UT69 Movie Review: जेल से बेल तक सवालों से घिरी कहानी में राज कुंद्रा का जोरदार बॉलीवुड डेब्यू
UT69 Movie Review शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा ने यूटी 69 फिल्म से बॉलीवुड में बतौर अभिनेता पारी शुरू की है। यह फिल्म उनकी जेल यात्रा का संस्मरण है। हालांकि फिल्म इस पूरे मामले पर कोई कमेंट नहीं करती।
प्रियंका सिंह, मुंबई। जब किसी विवादित व्यक्ति की बायोपिक बनती हैं तो उसके जरिए कभी उस व्यक्ति की छवि बदलने तो कभी कहानी का दूसरा पहलू दिखाने का प्रयास किया जाता है। अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा को साल 2021 में अश्लील वीडियो बनाने के केस में गिरफ्तार किया गया था।
63 दिन जेल में बिताने के बाद उन्हें बेल पर रिहा किया गया। 63 दिनों की जेल यात्रा को राज ने अपनी फिल्म यूटी 69 में दिखाया है। यूटी यानी अंडर ट्रायल और 69 उनका कैदी नंबर था।
क्या है फिल्म की कहानी?
कहानी शुरू होती है न्यूज चैनल की खबरों से, जिनमें अश्लील फिल्में बनाने के आरोप में राज कुंद्रा गिरफ्तार हो गए हैं। पुलिस वैन में जेल जाते हुए राज अपने वकील से पूछते हैं कि दो-तीन दिन में बाहर आ जाऊंगा ना? वकील जवाब देता है कि बहुत ज्यादा तो पांच दिन लग जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं होता है, राज 63 दिनों के लिए जेल में कैद रहते हैं।
शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तौर पर वह 63 दिन उनके लिए कितने कठिन रहे, जेल यात्रा से उन्होंने क्या सीखा, किन चीजों की अहमियत समझ आई, कहानी इसके आसपास घूमती है।
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कैसा है स्क्रीनप्ले और अभिनय?
शाहनवाज अली निर्देशित इस फिल्म के खत्म होने के बाद मन में एक ही विचार आता है कि इस फिल्म को बनाने का औचित्य क्या वाकई यही था कि राज जेल में कैदियों साथ होने वाले बर्ताव, असुविधाओं को उजागर करना चाहते हैं या खुद पर लगे आरोपों की वजह से बनी बिगड़ी छवि को सुधारना चाहते हैं?
जेल में उन्होंने जिस तरह से कैदियों के बीच समय बिताया, वह उनके लिए सहानुभूति बटोरता है। मामला अब भी अदालत में विचाराधीन है, ऐसे में लेखक विक्रम भट्टी की लिखी यह कहानी एक तरफा लगती है। जेलर राज को वीआईपी बैरक की बजाय ऐसे बैरक में क्यों रखता है, जिसमें 50 कैदियों की जगह पर ढाई सौ कैदियों को ठूंसा गया है, इसका कोई जवाब नहीं दिया गया है।
जेल में कैद हर आरोपी का मददगार होना सिनेमाई लिबर्टी का उदाहरण पेश करता है। राज ने अपने साक्षात्कार में शिल्पा और उनके बीच पत्र के द्वारा हुई बातचीत का जिक्र किया था। फिल्म में वो दृश्य हैं, लेकिन अगर वह पत्र में लिखी कुछ लाइनों को पढ़ते, तो उसका वजन पड़ता। सिनेमैटोग्राफर केविन जेसन क्रस्टा ने जेल के छोटे से बैरक में अपने कैमरे का कमाल दिखाया है।
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अभिनय की बात करें तो कहीं से भी नहीं लगता कि राज अभिनय की दुनिया से नहीं हैं। ऐशो-आराम की जिंदगी छोड़कर एक थैला लेकर जेल में जाना, निर्वस्त्र होकर अपनी जांच करवाना, जेलर के आने पर सहम कर खड़े हो जाना, जेल में सरप्राइज रेड पड़ने के बाद बिखरे हुए सामान में से अपनी पानी की बोतल और बिस्कुट को बाकी कैदियों से चोरी होने से बचाने के लिए भागना, इन सबको उन्होंने दोबारा जीया है।
खासकर बेल मिलने पर जेल से बाहर आने वाले सीन में उनका अभिनय विश्वसनीय लगता है। जेल में उनके साथ बाकी कलाकारों का काम भी अच्छा है। फिल्म के अंत में लगभग चार मिनट का गाना जिंदा हूं मैं... भावनात्मक अंत तो देता है, लेकिन कई सवाल मन में छोड़ जाता है।