Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    1951 में भी बाढ़ के कारण पूरी तरह से उजड़ गया था जम्मू सीमांत गांव मंगू चक, बुजुर्ग प्रेम लाल बोले- ताजा हो गए जख्म

    Updated: Thu, 04 Sep 2025 07:06 PM (IST)

    जम्मू-कश्मीर के मीरां साहिब के मंगूचक गांव में 1951 में भी ऐसी ही भीषण बाढ़ आई थी जिसमें कई घर बह गए थे। 96 वर्षीय प्रेम लाल ने बताया कि 26 अगस्त को आई बाढ़ ने उन्हें पुराने जख्मों की याद दिला दी। उस समय कई लोगों ने पेड़ों को पकड़कर जान बचाई। प्रेम लाल ने सुरक्षाबलों और आपदा प्रबंधन टीमों का शुक्रिया अदा किया जिन्होंने ग्रामीणों को सुरक्षित निकाला।

    Hero Image
    सरकार से उचित मुआवजे की उम्मीद जताई है।

    संवाद सहयोगी, जागरण, मीरां साहिब। आपदा से जूझ रहे गांव मंगूचक में ऐसी ही भीषण बाढ़ भारत-पाकिस्तान की आजादी के चार साल बाद 1951 आई थी। उस समय सितंबर के मध्य में आई बाढ़ के कारण गांव के 30 घर जोकि पूरी तरह से कच्चे हुआ करते थे, बाढ़ की चपेट में आकर पूरी तरह से बह गए थे। गांव के लोगों को उस दौरान एक बार फिर अपने घरों को बनाना पड़ा था।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    गांव के एकमात्र बुजुर्ग प्रेम लाल ने बताया कि बाढ़ की इस तबाही ने एक बार फिर उन्हें वह घटना याद करा दी। प्रेम लाल ने बताया कि उनका जन्म 1929 में हुआ था और वर्तमान में आज वह 96 वर्ष के हो गए हैं। वह बताते हैं कि अब इस गांव में उनकी उम्र का कोई भी बुजुर्ग वर्तमान में नहीं है।

    यह भी पढ़ें- बदमाशों का दुस्साहस: बड़ी ब्राह्मणा में आंखों में मिर्ची डालकर नकाब पोश लुटेरों ने लूट लिए 60 हजार रुपए

    लोगों ने पेड़ों को पकड़ बचाई थी जान

    बुजुर्ग ने बताया कि गांव में 1951 में इसी बलोल नाले में आई बाढ़ के कारण उनके गांव का नामोनिशान ही मिट गया था। उस समय सुबह करीब 6 बजे बाढ़ का पानी गांव में घुस आया। देखते ही देखते पानी बढ़ता चला गया और गांव के अधिकतर लोग पानी में बह गए। कुछ लोगों की मौत भी हो गई जबकि कई लोगों ने पेड़ों को पकड़कर अपनी जान बचाई।

    1951 के मंजर सामने आने लगे

    उनका कहना है कि उस समय उनके साथ लगते गांव ललयाल, खंडवाल आदि में भी लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। वहां भी कइयों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। बुजुर्ग प्रेमलाल बताते हैं कि 26 अगस्त को आई बाढ़ ने पुराने जख्मों को फिर ताजा कर दिया। गांव में 4 से 5 फीट तक पानी आया गया था। 1951 के सारे मंजर उनकी आंखों के सामने आने लगा। एक बार तो लगा इस बार मौत निश्चित है परंतु फिर कुछ ऐसा हुआ कि जान में जान आ गई।

    यह भी पढ़ें- दक्षिणी कश्मीर में स्थिति चिंताजनक, बाढ़ जैसे हालात, सैंकड़ों इलाके जलमग्न, हजारों लोग फंसे

    सुरक्षाबलों-आपदा प्रबंधन का शुक्रिया

    सुरक्षाबलों का शुक्रिया अदा करते हैं प्रेमलाल ने कहा कि समय पर गांव में एनडीआरएफ एसडीआरएफ की टीमों के माध्यम से गांव के सभी लोगों को सुरक्षित जगह पर पहुंचाया गया। 26 अगस्त की बाढ़ ने एक बार फिर हमारे गांव का सब कुछ उजाड़ दिया। घरों में रखा धान, गेहूं, जहां तक की कीमती सामान, जरूरी दस्तावेज, बच्चों के बैग, यूनिफार्म सब कुछ सैलाब में बह कर चला गया है। गांव के लोगों के पास आज कुछ भी नहीं रहा। इस सदमे से उबरने के लिए आप लोगों को सालों लग जाएंगे।

    बाढ़ अगर रात को आती तो काफी नुकसान होता

    बुजुर्ग ने भगवान का शुक्र मनाते हुए कहा कि 26 अगस्त को अगर कहीं रात को सोते समय गांव में बाढ़ का पानी आ जाता तो काफी जानी नुकसान हो सकता था। लेकिन भगवान ने उन्हें कुशल बचा लिया। उनके अनुसार गांव में हुए नुकसान की लिस्ट तो बनाई जा रही हैं लेकिन लोगों को मुआवजा भी उचित मिलना चाहिए।

    यह भी पढ़ें- लद्दाख आंदोलन को समर्थन देने देशभर से आ रहे सामाजिक कार्यकर्ता, 12 सितंबर को लेह, 13 को कारगिल में करेंगे बैठकें

    ऐसा ना हो कि पीड़ित लोगों को दो चार हजार मुआवजा देकर ही निपटा दिया जाए। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगर देश के गृहमंत्री अमित शाह ने खुद मौके पर पहुंचकर पीड़ित लोगों का नुकसान देखा है तो उन्हें लगता है कि गांव के हर पीड़ित व्यक्ति को उचित मुआवजा मिलेगा।

    comedy show banner
    comedy show banner