Junagadh: दादा-पापा और बेटे ने एक साथ ली दीक्षा, तीन पीढ़ी एक साथ संसार को त्याग कर अपनाया सन्यास
पहली बार जामनगर के एक जैन परिवार के दादा पिता और पोते ने एक साथ दीक्षा ली है। 80 वर्षीय अजीतभाई शाई एक सेवानिवृत्त जीईबी कार्यकारी इंजीनियर हैं उनके बेटे कौशिक शाह का पीतल के हिस्सों का व्यवसाय है और उनके पोते विरल शाह ने सीए में पढ़ाई की है। तीनों ने आपसी सहमति से सांसारिक सुखों का त्याग कर के सन्यास को अपनाने का फैसला किया है।
डिजिटल डेस्क, जामनगर। जामनगर के एक जैन परिवार ने बुधवार को जूनागढ़ में दीक्षा ली है। ऐसा पहली बार हुआ है कि एक परिवार के दादा, पिता और पोते ने एक साथ दीक्षा ली है। 80 साल के अजीत शाह, उनके 52 साल के बेटे कौशिक और 25 साल के पोते विरल ने दुनिया छोड़कर सन्यास का रास्ता अपना लिया है।
एक परिवार के तीन पीढ़ी ने ली दीक्षा
जूनागढ़ में आयोजित दीक्षा समारोह में दादा-पिता और सीए में पढ़ रहे एक पोते ने दीक्षा ली। बता दें कि 13 मार्च को सुबह 7 बजे गिरनार दर्शन जैन धर्मशाला में दीक्षा समारोह शुरू हुआ। यह दीक्षा आचार्यहेमवल्लभसूरीश्वरजी महाराज के मार्गदर्शन में सम्पन्न हुई।
दीक्षा के बाद 80 वर्षीय अजितभाई शाह मुनि अजनावल्लभ विजय, 52 वर्षीय कौशिक शाह विजय और 25 वर्षीय विरल शाह मुनि विद्या वल्लभ विजय जैसे संयम के पथ पर चल पड़े हैं। कौशिकभाई की पत्नी मीनाबेन ने भी पिछले जनवरी में सूरत में आयोजित एक कार्यक्रम में दीक्षा ली और मैत्र योगरेखा श्रीजी महाराज का नाम धारण किया।
संसार त्याग कर अपनाया सन्यास
उनके संसार त्याग के समय गुरु की ओर से उनके पुत्र विरल को संसार त्यागने की अनुमति मिल गयी थी। जिसके बाद विरल के पिता कौशिकभाई और कौशिकभाई के पिता अजितभाई को भी गुरु आज्ञा से दीक्षा मिली, आज तीनों पीढ़ियों ने एक साथ संसार त्याग कर संन्यास का मार्ग अपना लिया है।
दरअसल, 80 वर्षीय अजीतभाई शाई एक सेवानिवृत्त जीईबी कार्यकारी इंजीनियर हैं, कौशिक शाह का पीतल के हिस्सों का व्यवसाय है और उनके बेटे विरल शाह ने सीए में पढ़ाई की है।
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चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने से ज्यादा महत्वपूर्ण लगी दीक्षा
विरल के चाचा अक्षय शाह ने कहा है कि विरल ने कम उम्र में ही दीक्षा लेने का फैसला किया और अपने पिता और दादा को भी दीक्षा लेने के लिए प्रेरित किया। हालांकि वह एक चार्टर्ड अकाउंटेंट के रूप में अपना करियर बना सकते थे, लेकिन उन्होंने दीक्षा लेने का फैसला किया। जैन धर्म और पिछले उपवास और तपस्या में उनकी अपार आस्था ने दीक्षा लेने के उनके निर्णय को प्रेरित किया।
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