जम्मू-कश्मीर में वनों के कटाव-जलवायु परिवर्तन से आसमां से बरस रही आपदा, एक सप्ताह में 4 बार फटे बादल
जम्मू-कश्मीर में विकास के साथ-साथ पर्यावरण से खिलवाड़ बढ़ा है जिससे बादल फटने की घटनाएं बढ़ी हैं। इस सप्ताह कठुआ और किश्तवाड़ में बादल फटने से कई लोगों की जान गई है। विशेषज्ञ बताते हैं कि नमी भरी हवाओं के पहाड़ों से टकराने और अनियंत्रित विकास के कारण ऐसी घटनाएं हो रही हैं।

राज्य ब्यूरो, जागरण, जम्मू। कुछ वर्षाें में जम्मू-कश्मीर में तेजी के साथ विकास हुआ है लेकिन कई बार यह देखा गया है कि विकास के नाम पर पर्यावरण के साथ खिलवाड़ भी हुआ है।
कई पहाड़ों को काटना, वृक्षों को काट कर उनकी जगह कोई भी वृक्ष नहीं लगाने के कारण पर्यावरण परिवर्तन भी तेजी के साथ हो रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों में भी निर्माण कार्य बढ़े हैं। यही कारण है कि बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाएं भी तेजी के साथ बढ़ रही है। इसी सप्ताह चार जगहों पर जम्मू-कश्मीर में बादल फट चुके हैं।
रविवार को जम्मू संभाग के कठुआ जिले में बादल फटने के कारण 7 लोगों की मौत हो गई जबकि इससे पहले किश्तवाड़ के चशोती में बादल फटने से अब तक 65 लोगों की मौत हो गई। वहीं कश्मीर में भी बादल फटने की दो घटनाएं हुई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार बादल फटने की घटनाएं बढ़ने के कई कारण हैं।
इस बार जुलाई महीने में जम्मू संभाग के रियासी और उधमपुर जिलों को छोड़ दिया तो अन्य जगहाें पर मानसून सुस्त था। अगस्त महीने में ही मानसून सक्रिय हुआ है। हवा में नमी बढ़ी है।
उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में जब नमी से भरी गर्म हवाएं पहाड़ों से टकराती हैं तो बादल फटते हैं। जिन जगहों पर भी बादल फटे हैं, वे उच्च पर्वतीय तो हैं ही, छोटे स्थान हैं और इन जगहों पर बहुत कम समय में ही नमी, हवा की गति, तापमान की स्थिति मिनटों में बदल जाती है। इस कारण ऐसे पहाड़ी क्षेत्रों में कम समय में ही यह घटनाएं हो जाती हैं।
शेर-ए-कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय जम्मू में मौसम विशेषज्ञ डा. मोहिंद्र सिंह का कहना है कि कठुआ और किश्तवाड़ में बादल फटने की घटना को इसी रूप में देखा जा सकता है। अनियंत्रित विकास से पर्यावरण में भी बड़ा बदलाव आया है।
इस प्रकार की घटनाओं को रोकना है तो आने वाले दिनों में पहाड़ों के साथ खिलवाड़ बंद हो और जिस जगह पर एक पेड काटा है, वहां पर दस पेड़ लगाए जाएं। यही नहीं हमें अपने प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण भी करना होगा ताकि संतुलन बना रहे।
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क्या है बादल फटना
मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि जब बहुत कम समय में एक छोटे से क्षेत्र में भारी मात्रा में बारिश हो जाती है अर्थात एक घंटे में 100 एमएम बारिश हो जाती है तो उसे बादल फटना कहते हैं। जमीन इस पानी को सोख नहीं पाती और बाढ़, भूस्खलन जैसी स्थिति उत्पन्न् हो जाती है। जंगलों की कटाई, अनियोजित निर्माण, पहाड़ों पर निर्माण से भी इस प्रकार की घटनाएं बढ़ने की आशंका बनी रहती है।
कब कब हुई बादल फटने की घटनाएं
वर्ष कुल घटनाएं
- 2020 : 07
- 2021 : 11
- 2022 : 14
- 2023 : 16
- 2024 : 15
- 2025 : 13
बादल फटने की कुछ प्रमुख घटनाएं
- जुलाई 2022: श्री बाबा अमरनाथ धाम में बादल फटने के कारण 16 लोगों की मौत हो गई थी। उस समय भवन में दस हजार से अधिक श्रद्धालु मौजूद थे। गैर अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इसमें कई लोग बह भी गए थे जिनका आज तक पता नहीं चल पाया।
- 20 अप्रैल 2025 को रामबन ज़िला के सेरी बगना और धर्मकुंड गांव में बादल फटने की घटना हुई हुई थी। इसमें हालांकि तीन लोगों की ही मौत हुई थी लेकिन भारी तवाही देखने को मिली थी। 35 घर बाढ़ की चपेट में आ गए थे। जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग कई जगहों पर भूस्खलन के कारण बंद हुआ था। जिससे यातायात पूरी तरह प्रभावित हुआ।
- -जुलाई 2025 में पुंछ के लोरन क्षेत्र में बादल फटने से एक व्यक्ति की माैत हुई। इसमें भी कई घरों को नुकसान पहुंचा था।
- अगस्त 2025: किश्तवाड़ जिले के चशोती में बादल फटने से अब तक 65 लोगों की जान चली गई है। इसमें 75 लोग लापता है जबकि 100 के करीब घायल हुए हैं।
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