Kargil Vijay Diwas: 28 वर्ष की उम्र में पति की शहादत, गोद में थी तीन माह की बेटी, वीरनारी किरणबाला के संघर्ष की कहानी
Kargil Vijay Diwas कारगिल विजय दिवस पर शहीद प्रवीण कुमार की बहादुरी को याद किया गया। 28 वर्ष की उम्र में उन्होंने देश के लिए बलिदान दिया था उस वक़्त उनकी बेटी निशा सिर्फ तीन महीने की थी। निशा अपने पिता की कहानियाँ सुनकर बड़ी हुई और सेना में भर्ती होकर देश सेवा करना चाहती है।

रवि ठाकुर, हमीरपुर। Kargil Vijay Diwas, कारगिल युद्ध को भले ही 26 वर्ष बीत चुके हों, लेकिन हमीरपुर जिला के उपमंडल बड़सर के गांव सुनहाणी के लोगों के दिलों में आज भी बलिदानी प्रवीण कुमार की वीरता की गूंज है। छह जुलाई 1999 को द्रास सेक्टर में दुश्मनों से लोहा लेते हुए 28 वर्ष की उम्र में उन्होंने देश के लिए प्राणों की आहुति दे दी थी।
कारगिल विजय दिवस पर हर साल बलिदानी प्रवीण कुमार की पत्नी किरण बाला और बेटी निशा कुमारी की आंखें नम हो जाती हैं, लेकिन चेहरे पर शहादत का अभिमान साफ झलकता है। पति की शहादत के वक्त तीन माह की बेटी किरणबाला की गोद में थी।
शहादत की खबर सुन चक्कर खाकर गिर गई थीं किरणबाला
वीरनारी किरणबाला बताती हैं कि पति के जाने का दुख शब्दों में नहीं बताया जा सकता, लेकिन इस बात पर सुकून है कि उन्होंने देश के लिए प्राण न्यौछावर किए। उनकी कमी कभी पूरी नहीं हो सकती, पर उनकी शहादत पर आज भी नाज है। कहती हैं, जब पति की शहादत की खबर मिली, तो मैं चक्कर खाकर गिर गई थी।
खुद को संभाला और यादों को अपना हौसला बनाया
सब कुछ जैसे एक पल में खत्म हो गया था लेकिन खुद को संभाला और उनकी यादों को अपना हौसला बनाया। किरण बाला ने अकेले दम पर बेटी का लालन-पालन किया। वर्तमान में वह तहसील कार्यालय बिझड़ी में कार्यरत हैं और अपने मायके में रहकर जीवनयापन कर रही हैं
बेटी की ख्वाहिश सेना में जाना
मैंने कभी पापा को नहीं देखा, जब मैं तीन माह की थी तो पिता देश के लिए बलिदान हो गए थे। बलिदानी प्रवीण कुमार की बेटी निशा बताती है कि मैं अपने पिता की बहादुरी की कहानियां सुनकर बड़ी हुई हूं। अब बीएससी नर्सिंग कर रही हूं और मेरी ख्वाहिश है कि सेना में भर्ती होकर पापा की तरह देश सेवा करूं।
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गरीब परिवार से निकला यह फौलादी सिपाही
प्रवीण कुमार का जन्म 21 जून 1970 को माता सत्या देवी व पिता स्व. ईश्वर दास के घर गांव सुनहाणी, डाकघर कुल्हेड़ा, तहसील बिझड़ी, जिला हमीरपुर में हुआ था। उनके पिता दर्जी का काम करते थे, जबकि माता गृहिणी थीं। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सीनियर सेकेंडरी स्कूल कुल्हेड़ा से पूरी की। प्रवीण ने 26 अक्टूबर 1990 को 21 वर्ष की आयु में 13 जैक राइफल्स में भर्ती होकर सेना की सेवा शुरू की। प्रवीण कुमार के पांच बहनें व दो भाई हैं। दोनों भाई भी भारतीय सेना में सेवाएं दे चुके हैं। उनके माता-पिता का निधन लगभग पांच वर्ष पूर्व हो गया।
गांव को है अपने लाल पर गर्व
गांव के लोग आज भी बलिदानी प्रवीण कुमार की शहादत को सम्मान और श्रद्धा से याद करते हैं। हर वर्ष कारगिल विजय दिवस पर गांव में श्रद्धांजलि सभा होती है। बलिदानी प्रवीण कुमार की कहानी उन हजारों युवाओं को देशभक्ति का संदेश देती है जो वर्दी पहनने का सपना देखते हैं।
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