हथीन में लगातार दूसरी बार कोई नहीं पहुंचा विधानसभा में
मोहम्मद हारून, पलवल : वर्ष 1966 से अब तक हरियाणा राज्य के गठन के बाद हुए 11 विधानसभा चुनावों में लगातार दूसरी बार हथीन में कोई भी प्रत्याशी विधायक बनकर विधानसभा में नहीं पहुंच पाया। हालांकि अजमत खां, भगवान सहाय रावत व हर्ष कुमार को इस क्षेत्र से दो बार विधायक बनने का गौरव हासिल हुआ है, पर अलग अंतराल में जीत हासिल कर सके।
अब तक हुए इस क्षेत्र के विधान सभा चुनावों की खास बात यह रही कि यहां पर विकास के मुद्दों व क्षेत्र की बदहाली को दूर करने के मुद्दों की बजाय प्रत्याशी जातिगत, गोत्र, पाल व व्यक्तित्व के कारण मतों के बंटवारे के सहारे जीत हासिल करते रहे हैं। यही कुछ अब होने वाले चुनावों में भी देखने को मिल सकता है।
पहले चुनाव में जीते थे देवी सिंह
हरियाणा का निर्माण एक नवंबर 1966 को हुआ था। 1967 में यहां पर हुए विधानसभा चुनाव में कोंडल निवासी देवी सिंह तेवतिया ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में उन्होंने रुपड़ाका निवासी वली मोहम्मद को हराया था। उसके बाद 1968 में विधान सभा के उप चुनाव हुए थे। उपचुनाव में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे देवी सिंह तेवतिया नजदीकी गांव के आजाद उम्मीदवार हेमराज सहरावत से पराजित हो गए थे।
हेमराज ने बदला पाला, पर मिली हार
वर्ष 1972 में हुए चुनाव में हेमराज ने पाला बदलकर कांग्रेस का दामन थाम कर चुनाव लड़ा। लेकिन कांग्रेस से नाराज लोगों ने पंचायत कर हेमराज के मुकाबले आजाद उम्मीदवार रामजीलाल डागर को चुनाव में उतारकर हेमराज को 4476 मतों से हराया था।
बाकी सभी की हो गई थी जमानत जब्त
1976 में कांग्रेस द्वारा देश में आपातकालीन घोषणा होने के बाद कांग्रेस के खिलाफ लोगों में नाराजगी थी। उसके बाद 1977 में विधान सभा चुनाव में जनता पार्टी से चुनाव लड़े स्वामी आदित्यवेश को लोगों ने सर आंखों पर बिठाकर विधान सभा में पहुंचाया। उसके मुकाबले कांग्रेस के प्रभुदयाल मित्तल सेवली ने चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में खास बात यह रही कि आदित्य वेश को छोड़ चुनाव लड़े सभी उम्मीदवार जमानत भी नहीं बचा पाए थे।
1982 में शिक्षा जगत से राजनीति में उतरे जनता पार्टी की टिकट पर मलाई निवासी अजमत खां को लोगों ने जीत दिलाई। उन्होंने लोकदल पार्टी से चुनाव लड़े उम्मीदवार खिल्लन सिंह को 173 मतों से हराया। हालांकि बाद में पुन:मतगणना के लिए चली अदालती लड़ाई के बाद हुई गिनती में खिल्लन जीते गए थे।
भगवान सहाय व अजमत बने विधायक
1987 में लोकदल (ब) की टिकट पर चुनाव लड़े बहीन निवासी भगवान सहाय रावत ने आजाद उम्मीदवार अजमत खां को हराया था। इस चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर पूर्व विधायक रामजीलाल डागर ने चुनाव लड़ा था।
1991 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े अजमत खां ने विजयी पताका फहराया। उन्होंने जनता दल की टिकट पर चुनाव लड़े भगवान सहाय रावत को हराया। अजमत खां ने चुनाव में 18250 मत प्राप्त किए थे।
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हर्ष जीते, रावत व अजमत हारे
बदले हालात व राजनैतिक समीकरणों चलते 1996 में हविपा की टिकट पर चुनाव लड़े पालड़ी (होडल) निवासी हर्ष कुमार ने कांग्रेस तिवारी की टिकट पर चुनाव लड़े अजमत खां को हराया। इस चुनाव में भगवान सहाय भी मैदान में उतरे थे, पर उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा।
रावत को मिली दूसरी जीत
2000 में इनेलो की लहर में भगवान सहाय रावत ने हविपा के हर्ष कुमार को नजदीकी मुकाबले में मात दी। रावत को 23777 वोट मिली, जबकि हर्ष को 22423 वोट मिली। रावत इससे पहले वर्ष 1987 में विधायक चुने गए थे।
फिर लगा हर्ष का नंबर
2005 के विधान सभा चुनावों में प्रमुख दल इनेलो की टिकट अजमत खां व कांग्रेस की टिकट जलेब खां को मिली। वहीं जातीय समीकरणों को अपने अनुकूल मान कर पूर्व मंत्री हर्ष कुमार आजाद उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे और 31879 वोट लेकर कामयाब रहे।
अब जलेब जीते, हर्ष हारे
पिछले चुनाव में 2009 के चुनाव में सत्ता पक्ष यानी कांग्रेस की टिकट हर्ष कुमार को व प्रमुख विपक्षी दल इनेलो की टिकट केहर सिंह रावत को मिली। यह दोनों जाट जाति से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में वोटों का बंटवारा हुआ, जिससे आजाद उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे मुस्लिम समुदाय के जलेब खान 33774 वोट लेकर विधायक बने।