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    जम्मू-कश्मीर में मां बनने के लिए आईवीएफ का सहारा ले रही महिलाएं, विशेषज्ञों ने बताए ये कारण

    Updated: Thu, 24 Jul 2025 03:17 PM (IST)

    जम्मू-कश्मीर में बांझपन की समस्या बढ़ रही है जिसके चलते आईवीएफ केंद्रों की संख्या में वृद्धि हो रही है। शहरी क्षेत्रों में प्रजनन दर 1.2% और ग्रामीण क्षेत्रों में 1.5% तक गिर गई है। देरी से शादी तनाव और पीसीओएस जैसी समस्याएं बांझपन के मुख्य कारण हैं। डॉक्टर 28 साल की उम्र से पहले बच्चे पैदा करने की सलाह देते हैं।

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    नशीली दवाओं के सेवन से भी बांझपन की समस्या बढ़ रही है। समय पर चिकित्सीय सलाह लेना महत्वपूर्ण है।

    रोहित जंडियाल, जागरण, जम्मू। तेजी से बदलती जीवनशैली हो या फिर आतंकवाद, बेरोजगारी, तनाव व स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो, इसका असर महिला व पुरुष दोनों की सेहत पर पड़ रहा है। कुछ वषों से नशे की बढ़ी समस्या से भी कई समस्याएं उत्पन्न की हैं। इनमें एक बांझपन भी है।

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    इस कारण जम्मू-कश्मीर में भी अब महिलाएं मां बनने के लिए बड़ी संख्या में आईवीएफ को अपना रही हैं। यही कारण है कि अब यहां आईवीएफ केंद्रों की संख्या भी बढ़ रही है और डॉक्टर भी इस विशेषज्ञता को अपना रहे हैं।

    परिवार कल्याण विभाग तथा नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा समय में जम्मू कश्मीर में शहरी क्षेत्रों में प्रजनन दर मात्र 1.2 फीसद रह गई है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 1.5 फीसद है। जम्मू कश्मीर की कुल प्रजनन दर 1.4 है।

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    वहीं इंटरनेशनल जरनल आफ रिप्रोडक्टिव कान्ट्रासेप्शन आब्सटेट्रिक्स एंड गायनाकोलाजी में 2020 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार कश्मीर में लगभग 10-15 प्रतिशत आबादी बांझपन से जूझ रही है। पुरुष और महिलाएं दोनों ही इस समस्या से जूझ रहे हैं।

    जम्मू पहुंची नोवा आईवीएफ में चीफ क्लिनिकल मेंटोर डा. सोनिया मलिक का कहना है कि उनके पास जम्मू-कश्मीर से कई दंपत्ति दिल्ली में इलाज के लिए आते हैं। यह देखने में आया है कि कश्मीर में कई पुरुषों में शुक्राणुओं की गुणवत्ता बहुत खराब है।

    पुरुषों में बांझपन शुक्राणुओं की अनुपस्थिति या कम स्तर या शुक्राणुओं के असामान्य आकार और गति के कारण होता है। कश्मीर में कई पुरुषों में ऐसी स्थिति देखने को मिली है। महिलाओं की स्थिति भी अच्छी नहीं है। शिक्षा का स्तर बढ़ने से महिलाएं आत्मनिर्भर होना चाहती हैं। इस कारण शादी देरी से करती हैं। इस कारण भी मां नहीं बन पाती। आइवीएफ ही विकल्प बचता है। लेकिन इसमें भी एक देरी के बाद आती हैं।

    आईवीएफ पर काम कर रही जम्मू की डॉ. पूनम पंडोत्रा का कहना है कि जम्मू-कश्मीर महिलाओं के गर्भवती न होने की समस्या के कई कारण है। बांझपन के कारणों में पीसीओएस, अंडों की कम मात्रा और गुणवत्ता और फैलोपियन टयूब्स में रूकाबट के कारण होती है। इसके अतिरिक्त देरी से शादी होना, शहरीकरण होना, तनाव होना भी प्रमुख कारण हैं।

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    जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद, कश्मीर व पहाड़ी क्षेत्रों से बड़े पैमाने पर हुए पलायन ने भी प्रजनन दर को कम किया है। उनका कहना है कि उनके पास कई जोड़े आइवीएफ के लिए आते हैं और अब इनकी संख्या बढ़ी है।

    अगर चालीस वर्ष से पहले आयु की महिलाएं आइवीएफ करवाने के लिए आती हैं तो इसकी सफलता अस्सी प्रतिशत तक होने की संभावना है। लेकिन इसके बाद पचास प्रतिशत ही सफलता मिल पाती है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को अपनी जांच समय पर करवानी चाहिए।

    वरिष्ठ गायनाकालजोजिस्ट और आइवीएफ पर काम करने वाली डॉ. मनीषा भगत का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में तीस की उम्र से अधिक में शादी करने वाली लड़कियों की संख्या बहुत अधिक है। अपना करियर संवारने के लिए यह शादी के बाद भी कुछ वर्ष के लिए संतान नहीं चाहती। बाद में इनके लिए मां बनना भी मुश्किल हो पाता है।

    बहुत ही लड़कियां चालीस के आसपास आइवीएफ के लिए आती है। उन्होंने 28 साल की उम्र से पहले बच्चे पैदा करने की सलाह दी। इसके बाद अंडों की गुणवत्ता और संख्या कम हो जाती है। पीसीओएस जैसी समस्याएं भी हैं जो काफ़ी महिलाओं को प्रभावित करती हैं। पीसीओएस प्रजनन क्षमता के लिए अच्छी खबर नहीं है और समाज में जीवनशैली में बदलाव के कारण पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं की संख्या बढ़ रही है।

    डॉक्टरों का कहना है कि नशे की समस्या ने भी महिला व पुरुष दोनों में बांझपन को बढ़ाया है। उनका कहना है कि जोड़ों को समय पर चिकित्सीय सलाह लेनी चाहिए और इलाज में देरी नहीं करनी चाहिए।

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    अवसाद की समस्या अधिक

    जम्मू: कुछ वर्ष पहले 2020 में कश्मीर विश्वविद्यालय के शोधकर्ता मसर्रत अली ने कश्मीर में 18 से 45 वर्ष की आयु की बांझ महिलाओं के मनोविज्ञान पर एक अध्ययन किया। इसमें शामिल 50 प्रतिशत महिलाओं से अधिक महिलाओं में मध्यम अवसाद, 20 प्रतिशत में गंभीर अवसाद और 16 प्रतिशत में हल्के अवसाद के लक्षण पाए गए।