अचानक आता है सैलाब... और बह जाता है सबकुछ, आखिर क्या है बादल फटने के पीछे की साइंस; कैसे कर सकते हैं बचाव?
शिमला में भारी बारिश से तबाही मची है जिससे बुनियादी ढांचे को नुकसान हुआ है और 170 लोगों की जान गई है। मंडी में बादल फटने (What is Cloudburst) से कई लोगों की मौत हो गई और चंबा में भी ऐसी ही घटना हुई जिससे 300 लोग बेघर हो गए। लेकिन सवाल है कि आखिर बादल कैसे फटते हैं और क्या इसे रोका जा सकता है?

डिजिटल डेस्क, शिमला। हिमाचल प्रदेश में हर साल की तरह इस बार भी बारिश का कोहराम जारी है। प्रदेश में लगातार हो रही मानसूनी बारिश (What is Cloudburst) से न केवल बुनियादी ढांचे पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। बल्कि जान-माल को भी काफी नुकसान पहुंचा है।
राज्य आपातकालीन संचालन केंद्र (एसईओसी) की माने तो अब तक प्रदेश में बारिश से जुड़ी घटनाओं में 170 लोगों की जान चली गई है। वहीं, 1300 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है। मंडी में 30 जून को लगभग 12 जगहों पर बादल फटने की घटना सामने आई, जिसमें कई लोगों की मौत हुई।
इसके बाद से मंडी (Cloudburst Kya hai) और अन्य इलाकों में तेज बारिश और भूस्खलन से जुड़ी घटनाएं बढ़ गई हैं। बुधवार को चंबा के भट्टियात में भी बादल फटने की घटना सामने आई, जिससे कई लोगों के घर उजड़ गए और 300 लोगों को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा।
पहाड़ी इलाकों में अचानक बादल कैसे फट जाता है। क्या इस पर नियंत्रण किया जा सकता है, ऐसी आपदा से कैसे बचा जा सकता है? जैसे कई सवाल हैं, जो आपके जेहन में आते होंगे। इसी कड़ी में आइए, इनके जवाबों को सिलसिलेवार ढंग से जानते हैं।
आखिर कैसे फटता है बादल?
बादल फटने के पीछे की घटना के पीछे भी एक साइंस है। दरअसल, जब गर्म हवाएं, जमीन से बादलों की ओर ऊपर उठती है तो साथ में कुछ बूंदों को भी साथ लेकर जाती हैं।
इस तरह से उचित प्रकार से बारिश नहीं हो पाती और इस तरह से बादलों में बहुत ज्यादा नमी हो जाती है। इसके साथ ही भार के कारण हवा भी कमजोर हो जाती है, इसलिए ये हवाएं ज्यादा ऊपर तक नहीं जा पाती। अंत में एक ही जगह पर कई लाख लीटर पानी इकट्ठा हो जाता है और अचानक बादलों के आपसे में टकराने से तेज बारिश होती है, जिसे बादल फटना कहते हैं। उस दौरान बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं।
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पहाड़ों पर क्यों होती हैं ये घटनाएं?
बादल फटने की घटनाएं पहाड़ी क्षेत्रों में जैसे हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में ज्यादा होती है। वातावरण में नमी और गर्मी का स्तर चरम पर होता है तो बादल फट जाते हैं। ये घटनाएं समतल क्षेत्रों में कम और पहाड़ी क्षेत्रों में ज्यादा होती है। यह इसलिए क्योंकि यहां हवा का प्रवाह काफी संकुचित होता है।
बादल फटने की घटना से कैसे करें बचाव?
बादल फटने की घटना अप्रत्याशित और प्राकृतिक होती है। लेकिन इससे बचाव के लिए कुछ बिंदुओं पर गौर करना आवश्यक है। सबसे पहले लोगों को मौसम विभाग की चेतावनी और एडवाइजरी पर ध्यान देना चाहिए। पहाड़ी इलाकों में जल निकासी व्यवस्था व्यवस्थित होनी चाहिए। लोगों को इस बात से आगाह कराना चाहिए वे नदी या ढलान वाली जगहों पर घर न बनाएं।
बादल फटना या क्लाउड बर्स्ट बारिश होने का एक्सट्रीम फार्म है। बादल फटने के कारण होने वाली वर्षा लगभग 100 मिलीमीटर प्रति घंटा की दर से होती है। इसे मेघ विस्फोट या मूसलाधार वर्षा भी कहते हैं। बादल फटने की घटना अमूमन पृथ्वी से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर होती है। हिमालयी क्षेत्रों में मूसलाधार बारिश से तबाही मचाने वाले बादल लगभग ढाई हजार से तीन हजार किलोमीटर का आसमानी सफर तय कर बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से चल कर हिमालयी क्षेत्रों तक पहुंचते हैं और मूसलाधार बारिश कर तबाही मचा देते हैं। इन्हें क्यूमोलोनिंबस बादल के नाम से पहचानते हैं। बादलों में एकाएक जब नमी पहुंचनी बंद हो जाती है या बहुत ठंडी हवा का झोंका इसमें प्रवेश कर जाता है तो यह सफेद बादल एकदम काले हो जाते हैं और तेज गरज के साथ उसी जगह पर अचानक बरस पड़ते हैं। वास्तव में जल कणों से भरपूर इन बादलों की राह में कोई व्यवधान आता है तो ये वहां टकरा कर बरस पड़ते हैं। इतना ही नही यदि कहीं बादल के रास्ते में गर्म हवाएं टकरा जाए तब भी बादल के फटने की आशंका बनी रहती है। पानी इतनी तेज रफ्तार से गिरता है कि एक सीमित जगह पर कई लाख लीटर पानी एक साथ जमीन पर गिर पड़ता है।- संदीप कुमार वरिष्ठ वैज्ञानिक मौसम विज्ञान केंद्र
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