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    Tara and Akash: एक सुंदर पेंटिंग जैसी है तारा और आकाश की कहानी, दो अलग-अलग दुनिया के लोग कैसे होंगे एक

    Updated: Fri, 26 Sep 2025 04:01 PM (IST)

    प्रेम कहानियां अमर होती हैं। इतिहास में गहराई से अंकित कुछ अध्याय अमर हो जाते हैं। जितेश ठाकुर और अलंकृता बोरा अभिनीत तारा और आकाश जीवन और मृत्यु से परे एक ऐशे ही प्रेम की पड़ताल करती है। यह फिल्म जितेश और अलंकृता की व्हिस्पर्स फ्रॉम एटरनिटी फिल्म्स और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा समर्थित। कैसे उनकी मुलाकात होती है और आगे क्या होता है पढ़ें रिव्यू

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    क्या है तारा और आकाश की कहानी (फोटो-इंस्टा)

    प्रियंका सिंह, मुंबई। कई फिल्म फेस्टिवल से गुजरते हुए फिल्म तारा एंड आकाश : लव बियांड रेल्म्स को आखिरकार सिनेमाघरों में रिलीज का मौका मिल गया। इस प्रेम कहानी के मुख्य पात्र तारा और आकाश ही हैं। हालांकि यह आम प्रेम कहानी से अलग है, क्योंकि प्रेम दो ऐसे लोगों के बीच है, जो दो अलग दुनिया से हैं।

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    क्या है तारा एंड आकाश की कहानी?

    अपनी दादी की मौत के बाद तारा (अलंकृता बोरा) अकेला महसूस करती है। वह अपने माता-पिता को बिना बताए स्विट्जरलैंड अकेले घूमने चली जाती है। वह देवी आंटी (दीप्ति नवल) के होमस्टे में रहती है। स्विट्जरलैंड आने का कारण प्रेम कहानी की एक किताब है, जिसने दादी के जाने के बाद तारा को संभाले रखा। उस किताब में स्विट्जरलैंड की जगहों का जिक्र है, जिसे देखने वह जाती है। वहां पर तारा की मुलाकात आकाश (जितेश ठाकुर) से होती है। आकाश रोज एक जैसे कपड़े पहनता है, गहरी बातें करता हैं। तारा धीरे-धीरे उसके करीब आती है, लेकिन फिर पता चलता है कि आकाश तो इस दुनिया से है ही नहीं।

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    श्रीनिवास ने लिखी है कहानी

    फिल्म की कहानी निर्देशक श्रीनिवास ने लिखी है। उनका प्रयास अच्छा है, फिल्म दूसरी प्रेम कहानियों से अलग है, शायद इसलिए भी बेहद धीमी होने के बाद अच्छी लगती है। आकाश रोशनी वाली दुनिया से धरती पर किस उद्देश्य के लिए आया है, वह जानने का मन करता है। कई प्रेम कहानी वाली फिल्मों का गवाह रहा स्विट्जरलैंड इस फिल्म के भी हर फ्रेम को किसी खूबसूरत पेंटिंग की तरह सुंदर बनाता है।

    फिल्म के गाने भी शानदार

    अगर किसी के लिए बहुत प्यार हो, पता हो कि वो आपका नहीं हो सकता, तो कैसे समझाए खुद को..., इस कायनात को बयां करने के लिए अगर लफ्ज ही काफी होते तो हम भी शायद किसी किताब के पन्नों पर जी रहे किरदार होते... ऐसे कई संवाद दिल को छूते हैं। क्लाइमेक्स में किताब के पन्ने जैसे तारा के ख्यालों से भरते हैं, वह परियों की कहानी जैसा लगता है। हालांकि तारा की बीमारी का जिक्र सतही है, अंत में उसे कहानी से ठीक से जोड़ा नहीं गया है, जो कंफ्यूजन पैदा करता है। अतीत सिंह की सिनेमैटोग्राफी शानदार है। अंग्रेजी गाना व्हाय कांट वी बी टुगेदर फारएवर... दो अलग दुनिया के लोगों के न मिल पाने के दर्द को बयां करता है।

    अपने किरदार में मासूम लगीं अलंकृता

    पहले कई फिल्में साथ कर चुके अमोल पालेकर और दीप्ति नवल को साथ देखने की इच्छा होती है, हालांकि कहानी ऐसी है कि दोनों के सीन एक साथ नहीं हो सकते थे। हालांकि दोनों ही अनुभवी कलाकारों का काम कम स्क्रीन स्पेस में भी बढ़िया है। फिल्म के दोनों लीड जितेश और अलंकृता ने इस फिल्म का निर्माण नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कार्पोरेशन आफ इंडिया लिमिटेड (एनएफडीसी) के साथ मिलकर किया है। उन्होंने दोनों ही जिम्मेदारी बखूबी निभाई है। अलंकृता बेहद मासूम लगी हैं, उन्होंने अपनी कास्ट्यूम तक खुद डिजाइन किए हैं, जो उन्हें तारा के पात्र के और करीब ले जाता है। वहीं जितेश बिना ज्यादा कुछ कहे, बहुत कुछ कह जाते हैं। हनुमंत की छोटी सी भूमिका में बृजेंद्र काला का काम ठीक है।

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