दीवाली के एक महीने बाद मनाई जाती है 'बूढ़ी दीवाली', श्रीराम और परशुराम से जुड़ी है मान्यता; क्या है पौराणिक महत्व
बूढ़ी दीवाली (Budhi Diwali 2024) हिमाचल प्रदेश का एक अनोखा त्योहार है जो दीवाली के ठीक एक महीने बाद मनाया जाता है। यह त्योहार चार दिनों तक चलता है और इस दौरान मशालें जलाई जाती हैं पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर लोग झूमते हैं और विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। बूढ़ी दीवाली के पीछे कई पौराणिक मान्यताएं हैं।

डिजिटल डेस्क, शिमला। हिमाचल प्रदेश एक ऐसा राज्य है जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध संस्कृति, और गर्मजोशी भरे लोगों के लिए प्रसिद्ध है। हिमाचल अपनी विविध संस्कृति के लिए जाना जाता है। हिमाचल प्रदेश में ऐसा ही एक त्योहार मनाया जाता है, जिसे बूढ़ी दीवाली (Budhi Diwali) कहते हैं।
हिमाचल के कुल्लू, सिरमौर और शिमला जिले के कुछ इलाके में बूढ़ी दीवाली का त्योहार मनाया जाता है। दीवाली के ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली का पर्व मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार आज यानी 30 नवंबर को मनाया जाएगा। बूढ़ी दीवाली चार दिनों तक मनाई जाती है। बूढ़ी दीवाली के दिन मशालें जलाई जाती हैं, पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर लोग झूम उठते हैं।
भगवान राम से जुड़ी है मान्यता
मान्यता है कि इस बूढ़ी दीवाली का जुड़ाव त्रेता युग से है। ऐसा माना जाता है कि अयोध्या से अधिक दूर होने के कारण इस क्षेत्र के लोगों को श्रीराम के अयोध्या आने की खबर देरी से मिली। यहां के लोगों को लगा कि श्रीराम आज के ही दिन अयोध्या लौटे हैं। इसी खुशी में अमावस्या को लोगों ने दीवाली की तरह मनाया। बाद में इसे बूढ़ी दीवाली कहा गया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
बूढ़ी दीवाली के पीछे ये भी है एक पौराणिक मान्यता
बूढ़ी दीवाली की एक भगवान परशुराम से भी जुड़ी है। जिला कुल्लू का निरमंड 'पहाड़ी काशी' के नाम से प्रसिद्ध है। यह जगह भगवान परशुराम ने बसाई थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार जब वह अपने शिष्यों के साथ भ्रमण कर रहे थे। उसी दौरान एक दैत्य ने सर्पवेश में भगवान परशुराम और उनके शिष्यों पर आक्रमण कर दिया था।
जिस पर भगवान परशुराम ने अपने परसे से उस दैत्य का बध किया था। दैत्य का वध होने पर वहां के लोगों ने जमकर खुशियां मनाई। जिसे आज भी यहां पर बूढ़ी दीवाली वाले दिन मनाया जाता है।
चार दिनों तक मनाया जाता है यह त्योहार
बूढ़ी दीवाली के दिन लोक आस्था और परंपरा का अनूठा संगम देखने को मिलता है। चार दिनों तक मनाई जाने वाली बूढ़ी दीवाली के पहले दो दिन मशालें जलाई जाती हैं। बाकी दिन लोग विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जिनमें पारंपरिक नृत्य, संगीत और खेल शामिल हैं। लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर त्योहार का आनंद लेते हैं और अपने जीवन में सकारात्मकता और आशा की भावना को मजबूत करते हैं।
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