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    The Village Review: अंधविश्वास और सामाजिक असमानता की छौंक के साथ Wrong Turn का देसी वर्जन 'द विलेज'

    By Manoj VashisthEdited By: Manoj Vashisth
    Updated: Sat, 25 Nov 2023 11:22 PM (IST)

    The Village Review द विलेज तमिल सीरीज है जो प्राइम वीडियो पर हिंदी में भी स्ट्रीम की गयी है। इस सीरीज से तमिल एक्टर आर्य ने ओटीटी डेब्यू किया है। यह हॉरर थ्रिलर सीरीज है जिसमें माइथोलॉजी साइको डिसऑर्डर और सामाजिक असमानताओं के तत्वों को कहानी में पिरोया गया है। छह एपिसोड्स की सीरीज का निर्देशन मिलिंद राऊ ने किया है।

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    द विलेज प्राइम वीडियो पर रिलीज हो गयी है। फोटो- प्राइम वीडियो

    मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। हॉलीवुड में रक्तरंजित और हिंसक फिल्में भी मनोरंजन का साधन रही हैं। इन फिल्मों को ज्यादातर R रेटिंग दी जाती है। रॉन्ग टर्न (Wrong Turn) फ्रेंचाइजी इसकी एक मिसाल है। इन फिल्मों में खूनखराबा दिखाने की कोई इंतेहा नहीं होती। वीभत्स दृश्य और हिंसा खुलकर दिखाई जाती है।

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    जैसा कि शीर्षक से ही पता चलता है, 'रॉन्ग टर्न' फिल्मों में सैलानी या रास्ता भटके लोग एक ऐसे गांव या बस्ती में पहुंच जाते हैं, जहां अजीबोगरीब लोगों के परिवार रहते हैं। ये परिवार इंसानों को बेरहमी और क्रूरतम तरीकों से मार डालते हैं। ये नरभक्षी भी दिखाये जाते हैं।

    प्राइम वीडियो पर R रेटिंग के साथ रिलीज हुई तमिल सीरीज का मूल विचार रॉन्ग टर्न सीरीज की फिल्मों से ही लिया गया लगता है। इस विचार को विस्तार देते हुए सीरीज की कहानी में माइथोलॉजी, अंधविश्वास, साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर, प्राकृतिक आपदा, मेडिकल रिसर्च, सामाजिक असमानताएं और एकाकीपन जैसे तत्वों को जोड़ दिया गया है। हालांकि, 'द विलेज' इसी नाम के ग्राफिक नॉवल का स्क्रीन अडेप्टेशन है।

    मिलिंद राऊ निर्देशित छह एपिसोड्स (36-50 मिनट प्रति एपिसोड) की वेब सीरीज के साथ तमिल कलाकार आर्य ने ओटीटी डेब्यू किया है। सीरीज अन्य दक्षिण भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी में भी रिलीज की गयी है।

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    क्या है द विलेज की कहानी?

    तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले में स्थित कट्टियल अभिशप्त गांव है। इस निर्जन और वीरान गांव में जो भी जाता है वापस नहीं लौटता। इसलिए आसपास के गांव के निवासियों ने वहां जाना बंद कर दिया है। डॉ. गौतम (आर्य) अपनी पत्नी नेहा (दिव्या पिल्लई), बेटी माया (बेबी आजिया) और बीगल डॉग हेक्टिक के साथ रोड ट्रिप के लिए निकला है।

    थूथुकुडी के नजदीक नेशनल हाइवे 38 पर एक दुर्घटना होने की वजह से लम्बा जाम लगा है। रात घिर चुकी है। इसलिए पत्नी की सलाह पर जीपीएस के जरिए वो वैकल्पिक रास्ता लेते हैं, जो कट्टियल गांव से होकर जाता है। गांव की सरहद पर पहुंचते ही रास्ते में कीलें बिखरी होने की वजह उनकी कार के अगले पहियों में पंक्चर हो जाता है। परिवार को कार के अंदर छोड़कर गौतम मदद ढूंढने निकलता है।

    वो पास के गांव नवमलई पहुंचता है, जहां बार में मौजूद लोगों से मदद की गुहार लगाता है। स्थानीय निवासी शक्तिवेल (अब्दुकलम नरेन), करुणागम (मुत्थुकुमार) और बार के मालिक पीटर (जॉर्ज मार्यन) के चेहरों की गांव का नाम सुनते ही हवाइयां उड़ जाती हैं। तीनों उसे रातभर रुककर सुबह चलने के लिए कहते हैं।

    गौतम परिवार का हवाला देकर उन्हें मनाने की कोशिश करता है, मगर उनकी बेरुखी देख अकेला लौट जाता है। लौटने पर पाता है कि उसका परिवार और कार दोनों वहां से गायब हैं। गौतम बदहवास सा उन्हें ढूंढने के लिए इधर-उधर भागता रहता है। भारी बारिश और अंधेरे की वजह से गौतम रास्ता भटक जाता है और ठोकर खाकर गिर पड़ता है, जिससे कुछ देर के लिए चेतना खो बैठता है।

    होश में आने पर देखता है कि शक्ति, करुणागम और पीटर ट्रैक्टर और हथियारों के साथ उसकी मदद के लिए आ चुके हैं। इसके बाद की कहानी नेहा और माया की खोज में आगे बढ़ती है और इसके साथ कुछ ऐसे राज खुलते हैं, जो किसी की भी रूह कंपाने के लिए काफी है। इन राज का कनेक्शन शक्ति और करुणागम (करू) की पिछली जिंदगी से भी है, जो आगे चलकर खुलता है।

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    गौतम और नेहा।

    कैसा है स्क्रीनप्ले?

