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    Mastiii 4 Review: ना कॉमेडी, ना कहानी...मस्ती के नाम पर एडल्ट जोक्स के साथ परोसी फूहड़ता

    By Priyanka SinghEdited By: Tanya Arora
    Updated: Fri, 21 Nov 2025 04:48 PM (IST)

    Mastiii 4 Review: विवेक ओबेरॉय, आफताब शिवदसानी और रितेश देशमुख की एडल्ट कॉमेडी 'मस्ती-4' आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। मिलाप झावेरी के निर्देशन में बनी इस मूवी में मेकर्स ने महिलाओं को बेवकूफ दिखाने ही नहीं, बल्कि एडल्ट जोक्स से फिल्म में डालने के चक्कर में कहानी का बंटाधार कर दिया है। क्या है फिल्म की कहानी, नीचे पढ़ें रिव्यू: 

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    मस्ती 4 रिव्यू/ फोटो- Jagran Graphics

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    प्रियंका सिंह, मुंबई। एडल्ट कॉमेडी हिंदी सिनेमा में कम ही बनती हैं। उसके कई कारण हो सकते हैं, हालांकि इसे बनाना आसान नहीं होता है, क्योंकि हंसाने और फूहड़ होने के बीच एक महिन रेखा होती हैं, जिसे पार नहीं करना होता है। साल 2004 में रिलीज हुई मस्ती इस जोनर में पसंद की गई थी। उसके बाद इस फ्रेंचाइज को ग्रैंड मस्ती और ग्रेट ग्रैंड मस्ती के साथ आगे बढ़ाया गया। अब मस्ती 4 (Mastiii 4 Review)आई है।

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    लव वीजा के चक्कर में फंसे तीन दोस्त

    कहानी में फिर तीनों दोस्त मीत (विवेक ओबेरॉय), अमर (रितेश देशमुख) और प्रेम (आफताब शिवदासानी) की है, जो अपनी-अपनी पत्नियों से खुश नहीं हैं। उनका दोस्त कामराज (अरशद वारसी) उनसे कहता है कि उसकी बीवी उसे लव वीजा देती है, जिसमें वह किसी भी लड़की के साथ समय बिता सकता है। तीनों अपनी पत्नियों से लव वीजा मांगते हैं, जो उन्हें मिल जाता है। जब वह वापस लौटते हैं, तो उनकी पत्नियां भी लव वीजा मांगती हैं और वह छुट्टियों पर निकल जाती हैं। आगे की कहानी के लिए फिल्म देखनी होगी।

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    महिलाओं से करवाई हैं बेवकूफाना हरकतें

    मिलाप इससे पहले की मस्ती (Mastii 4 Cast)  और ग्रैंड मस्ती की कहानी तुषार हिरानंदानी के साथ मिलकर लिख चुके हैं। वह इस दुनिया से वाकिफ थे, फिर भी इस एडल्ट कॉमेडी को बनाने में वह चूक गए हैं। न कहानी है, न स्क्रीनप्ले, न कोई यादगार गाना, न संवाद। मिलाप ने कहा था कि मस्ती 4, पहली मस्ती की तरह होगी। कहानी के मामले में यह बात सच है, क्योंकि सिचुएशन के मामले में फिल्म हूबहू पहली मस्ती जैसी है। लेकिन पहली मस्ती जैसी कोई मस्ती फिल्म में नहीं है। कॉमेडी फूहड़ है। महिला पात्र केवल बिकिनी पहने और बेवकूफाना हरकतें करने के लिए हैं।

    संवाद में महिला पात्र का यह कहना कि अकेली रहती हूं, सुबह उठकर आई पिल (इमरजेंसी गर्भनिरोधक गोलियां) खाती हूं... या फिर लड़कियों के लिए कहना कि मरती है तो मर जाए साली... मिलाप और फारुख धोंडी के लेखन पर सवाल खड़े करती है कि क्या कॉमेडी के नाम पर ऐसे संवाद लिखना लोगों को वाकई हंसाएगा। घोड़े की खाल में आफताब और रितेश का सीन जैसे शूट किया गया है, उससे बेहतर तो आज के बच्चे अपने फोन से कर लेते हैं।

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    अरशद वारसी की फिल्म में नहीं थी जरुरत?

    अभिनय की बात की जाए, तो विवेक ओबेरॉय, रितेश देशमुख (Riteish Deshmukh और आफताब शिवदासानी में केवल रितेश ही हैं, जो अपन अभिनय से थोड़ा बहुत हंसा पाते हैं। अरशद वारसी और नर्गिस फाखरी फिल्म में क्यों हैं, उसका जवाब न ही ढूंढना बेहतर है। बाकी तीनों मुख्य अभिनेत्रियां हिंदी बोलने के लिए संघर्ष करती रह जाती हैं। बिहार पुलिस के ऑफिसर के रोल में तुषार कपूर न वहां की बोली पकड़ पाते हैं, न हंसा पाते हैं। फिल्म में कोई गाना भी था? थिएटर से निकलकर याद नहीं रहता।

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