाइगर हिल पर कब्जा करके बैठे पाकिस्तानी घुसपैठियों को बाहर खदेड़ने की जिम्मेदारी आठ सिख रेजीमेंट को दी गई। सेना की इस टुकड़ी में बिश्नाह के गांव मक्खनपुर के नायब सुबेदार रवैल सिंह व उनका छोटा भाई लाड सिंह भी शामिल थे।

    टाइगर हिल की चढ़ाई इतनी कठिन थी कि जवानों के हाथों के नाखुन और यहां तक कि अंगुलियां घिस गई थीं, लेकिन रवैल सिंह ने साथियों के साथ टाइगर हिल पर चढ़ाई की और वहां कब्जा करके बैठे पाकिस्तानी घुसपैठियों को चुन-चुन कर मौत के घाट उतारा।

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    रवैल सिंह ने जब देखा कि एक बंकर से पाकिस्तानी लगातार गोलियां बरसा रहे हैं और कुछ साथी निशाने पर है तो वह बंकर में घुस गए। आमने-सामने की लड़ाई में उन्होंने चार पाकिस्तानियों को मार गिराया। रवैल सिंह की इस वीरता को देखकर पाकिस्तानियों के हौसले पस्त हो गए और बंकर छोड़कर भाग गए।

    पोस्ट पर कब्जा कर रवैल सिंह ने अपने साथियों के साथ वहां तिरंगा लहराया। वीर जवान अभी टाइगर हिल पर तिरंगा लहराने की खुशी ही मना रहे थे कि पाकिस्तानी सैनिकों ने पीछे से छिपकर हमला कर दिया, जिसमें रवैल सिंह घायल हो गए। लेकिन, उन्होंने एक हाथ में तिरंगा थामे रखा और दूसरे हाथ से गोलियां बरसाते रहे।

    इसके बाद रेजीमेंट के अधिकारियों ने रवैल सिंह को नीचे जाकर इलाज करवाने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने स्पष्ट कहा कि जब तक एक भी पाकिस्तानी यहां जिंदा रहेगा, वह मोर्चा नहीं छोड़ेंगे। आखिरकार देश के लिए लड़ते-लड़ते उन्होंने अपने प्राणों का आहुति दे दी। उनकी इस जिंदादिली के लिए उन्हें मरणोपरांत सेना मेडल से सम्मानित किया गया।

    बेटा भी चला पिता की राह

    पिता के बलिदान से प्रेरणा लेते हुए रवैल सिंह के पुत्र बख्ताबर सिंह भारतीय सेना में सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि माता सुरेंद्र कौर उन्हें पिता की बहादुरी के किस्से सुनाती थीं, जिसे सुन कर उनके रौंगटे खड़े हो जाते थे। दिल में जोश भर जाता था। इसलिए उन्होंने भी फैसला किया कि वह पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए भारतीय सेना में जाकर राष्ट्र सेवा करेंगे।

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    आज बख्ताबर सिंह तीन सिख रेजीमेंट में सेवाएं दे रहे हैं और लेह में तैनात हैं। उन्होंने इंटरप्रेटर कोर्स, चीनी भाषा का अनुवाद करने का विशेष कोर्स किया है और जब भी दोनों सेनाओं के बीच बैठक होती है तो वह अनुवाद कर दोनों तरफ समझाते हैं।

    गांव के प्रवेश पर बने द्वार से मिलती है प्रेरणा

    सरकार की ओर से बिश्नाह के गांव मक्खनपुर के प्रवेश पर एक विशाल प्रवेश द्वार बनाकर नायब सुबेदार रवैल सिंह को श्रद्धांजलि दी है। आज यह प्रवेश द्वार पूरे गांव के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बना हुआ है। गांव के युवा आज भी यहीं पर पहले नतमस्तक होते हैं और उसके बाद अपनी जिदंगी बनाने के लिए गांव की सीमा से बाहर निकलते हैं।

    सेना मेडल से सम्मानित नायब सुबेदार रवैल सिंह के बलिदान से इस गांव के युवाओं का भारतीय सेना में शामिल होने का जज्बा पैदा हुआ और आज गांव के दर्जनों युवा भारतीय सशस्त्र बल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

    रवैल सिंह के बलिदान हुए 26 वर्ष हो गए हैं पर उनकी याद में गांव में बना द्वार हमें प्रेरणा देता है। हम सुबह-शाम उन्हें नमन करते है और यह समझने का प्रयास करते है कि इन सैनिकों ने किस संघर्ष के साथ टाइगर हिल दुश्मनों से जीती होगी। ऐसे योद्धा हमें सेना में जाने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। -सुनील कुमार

    क्षेत्र के युवा नायब सूबेदार रवैल सिंह को अपना आदर्श मानते हैं। जो युवा सेना में जाना चाहते है, वे उनकी याद में बनाए गए द्वार को नमन करके ही भर्ती रैलियों में जाते हैं, क्योंकि जिन लोगों ने देश के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया है वह देश के असली हीरो है। -अमन कुमार

    जब भी गांव में कोई बड़ा त्योहार या वार्षिक दिवस मनाया जाता है, तो पहले बलिदानी रवैल सिंह को नमन किया जाता है फिर उस दिवस को मनाया जाता है। बलिदानी के तीन बेटे हैं। बड़ा दिलावर सिंह पेट्रोल पंप चलाता है, दूसरा बेटा बख्ताबर सिंह सेना में हवलदार है और तीसरा तलविंदर सिंह विदेश में है। उनमें भी देश सेवा का जज्बा पिता रवैल सिंह की तरह बरकरार है। -हैप्पी शर्मा 

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