Himachal High Court: सरकार से अपेक्षा नहीं वह आरोपितों के साथ खड़ी होकर आदेश को चुनौती दे, कोर्ट ने किस मामले में की टिप्पणी
Himachal Pradesh High Court हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें पुलिसकर्मियों के खिलाफ आरोपों की जांच के आदेश को चुनौती दी गई थी। न्यायाधीश विरेंदर सिंह ने कहा कि अपराध राज्य के विरुद्ध होते हैं और सरकार से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह आरोपियों के साथ खड़ी हो।

विधि संवाददाता, शिमला। Himachal Pradesh High Court, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने दो पुलिसकर्मियों के विरुद्ध लगाए आरोपों की जांच करने के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका को अमान्य ठहराते हुए खारिज कर दिया। न्यायाधीश विरेंदर सिंह ने याचिका को खारिज कर कहा कि अपराधों को राज्य के विरुद्ध अपराध माना जाता है। राज्य से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह आरोपितों के साथ खड़े होकर उनके विरुद्ध दिए आदेश को चुनौती दे।
अपराध में मुख्यतः नागरिकों या उनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना शामिल होता है। जिस व्यक्ति के विरुद्ध अपराध किया जाता है, वह पीड़ित होता है, जो अपराधियों के हाथों कष्ट सहता है और राज्य ऐसे अपराधियों के विरुद्ध मुकदमा चलाता है।
संविधान का अनुच्छेद 14 भी इस सिद्धांत पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण का हकदार है। राज्य सरकारी कर्मचारियों और आम नागरिकों के बीच भेदभाव नहीं कर सकता। राज्य उस व्यक्ति की रक्षा नहीं कर सकता जिसके विरुद्ध कोई अपराध आरोपित किया गया हो और सक्षम न्यायालय ने सक्षम प्राधिकारी को मामले की जांच करने का निर्देश दिया हो।
शिकायतकर्ता अनु बाला ने दो पुलिसकर्मियों के विरुद्ध अपराध का आरोप लगाया था, जो पुलिस चौकी रैहन पुलिस थाना नूरपुर में पुलिस अधिकारी के रूप में तैनात थे।
सक्षम न्यायालय ने 20 जनवरी, 2025 को आदेश पारित कर एसएचओ को मामले का कानून के अनुसार जांच करने का निर्देश दिया। सरकार ने इस आदेश को हाई कोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर कर चुनौती दी थी।
हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि राज्य सरकार को निचली अदालत द्वारा पारित आदेश का विरोध करने वाला 'पीड़ित व्यक्ति' नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उक्त आदेश में राज्य के विरुद्ध कोई निर्देश जारी नहीं किया गया है। चूंकि प्रस्तावित अभियुक्त सरकारी कर्मचारी हैं, इसलिए राज्य को यह अधिकार नहीं दिया जाएगा कि वह निचली अदालत द्वारा पारित आदेश को चुनौती दे।
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