Sawalkote Hydroelectric Project के निर्माण की बड़ी बाधा दूर, जाने केंद्र के लिए क्यों महत्वपूर्ण है यह प्रोजेक्ट?
रामबन में चिनाब नदी पर प्रस्तावित 1856 मेगावाट की सावलाकोट जलविद्युत परियोजना की राह में पर्यावरण संबंधी बाधा दूर हो गई है। वन सलाहकार समिति ने 847.17 हेक्टेयर वन भूमि के उपयोग की सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है जिससे अगले साल निर्माण कार्य शुरू होने की उम्मीद है। परियोजना की लागत लगभग 23 हजार करोड़ रुपये है।

राज्य ब्यूरो, जागरण, जम्मू। रामबन जिला में चिनाब नदी पर प्रस्तावित 1,856 मेगावाट की सावलाकोट जलविद्युत परियोजना की राह में पर्यावरण संबंधी एक बड़ी रुकावट दूर हो गई है। परिस्थितियों के अनुकूल रहने पर परियोजना का निर्माण कार्य अगले वर्ष शुरू हो जाएगा।
लगभग 23 हजार करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना के लिए वन सलाहकार समिति (एफएसी) ने 847.17 हेक्टेयर (16739.93 कनाल) वन भूमि के उपयोग की सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है और पर्यावरण मंत्रालय की अंतिम मंजूरी शेष रह गई है, जो अगले कुछ समय में मिलने की उम्मीद है।
पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते को स्थगित कर दिया था। ऐसे में केंद्र सरकार का प्रयास है कि यथाशीघ्र सावलाकोट परियोजना को पूरा किया जाए। परियोजना के डिजाइन में यथासंभव संशोधन का भी प्रयास किया जा रहा है। इस परियोजना को शुरू करने में पाकिस्तान की आपत्तियों के अलावा पर्यावरण संबंधी मुद्दे रुकावट बने हुए थे।
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सावलाकोट जिला रामबन में है और प्रस्तावित परियोजना के दायरे में जिला ऊधमपुर और जिला रियासी का भी कुछ भाग आता है। प्रस्तावित सावलाकोट जलविद्युत परियोजना में बांध की ऊंचाई 193 मीटर है।
इस परियोजना को रन आफ रीवर स्कीम के आधार पर डिजाइन किया गया है और इसे दो चरणों में पूरा किया जाना है। पहले चरण में 1406 मेगावाट का उत्पादन किया जाएगा और दूसरे चरण में 450 मेगावाट की क्षमता होगी।
संबंधित अधिकारियों ने बताया कि भारत सरकार ने सिंधु जलसंधि को स्थगित किए जाने के बाद झेलम और चिनाब नदी में जल संचय और वहन क्षमता के प्रभाव का पता लगाने के लिए भी आवश्यक कदम उठाए हैं। उन्होंने बताया कि सावलाकोट जलविद्युत परियोजना की डीपीआर राष्ट्रीय जलविद्युत निगम (एनएचपीसी) द्वारा तैयार की गई है।
जम्मू-कश्मीर सरकार ने भी परियोजना के निर्माण में शामिल होने और इसे अपनी किसी बिजली कंपनी या संयुक्त उद्यम के माध्यम से बनाने की इच्छा व्यक्त की है। जल्द ही इस पर निर्णय लिया जाएगा। उन्होंने बताया कि परियोजना के डिजाइन में भी यथासंभव संशोधन किया जा रहा है, क्योंकि जब इसकी डीपीआर और डिजाइन बना था, उस समय सिंधु जलसंधि प्रभावी थी।
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इसका डिजाइन रन आफ रीवर स्कीम के तहत तैयार किया गया था और बांध की ऊंचाई की एक निश्चित सीमा तक रखी गई थी। इसके बावजूद पाकिस्तान इस परियोजना को लेकर लगातार आपत्तियां जता रहा था और उसकी आपत्तियं भी परियोजना को पूरा करने में एक रुकावट थीं, जो अब नहीं है।
सिंधु जलसंधि को स्थगित करने के बाद भारत जब चाहे चिनाब का पानी रोक सकता है और जहां चाहे उसका संचय एवं प्रयोग कर सकता है।
काटे जाने वाले पेड़ों की जगह पौधे लगाने का है प्रस्ताव :
अधिकारी ने बताया कि गत माह वन सलाहकार समिति की एक बैठक हुई है, जिसमें सावलकोट परियोजना के लिए वन भूमि के उपयोग की मंजूरी दी गई है। इसके आधार पर माहौर, बटोत और रामबन में वनभूमि का उपयोग होगा।
इसके अलावा वन सलाहकार समिति की शर्तों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर सरकार को बांध सुरक्षा से संबंधित सभी आवश्यक अनुमोदन, परियोजना के लिए पर्यावरणीय मंजूरी के साथ अनुपालन की रिपोर्ट भी देनी होगी।
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परियोजना के लिए लगभग 2.2 लाख पेड़ों को काटे जाने की संभावना है और समिति ने संबंधित वन प्रभागों में 2115.878 हेक्टेयर (41770.92 कनाल) बंजर वन भूमि पर पौधे लगाने का प्रस्ताव दिया है।
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