Ajey Movie Review: यूपी के CM योगी की जिंदगी की अनसुनी कहानी, एक-एक सीन करेगा इंस्पायर, पढ़ें रिव्यू
Ajey The Untold Story Of A Yogi Review उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जिंदगी पर बनी फिल्म अजेय द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ अ योगी आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। मूवी में उनके बचपन से लेकर कॉलेज और मठ से गुजरते हुए मुख्यमंत्री बनने तक की जर्नी आपको प्रेरित करेगी।

प्रियंका सिंह, मुंबई। कई विवादों और कठिनाइयों से गुजरने के बाद आखिकार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीवन पर बनी फिल्म अजेय: द अनटोल्ड स्टोरी आफ अ योगी सिनेमाघरों में रिलीज हुई।
लेखक शांतनु गुप्ता की किताब द मौंक हू बिकेम चीफ मिनिस्टर से प्रेरित इस फिल्म की कहानी योगी के बचपन, कॉलेज और मठ से गुजरते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने तक के सफर पर आधारित है।
परिवार त्यागने से लेकर मिस्टर योगी बनने तक का सफर
अजय आनंद (अनंत जोशी) अन्याय सहन नहीं कर सकता है। वो गलत के खिलाफ लड़ जाता है। बड़े भाई के बस में कुछ लोगों के साथ हुई मारपीट में उसके पिता आनंद कुमार (पवन मल्होत्रा) को माफी मांगनी पड़ती है। वह आनंद को कोटद्वार पढ़ने के लिए भेज देते हैं। वहां आनंद छात्रसंघ के चुनाव में सामने वाले उम्मीद्वार के छल के कारण हार जाता है। कॉलेज में बड़े महाराज महंत अवैद्धनाथ (परेश रावल) के सामने वह बेबाकी से अन्याय की बात बताता है। वह उसे सीख देते हैं कि पहले दूर से आक्षेप लगाने की बजाय खेल में उतरो।
यह भी पढ़ें- AJEY: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीवन पर आधारित फिल्म 'अजेय' का पहले दिन धमाल, सभी जगह पहला शो हाउस फुल
समाज सेवा का पहला कदम है मैं को मैं से अलग करना। जीवन के उद्देश्य की खोज में वह मठ जाने का निर्णय लेता है। बड़े महाराज कहते हैं कि उसे सांसारिक सुख, माता-पिता, परिवार त्यागना होगा। वह तैयार हो जाता है। मठ में आनंद को योगी आदित्यनाथ नाम दिया जाता है। वहां से कहानी मठ का उत्तराधिकारी, फिर लोकसभा सासंद और मुख्यमंत्री बनने के सफर पर आगे बढ़ती है।
सुपरहीरो न बनाकर दिखाई साधारण व्यक्ति की कहानी
जब किसी के जीवन को फिल्म में ढाला जाता है, तो उसका महिमामंडन करने के चक्कर में फिल्म एक तरफा लगने लगती है। इस फिल्म में लेखक दिलीप बच्चन झा और प्रियंक दुबे ऐसा करने से बचे हैं। निर्देशक रविंद्र गौतम ने भी योगी आदित्यनाथ को सिनेमाई स्वतंत्रता लेते हुए कोई सुपरहीरो नहीं बनाया है। उन्होंने एक साधारण व्यक्ति की कहानी दिखाई हैं, जिसके जीवन के संघर्ष, अन्याय के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत, साहसिक निर्णय लेने की क्षमता ने उसकी यात्रा को असाधारण बना दिया।
विष्णु राव की सिनेमैटोग्राफी और मीत ब्रदर्स का संगीत इस यात्रा को दिखाने में भरपूर सहयोग करते हैं। फिल्म का स्क्रीनप्ले और दमदार संवाद फिल्म को कहीं छूटने नहीं देते हैं। यह फिल्म योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक नहीं, बल्कि निजी जीवन पर ज्यादा केंद्रित है। मुख्यमंत्री बनते ही फिल्म खत्म हो जाती हैं, इसलिए उनके बुलडोजर बाबा वाला अंदाज फिल्म में नहीं दिखता। फिल्म में न ही उनकी राजनीतिक पार्टी का महिमामंडन है, न ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जिक्र करके उनसे नाम पर कोई पब्लिसिटी लेने का प्रयास किया गया है।
आनंद के माता-पिता का उसे खोजते हुए मठ पहुंचने और वहां उन्हें देखकर भी अपने इरादों पर योगी का अडिग रहने वाला दृश्य आंखें नम करता है। हालांकि योगी आदित्यनाथ के विधानसभा चुनाव लड़ने, डुमरियागंज में रैली के लिए छुपकर पहुंचने, टेंडर माफिया के खिलाफ मोर्चा, साल 2007 में संसद में भावुक होने और मुख्यमंत्री बनने वाले प्रसंगों को जल्दबाजी में निपटाया गया है। ऐसे में उनकी राजनीतिक सफर से जुड़ना कठिन हो जाता है।
योगी आदित्यनाथ के निडर स्वभाव को दिखाती है फिल्म
न्याय बराबरी का होना चाहिए..., उद्देश्य भयमुक्त समाज का... उद्देश्य एक रामराज्य का... बाबा आते नहीं प्रकट होते हैं जैसे संवाद से योगी आदित्यनाथ के निडर और हार न मानने वाले स्वभाव को दिखाने के लिए फिट बैठता है। प्रधानमंत्री का नारा एक रहोगे तो सेफ रहोगे जैसे संवादों को जोड़कर फिल्म को प्रासंगिक बनाया गया है।
अनतं जोशी की आवाज और अंदाज दोनों ही उन्हें इस फिल्म के लिए सही कलाकार साबित करता है। आनंद से योगी आदित्यनाथ तक के सफर को अनंत अपने अभिनय से यादगार बनाया है। बाहर से सख्त, भीतर से नर्म और खुद्दार पिता की भूमिका में पवन मल्होत्रा जंचते हैं। मां की भूमिका में गरिमा विक्रांत सिंह ने बेहतरीन काम किया है। शांत लेकिन दमदार निर्णय लेने वाले बड़े महाराज की भूमिका में परेश रावल जीवन में गुरु की अहमियत समझा जाते हैं।
पत्रकार की भूमिका में दिनेश लाल यादव का काम अच्छा है, लेकिन वह हमेशा योगी आदित्यनाथ के साथ क्यों रहते हैं, उसका कारण समझ नहीं आता। प्रभावशाली व्यक्ति मुश्ताक अहमद के रोल में राजेश खट्टर की भूमिका स्पष्ट नहीं है। जिसकी शेरों जैसी चाल..., बाबा बैठ गए... गाने कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।