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    अटैक करने से पहले रोका जाएगा पीला रतुआ, नौ राज्यों पर वैज्ञानिकों की नजर

    By Anurag ShuklaEdited By:
    Updated: Mon, 14 Dec 2020 09:58 AM (IST)

    इस बार पीले रतुआ को लेकर वैज्ञानिक भी अलर्ट हैं। साल 2021 में वैज्ञानिक नौ राज्‍यों की फसलों पर नजर रखेंगे। गेहूं वैज्ञानिकों की टीम कश्‍मीर सहित हिमाचल मध्‍य प्रदेश हरियाणा गुजरात महाराष्‍ट्र आदि राज्‍यों में विशेष नजर रखेंगे।

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    पीले रतुए को लेकर वैज्ञानिक अलर्ट हैं।

    पानीपत/करनाल, जेएनएन। गेहूं उत्पादन राज्यों में पीले रतुआ पर इस बार गेहूं वैज्ञानिकों की पैनी नजर रहेगी। वैज्ञानिकों ने हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात तथा महाराष्ट्र में इस बीमारी पर रोक लगाने के लिए अभी से तैयारी शुरू कर दी है। बदल रहे मौसम का हर सप्ताह आंकलन किया जाएगा। इसके साथ ही तापमान में कितना कम या ज्यादा है, यह भी रिकार्ड किया जाएगा।

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    कोशिश यह है कि बीमारी से पहले ही इसका पता चल जाए, अटैक से पहले ही इस पर रोक लगाने की दिशा में काम किया जाए। कोशिश यही है कि बीमारी को नियंत्रित कर गेहूं के उत्पादन व गुणवत्ता बेहतर की जाए। देश में यूपी सबसे ज्यादा गेहूं उत्पादित राज्य है, इसके बाद मध्यप्रदेश, पंजाब तीसरे नंबर और हरियाणा गेहूं उत्पादन में चौथे नंबर पर आता है। गेहूं एवं जो अनुसंधान संस्थान के निदेशक डाक्टर ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि बीमारी की रोकथाम में वैज्ञानिकों का क्या भूमिका होनी चाहिए, इस पर वेबीनार में चर्चा हुई है।

    इसलिए खतरनाक है पीला रतुआ

    जिस खेत में यह बीमारी आ गई ता समझो 70 से 80 प्रतिशत तक फसल खराब है। बीमारी का प्रकोप जनवरी अंतिम से फरवरी की शुरुआत में होने के चांस ज्यादा रहते हैं। नमी ज्यादा और तापमान कम होने से एक तरह का फंगस बन जाता है। जो बीमारी की वजह बनता है। इससे पीला सा पाउडर पौधे पर आ जाता है। इस पाउडर से पौधा सूरज की रोशनी से भोजन नहीं बना पाता।

     

    2009-10 में सबसे खतरनाक हुई थी बीमारी पीला रतुआ

    वर्ष 2009-10 में पीला रतुआ बीमारी नियंत्रण से बाहर हो गई थी। तब हरियाणा प्रदेश में ही 30 प्रतिशत एरिया इसकी चपेट में आ गया था। उत्तर प्रदेश, पंजाब में भी इस साल बहुत नुकसान हुआ था।

    वैज्ञानिकों की टीम तकनीक और दवाओं का लेकर करेगी काम

    जो टीम तैयार की गई वह अपने अपने राज्यों में बीमारी का लेकर लगातार काम करेगी। किसानों से तालमेल रखा जाए। यह देखा जाएगा कि कहीं बीमारी का लक्षण तो नजर नहीं आ रहा है। टीम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बीमारी को लेकर जो रिसर्च हो, वह उन राज्यों के लिए कैसे उपयोगी इस का भी ध्यान रखेगी।

    नियमित रूप से करें अपने खेत का निरीक्षण

    गेहूं उत्पादक किसान अपने खेत का नियमित निरीक्षण करें। यदि किसी भी पौधे पर पीला धब्बा दिखाई दे तो तुरंत इस बारे में अपने क्षेत्र के कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क करें। यह छोटी सी कोशिश इस बड़ी सी बीमारी पर रोक लगाने की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकती है।

    हमें क्या नुकसान हो सकता है इस बीमारी से

    हम गेहूं की रोटी खाते हैं, हमें क्या दिक्कत आ सकती है। वैज्ञानिकों ने बताया कि हालांकि जिस फसल में पीला रतुआ आ जाता है तो इससे दाने के आटे को खाने से ज्यादा नुकसान नहीं होता। लेकिन इस दाने की पौष्टिकता कम हो जाती है। लेकिन बीमारी यदि ज्यादा आ जाए तो जाहिर है इसका असर गेहूं उत्पादन पर पड़ेगा। तब हमें रोटी का दाम ज्यादा चुकाना पड़ सकता है।

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