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    आप विधायक मलिक ने PSA को दी चुनौती, जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने सरकार को जारी किया नोटिस, 14 अक्टूबर तक मांगा जवाब

    Updated: Wed, 24 Sep 2025 06:50 PM (IST)

    जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने डोडा के पूर्व विधायक मेहराज मलिक की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार की है। मलिक ने जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) 1978 के तहत लगाए गए पब्लिक सेफ्टी एक्ट को चुनौती दी है। अदालत ने सरकार को 14 अक्टूबर तक जवाब दाखिल करने का समय दिया है। मलिक की कानूनी टीम ने आदेश को मनमाना बताया और 5 करोड़ मुआवजे का भी दावा किया है।

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    मामले की अगली सुनवाई 14 अक्टूबर को होगी।

    डिजिटल डेस्क, जागरण, जम्मू। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने बुधवार को डोडा (पूर्व) के विधायक मेहराज मलिक द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार कर ली है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए), 1978 के तहत उन पर लगाए गए पब्लिक सेफ्टी एक्ट को चुनौती दी है।

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    न्यायमूर्ति विनोद चटर्जी कौल ने मामले की सुनवाई के बाद सरकार के प्रिंसिपल सेक्रेटरी, गृह विभाग, जिला मजिस्ट्रेट डोडा, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डोडा और ज़िला जेल कठुआ के अधीक्षक को नोटिस जारी किए।

    जम्मू-कश्मीर सरकार की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता मोनिका कोहली ने खुली अदालत में ये नोटिस स्वीकार किए। अदालत ने सरकार को अगली सुनवाई की तारीख 14 अक्टूबर तक या उससे पहले अपना जवाब दाखिल करने का समय दिया।

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    विचाराधीन हिरासत आदेश, संख्या 05/2025 दिनांक 8 सितंबर, 2025 को जम्मू-कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट की धारा 8 के तहत जिला मजिस्ट्रेट डोडा द्वारा पारित किया गया था। मलिक की कानूनी टीम जिसका नेतृत्व वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल पंत कर रहे थे और जिसमें अधिवक्ता एसएस अहमद, अप्पू सिंह सलाथिया, एम जुलकरनैन चौधरी और जोगिंदर सिंह ठाकुर शामिल थे, ने तर्क दिया कि यह आदेश मनमाना और व्यक्तिगत पूर्वाग्रह से प्रेरित था।

    मलिक के वकील ने मामले की गंभीरता का हवाला देते हुए अदालत से सरकार को जल्द से जल्द अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश देने का आग्रह किया। अधिवक्ता पंत ने कहा कि बंदी एक निर्वाचित प्रतिनिधि है जिसे गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिया गया है। जनता उससे अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने की अपेक्षा करती है। इसलिए मामले की शीघ्र सुनवाई की जानी चाहिए।

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    हिरासत आदेश को रद्द करने की मांग के अलावा मलिक ने प्रतिवादियों से 5 करोड़ रुपये के मुआवजे का दावा भी किया है। उन्होंने अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन और उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में कटौती का आरोप लगाया है।

    उनकी याचिका में हिरासत की वैधता को चुनौती देने वाले कई आधार सूचीबद्ध हैं। उन्होंने डोडा जिला मजिस्ट्रेट द्वारा उचित विवेक का प्रयोग न करने और राजनीतिक कारणों से अपने अधिकारों का कथित दुरुपयोग करने का भी आरोप लगाया है।

    इस पर अदालत ने निजी प्रतिवादी डोडा के डिप्टी कमिश्नर एस हरविंदर सिंह (आईएएस) को भी नोटिस जारी किया है। इस मामले को "व्यापक सार्वजनिक महत्व" का बताया गया है और इस पर कोर्ट 14 अक्टूबर को फिर से विचार करेगी।

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    आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर लोक सुरक्षा अधिनियम, 1978, जिसके तहत मलिक को हिरासत में लिया गया है, राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए निवारक निरोध की अनुमति देता है। यह कानून अपने व्यापक दायरे और बिना मुकदमे के लंबी हिरासत अवधि के कारण लंबे समय से बहस और आलोचना का विषय रहा है।

    फिलहाल सभी की निगाहें 14 अक्टूबर की सुनवाई पर टिकी हैं। जब सरकार द्वारा अदालत के समक्ष अपना जवाब पेश करने की उम्मीद है। यह परिणाम जम्मू-कश्मीर में निवारक निरोध शक्तियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों के अधिकारों के बीच एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम कर सकता है।