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    SSKTK Movie Review: वरुण- रोहित नहीं, इस एक्टर ने कंधे पर उठाई पूरी फिल्म, कैसी है कहानी? पढ़ें रिव्यू

    Updated: Thu, 02 Oct 2025 03:36 PM (IST)

    Sunny Sanskari Ki Tulsi Kumari Review वरुण धवन और जाह्नवी कपूर की रोमांटिक कॉमेडी ड्रामा फिल्म सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी देखकर दर्शकों के मन में कई सवाल उठने वाले हैं। दशहरा के मौके पर रिलीज इस फिल्म में शशांक खैतान ने कुछ नया करने की कोशिश नहीं की। क्या है फिल्म की कहानी यहां पर पढ़ें रिव्यू

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    सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी रिव्यू/ फोटो- Jagran Photo

    स्मिता श्रीवास्‍तव, मुंबई। साल 1998 में आई अनीस बज्‍मी निर्देशित फिल्‍म ‘प्‍यार तो होना ही था’ में पेरिस में रहने वाली संजना (काजोल) को जब पता चलता है भारत आया उसका मंगेतर किसी दूसरी लड़की के प्‍यार में पड़ गया है तो वह उसे अपने साथ वापस लाना तय करती है।

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    उसका साथ इस सफर में शेखर (अजय देवगन) देता है। इसी मिलते जुलते आइडिया पर आधारित है फिल्‍म सनी संस्‍कारी की तुलसी कुमारी। निर्देशक और लेखक शशांक खेतान इससे पहले अपनी फिल्‍म बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया और हंप्‍टी शर्मा की दुल्‍हनिया में भी कम पढ़ा लिखा नायक और उसके प्‍यार को पाने की कोशिशों को दिखा चुके हैं। उसमें एक जोड़ा शादी से नाखुश होता है । संवादों में फिल्मों के नाम या कलाकारों की मिमिक्री जैसे मसाले प्रयुक्त करके कॉमेडी को पैदा करने की कोशिश हुई है।

    ससुराल वाले बहू के नौकरी करने के पक्ष में नहीं होते जैसे फार्मूले रहे हैं। महिलाओं की आजादी और उनके सपनों को अहमियत देने की बात थी। यहां पर भी लगभग यही सब मसाले हैं, लेकिन फीके लगते हैं। संवादों में फिल्‍मों के नाम या गानों के जरिए कॉमेडी को पैदा करने की कोशिशें हुई हैं लेकिन वह फिल्‍म के लिए बहुत कारगर साबित नहीं होते हैं। रोमांटिक कॉमेडी में नायक नायिका के बीच प्रेम पनपना हो या नजरों का चुराना वो अहसास कहीं से दिल को नहीं छूता हैं।

    क्या है फिल्म की कहानी?

    कहानी बाहुबली फिल्‍म के प्रशंसक सनी संस्‍कारी (वरूण धवन) की है। सराफा व्‍यवसायी का बेटा सनी अपनी प्रेमिका अनन्‍या (सान्‍या मल्‍होत्रा) को बाहुबली के अंदाज में शादी के लिए प्रपोज करता है, लेकिन वह इनकार कर देती है। अपनी मम्‍मी के कहने पर अमीर व्‍यवसायी विक्रम (रोहित सराफ) के साथ शादी करने को तैयार हो जाती है। विक्रम भी स्‍कूल टीचर तुलसी कुमारी (जाह्नवी कपूर) के साथ प्रेम संबंध में होता है। मध्‍यवर्गीय परिवार से आने वाली तुलसी के माता पिता में अलगाव की वजह से विक्रम की मां और बड़े भाई परम (अक्षय ओबेरॉय) उसे पसंद नहीं करते।

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    विक्रम और अनन्‍या की शादी तीन सप्‍ताह बाद होनी है। वह अपने प्‍यार को वापस पाने के लिए सनी शादी को तुड़वाने की योजना बनाता है। वह अपने साथ तुलसी को लेकर शादी के आयोजन स्‍थल उदयपुर पहुंचता है। तुलसी को लगता है कि बोरिंग होने की वजह से विक्रम ने उसे छोड़ दिया। अब पांच दिन शादी के बचे हैं। यहां पर तुलसी और सनी करीब आएंगे या अपने प्‍यार को पाएंगे कहानी इस संबंध में हैं।

    रिश्तों में प्यार की गहराई का एहसास नदारद

    शशांक खेतान के दृश्‍य,संवाद और कलाकारों की कामोत्‍तेजक मुद्राएं मस्‍ती और मनोरंजन में विफल रही हैं। लगभग एक जैसे भाव और प्रतिक्रियाओं से ऊब ही होती है। फिल्‍म के पहले हिस्‍सा में सनी और तुलसी जलन पैदा करने, पुराना अहसास जगाने, गलतफहमियां जैसे पैतरे आजमाते हैं। इसमें सारा फोकस सनी और तुलसी पर हो जाता है अनन्‍या और विक्रम के पात्र बहुत दब जाते हैं।

    उनके संवाद हो या दोनों पक्षों के बीच होड़ वह रोमांचक और दिलचस्‍प नहीं बन पाई है। रिश्‍तों में प्‍यार की गहराई का अहसास भी नदारद है जबकि दोनों युगल के संबंध पुराने हैं।

    कैसा है सभी कलाकारों का फिल्म में काम?

    कलाकारों की बात करें तो वरूण धवन चिरपरिचत अंदाज में हैं। लगता है कि वह पुराने रोमांटिक किरदारों से निकल नहीं पाए हैं। उनका पात्र जिस प्रकार की शायरी करता है हंसाती कम निम्‍नस्‍तरीय लगती है। विक्रम और तुलसी की प्रेम कहानी कहीं से विश्‍वसनीय नहीं लगती। तुलसी बनीं जाह्नवी कपूर इमोशन को व्‍यक्‍त करने में कमजोर लगती है। सान्‍या मल्‍होत्रा बेहतरीन डांसर होने के साथ मंझी अभिनेत्री हैं। वह कम संवाद के बावजूद अपने भावों से समुचित तरीके से व्‍यक्‍त कर देती हैं।

    विक्रम बने रोहित सराफ ने अपने किरदार को जीने की कोशिश की है। स्क्रिप्‍ट की सीमा और कमजोरी ही उनकी हद बन गई है। वे उससे निकल नहीं पाते। अक्षय ओबेरॉय को इस प्रकार की भूमिकाओं में अपनी प्रतिभा को बर्बाद नहीं करना चाहिए। फिल्‍म का आकर्षण मनीष पॉल हैं। वह दिए गए दृश्‍यों में अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराते हैं। सहयोगी भूमिका में आए कलाकारों को स्‍थापित करना लेखक और निर्देशक ने जरूरी नहीं समझा।

    तनिष्‍क बागची और रवि पवार का रीक्रिऐट वर्जन ‘बिजुरिया’ और ए पीएस का ‘पनवाड़ी’ कुछ हद तक यादगार हैं, लेकिन बाकी गीत संगीत प्रभावशाली नहीं बन पाए हैं। सनी संस्‍कारी की तुलसी कुमारी को भले ही हल्‍की फुल्‍की मस्‍ती वाली फिल्‍म बताया गया हो, लेकिन ना तो इसकी मस्‍ती भाती है न ही कॉमेडी।

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