    द विलेज वैसे तो एक रात की कहानी है, मगर कई सालों का सफर तय करती है। सीरीज का मिजाज पहले एपिसोड के शुरुआती दृश्यों से सेट हो जाता है, जब कट्टियल गांव में एक वैन में सवार गर्भवती महिला और उसके साथ दूसरे लोगों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी जाती है।

    हमलावरों को करीब से नहीं दिखाया जाता, मगर अंधेरे में उनकी आकृति से समझ में आ जाता है कि उनकी शारीरिक बनावट सामान्य नहीं है। उनके हाथ में कुल्हाड़ी, भाले और फरसे जैसे हथियार नजर आते हैं। 

    मिलिंद राऊ, वी दीरज वैदी और दीप्ति गोविंदराजन ने नॉनलीनियर स्कीनप्ले के जरिए कहानी के सस्पेंस और थ्रिल को बरकरार रखा है। मुख्य कथानक के साथ कुछ उप कथानक जोड़े गये हैं, जो मुख्य कथ्य को सपोर्ट करते हैं। सीरीज में दो ट्रैक साथ-साथ चलते हैं, जो अंतिम एपिसोड में जुड़ते हैं।

    पहला ट्रैक डॉ. गौतम का है, जो अपनी बीवी-बच्ची को ढूंढ रहा है, जबकि दूसरा सिंगापुर में व्हीलचेयर बाउंड बिजनेस टाइकून प्रकाश (अर्जुन चिदम्बरम) का है। प्रकाश कट्टियल गांव के जंगलों और 2004 की सुनामी में उजड़ी अपनी फैक्ट्री से कुछ खास सैंपल लाने के लिए अपने विश्वासपात्र जगन (थलईवासल विजय) और मर्सिनरीज की एक टीम को भेजता है। इस टीम का लीडर फरहान (जॉन कोक्केन) है।

    प्रकाश और फरहान।

    यह सैंपल उसके पैरालिसिस का इलाज करने के लिए जरूरी हैं। इस राज का खुलासा उसके साइंटिस्ट पिता जीएसआर (वी जयप्रकाश) ने मरने से पहले किया था कि फैक्ट्री की आड़ में वो उसके पैरालिसिस का इलाज खोज रहा था, जिसके लिए सीक्रेट अंडरग्राउंट लैब बनाई थी। 

    इन दोनों ट्रैक्स के बीच सीरीज की कहानी अतीत का सफर तय करती है, जिसमें कट्टियल गांव में रहने वाले दरिंदों की पिछली जिंदगी पर खुलासे होते हैं और इन घटनाओं के पीछे की वजह खुलती हैं। उनका जिक्र करना यहां सही नहीं होगा, क्योंकि इस सीरीज का सबसे बड़ा सस्पेंस वही है। हालांकि, सीरीज देखते हुए दृश्यों के संयोजन पर हॉलीवुड की हिंसक फिल्मों का असर साफ नजर आता है।

    चाहे वो हथकड़ी खोलने के लिए करुणागम का अपने ही हाथ अंगूठा काटने का दृश्य हो या अंडरग्राउंड रह रहे दरिंदों के इंसानों के मारने के तौर तरीके। हॉलीवुड की स्लैशर सीरीज की फिल्मों देखने वालों को इन दृश्यों में नयापन नहीं लगेगा। 

    सीरीज के क्लाइमैक्स में डॉ. गौतम की बेटी के जरिए जो सिरा छोड़ा गया है, उससे उसके दूसरे सीजन की भी पुष्टि हो गयी है।

    कैसा है अभिनय और प्रोडक्शन डिजाइन?

    ऐसी सीरीज या फिल्मों में प्रोडक्शन डिजाइन और मेकअप टीम की भूमिका काफी अहम हो जाती है। दरिंदों को शारीरिक रूप से डिफॉर्म दिखाया गया है। उनके शरीर पर मोटे-मोट छाले जैसे हैं। आंखें और हाथ-पांव असामान्य हैं। हालांकि, मेकअप का बनावटीपन कहीं-कहीं जाहिर हो जाता है। जंगल में चमकने वाले पौधों के कुछ दृश्य भी बनावटी लगते हैं। 

    शक्तिवेल, करुणागम, पीटर।

    कहानी का मुख्य हिस्सा रात में ही घटता है, इसलिए सीरीज के ज्यादातर हिस्से की कलर टोन ब्लू रखी गयी है। इससे हिंसात्मक और खूनखराबे वाले दृश्यों की इंटेसिटी घट गयी है, जो दर्शकों के लिए अच्छा ही है। 

    दृश्यों में इमोशंस सही जगह पर आती हैं, मगर इन्हें जाहिर करने का ढंग कहीं-कहीं काफी लाउड लगता है। कुछ दृश्यों में कलाकारों की प्रतिक्रियाएं शिथिल महसूस होती। दक्षिण भाषाओं में आने वाली सीरीजों के साथ एक मुश्किल यह भी है कि हिंदी डबिंग संवादों की गंभीरता को कम कर देती है।

    वाक्यों के अंत में स्वीकारोक्ति की ध्वनि को भी इस तरह डब किया जाता है कि बहुत नाटकीय लगता है। वहीं, डबिंग आर्टिस्ट जिस तरह से संवाद डब करते हैं, वो कई बार कलाकारों के अभिनय की लय से तालमेल नहीं खाता। द विलेज दिलचस्प कॉन्सेप्ट वाली वेब सीरीज है, जिसे तकनीकी तौर पर और बेहतर किया जा सकता था।