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    हाईकोर्ट का फटकार भरा आदेश: ड्रेस कोड छोड़ रंगीन कपड़े पहनने पर अधिकारियों-कर्मचारियों पर होगी अनुशासनात्मक कार्रवाई

    Updated: Tue, 12 Aug 2025 07:49 PM (IST)

    जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने कर्मचारियों को वर्दी में आने का सख्त निर्देश दिया है उल्लंघन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी है। वहीं एक अन्य मामले में अदालत ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत तीन हिरासत आदेशों को रद्द कर दिया क्योंकि उन्हें मनमाना और संविधान के खिलाफ पाया। अदालत ने कहा कि हिरासत के लिए पुराने और अप्रासंगिक मामलों पर भरोसा किया गया था।

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    जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट कर्मचारियों के लिए ड्रेस कोड।

    जेएनएफ, जागरण, जम्मू। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने अपने सभी अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए निर्धारित वर्दी नियमों के कड़ाई से पालन का निर्देश जारी किया है। अदालत ने चेतावनी दी है कि ड्रेस कोड का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी।

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    रजिस्ट्रार जनरल एमके शर्मा द्वारा जारी एक आदेश में चिंता व्यक्त की कि कुछ कर्मचारी जिनमें रजिस्ट्री के अधिकारियों से जुड़े निजी स्टाफ, ई-कोर्ट-आईटी सेक्शन के कर्मचारी, आर्डरली, और चालक शामिल हैं निर्धारित वर्दी के बजाय साधारण कपड़ों में ड्यूटी पर आ रहे हैं।

    आदेश में कहा गया है कि यह प्रथा अनुशासनहीनता को बढ़ावा दे रही है और हाईकोर्ट के सुचारु संचालन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। आदेश में सभी श्रेणी के कर्मचारियों, चाहे वे गजटेड हों या नान-गज़टेड के लिए ड्रेस कोड का पालन अनिवार्य बताया गया है।

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    निर्देश में सभी अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि उनके अधीनस्थ कर्मचारी ड्रेस कोड का कड़ाई से पालन करें। रजिस्ट्रार जनरल एमके शर्मा ने स्पष्ट किया कि अनुपालन न करने पर इसे गंभीरता से लिया जाएगा और अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

    यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है और इसकी जानकारी मुख्य न्यायाधीश के प्रधान सचिव, रजिस्ट्रार विजिलेंस, रजिस्ट्रार जुडिशियल, जम्मू-कश्मीर व लद्दाख विधिक सेवा प्राधिकरणों के सदस्य सचिव, निदेशक जेके न्यायिक अकादमी, रजिस्ट्रार कंप्यूटर सहित संबंधित अधिकारियों को भेजी गई हैं।

    तीन पीएसए हिरासत आदेश रद्द

    जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत किश्तवाड़, उधमपुर और पुंछ के तीन निवासियों के खिलाफ जारी हिरासत आदेशों को रद्द कर दिया है। अदालत ने इन्हें मनमाना और संविधान के सुरक्षा प्रावधानों का उल्लंघन बताया।

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    जस्टिस एमए चौधरी ने तीनों फैसले सुनाते हुए कहा कि हिरासत प्राधिकारी ने पुराने और अप्रासंगिक मामलों पर भरोसा किया, हिरासत के खिलाफ आवेदन करने की समय-सीमा स्पष्ट नहीं बताई और कई मामलों में वह सामग्री भी पूरी नहीं दी जिस पर आदेश आधारित था।

    किश्तवाड़ जिला प्रशासन द्वारा नूर दीन की पीएसए हिरासत को रद्द करते हुए उच्च न्यायालय ने पाया कि आदेश 2008 की एफआईआर पर आधारित था, जिसमें वह बरी हो चुका है।

    वहीं, उधमपुर जिला प्रशासन द्वारा हफीज मोहम्मद की हिरासत आदेश को समाप्त करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि गोवंश तस्करी के मामलों में केवल जुर्माना लगाया गया था, जिससे लोक व्यवस्था भंग होने का आरोप साबित नहीं होता।

    उधर, पुंछ जिला प्रशासन द्वारा मोहम्मद हुसैन की हिरासत को निरस्त करते हुए कोर्ट ने पाया कि 1991–92 के पुराने मामलों पर भरोसा किया गया, वारंट की तामील को लेकर विरोधाभासी रिपोर्ट थीं और हिरासत के आधार पुलिस डोजियर की लगभग हूबहू नकल थी। अदालत ने तीनों बंदियों की तत्काल रिहाई का आदेश दिया, यदि वे किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं।

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