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    Kargil Vijay Diwas: बलिदानी भले न लौटे, मां के लिए आज भी घर लौटता है उसका लाडला बलविंदर, कहानी पढ़ आंखें छलक आएंगी

    Updated: Sat, 26 Jul 2025 10:46 AM (IST)

    कारगिल विजय दिवस पर फाजिल्का के गांव साबूआना की 80 वर्षीय बचन कौर को आज भी अपने शहीद बेटे बलविंदर सिंह की याद आती है। 1999 में कारगिल युद्ध में 19 साल की उम्र में बलविंदर ने देश के लिए अपनी जान दे दी। मां ने उसकी याद में एक कमरा सजाया है जहाँ उसकी वर्दी और अन्य चीजें 26 साल पहले की तरह ही रखी हुई हैं।

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    बेटे की तस्वीर साफ करते हुए मां बचन कौर lजागरण

    मोहित गिल्होत्रा, फाजिल्का। देश के लिए जान कुर्बान करने वाले बेटों को वक्त भुला सकता है, लेकिन मां का दिल नहीं। फाजिल्का के गांव साबूआना की 80 साल की बचन कौर के लिए उनका लाल बलिदानी बलविंदर सिंह आज भी घर लौटता है।

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    फर्क सिर्फ इतना है कि अब वह सपनों में आता है, अहसासों में उतरता है और उस कमरे में बसता है, जिसे मां ने उसकी याद में सजाया है। आज कारगिल विजय दिवस पर बचन कौर के शब्द हर भारतीय को झकझोर देते हैं- बेटा लौटकर नहीं आया, मगर तिरंगे को कभी झुकने नहीं दिया।

    यही मेरा गर्व है। वर्ष 1999 में कारगिल की बर्फीली चोटियों पर तिरंगे की हिफाजत करते हुए बलविंदर ने अपने प्राण न्यौछावर किए। तब उसकी उम्र सिर्फ 19 साल थी।

    जज्बा इतना बड़ा कि गोलियों की बौछार में दुश्मन के बंकर तक पहुंच गया। मां आज भी आंखों में आंसू और दिल में गर्व लिए कहती हैं कि उसे रोकते थे, मगर वह कहता, मां तिरंगे की खातिर लड़ूंगा। वही करके गया।

    अब जब लगता है कि वो ड्यूटी से लौट रहा है तो कमरे की ओर नजर चली जाती है। बलिदानी के नाम पर बने कमरे की लाइट कभी बंद नहीं होती, पंखा हमेशा चलता रहता है।

    वहां वर्दी आज भी चमकाई जाती है। पर्स, तिरंगा, जूते और ड्यूटी के बाद पहनने वाले कपड़े वैसे ही रखे हैं जैसे 26 साल पहले थे। मां ने जायदाद में बलविंदर को बराबर का हिस्सा भी दिया।

    17 की उम्र में फौज में जाने की जिद

    कमरे की दीवारों पर टंगे मेडल और तस्वीरें हर किसी को याद दिलाते हैं कि यह घर उस जवान का है, जिसने देश के लिए जान दी। मां बताती हैं कि बलविंदर 17 साल की उम्र में ही फौज में जाने की जिद करने लगा था। सभी ने समझाया कि अभी छोटा है, मगर उसने किसी की नहीं मानी।

    भर्ती होते ही कारगिल युद्ध छिड़ गया। तीन दिन बाद खबर आई कि उनका बलविंदर अब इस दुनिया में नहीं है। उस दिन के बाद वो कई बार मुझे सपने में मिला। एक बार बोला कि उसकी ड्यूटी बहुत दूर लग गई है, इसलिए देर से आएगा। बस तब से लगता है कि किसी भी शाम लौट आएगा।

    नक्शेकदम पर चल रहे परिवार और युवा

    बलविंदर के जाने के बाद उनके परिवार ने देश सेवा की लौ को बुझने नहीं दिया। बड़ा भाई गुरदीप सिंह सेना में रहकर 2019 में रिटायर हुआ। दो भतीजे जज सिंह और गुरजंट सिंह अब फौज में तैनात हैं।

    मोहल्ले के हरजिंद्र सिंह और कई दूसरे युवा भी उसकी मिसाल से प्रेरित होकर सेना में भर्ती हुए। इतना ही नहीं, उनकी कॉलोनी का नाम अब ‘बलिदानी बलविंदर सिंह यादगारी’ कॉलोनी रख दिया गया है।

    कमरे में आज भी बसी है उसकी खुशबू

    जिस कमरे में बलविंदर की यादें बसी हैं, वहां भाई बूटा सिंह और उनकी पत्नी रोज धूपबत्ती लगाते हैं। दीवार पर श्री गुरु नानक देव जी की तस्वीरें हैं। बाकी भाई सतनाम और गुरदीप भी सेवा में जुटते हैं। मां और परिवार के लिए यह कमरा ही सबसे बड़ा तीर्थ बन चुका है।