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    Laapataa Ladies Review: भटके बिना सही पते पर पहुंचती है किरण राव की लापता लेडीज, हंसते-हंसते कह दी काम की बात

    Updated: Thu, 29 Feb 2024 03:14 PM (IST)

    किरण राव निर्देशित Laapataa Ladies का निर्माण आमिर खान ने किया है। इस फिल्म के साथ किरण 13 साल बाद निर्देशन में लौटी हैं और उन्होंने एक मनोरंजक फिल्म (Laapataa Ladies Review) बनाई है। लापता लेडीज की असली ताकत इसकी कहानी और कलाकारों का अभिनय है। रवि किशन ने पुलिस अधिकारी के किरदार में यादगार अभिनय किया है। वहीं नवोदित कलाकारों ने भी छाप छोड़ी है।

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    लापता लेडीज शुक्रवार को रिलीज हो रही है। फोटो- इंस्टाग्राम

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। कहानी दो दुल्‍हनों के अनजाने में अदला-बदली की है, लेकिन उनके बहाने ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी को करीब से टटोल जाती है। साधारण सी कहानी में कई पल हैं, जो हंसाने के साथ झकझोरते हैं।

    घूंघट की आड़ में बदल गई दुल्हन

    कहानी साल 2001 में सेट घूंघट में ढकी दो नवविवाहिताओं की है। दोनों यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेन में अगल-बगल बैठकर आ रही होती हैं। अपना स्‍ट्रेशन आने पर दीपक (स्‍पर्श श्रीवास्‍तव) सो रही अपनी पत्‍नी फूल कुमारी (नितांशी गोयल) को जगाकर स्‍टेशन पर उतारता है।

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    दुल्‍हन उसके साथ उतर जाती है। घर पहुंचने पर पारम्परिक रस्मों के दौरान पता चलता है कि दुल्‍हन की अदला-बदली हो गई है। बदली दुल्‍हन देखकर दीपक और उसके स्‍वजन हड़बड़ा जाते हैं। यह दुल्‍हन अपना नाम पुष्‍पा (प्रतिभा रांटा) बताती है।

    उसे अपने ससुराल का पता ठीक से पता नहीं होता। परिवार अपनी असली बहू फूल की तलाश में जुटता है। फूल उधर दूसरे परिवार को देखकर सकते में आ जाती है। उसे अपने ससुराल के गांव का नाम तक पता नहीं होता। बस इतना याद होता है कि किसी फूल के नाम पर है।

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    उसे स्‍टेशन पर दुकान चलाने वाली मंजू माई (छाया कदम) अपने यहां पनाह देती हैं। दोनों दुल्‍हनों का ससुराल पक्ष पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराता है। इस दौरान पुष्‍पा की गतिविधियां संशय पैदा करती हैं। इंस्‍पेक्‍टर मनोहर (रवि किशन) उसकी हरकतों पर नजर रखता है। उधर फूल इस इंतजार में है कि उसका पति उसे खोजते हुए आएगा। उनकी जिंदगी की परतें खुलना आरंभ होती हैं।

    पति की अपेक्षाओं पर खरी उतरीं किरण राव

    फिल्‍म के निर्माता आमिर खान हैं। कहानी बिप्‍लब गोस्‍वामी ने लिखी है। स्‍क्रीनप्‍ले और संवाद स्‍नेहा देसाई का है। आमिर ने ही यह कहानी अपनी पूर्व पत्‍नी किरण को बनाने के लिए दी थी। उस उम्‍मीदों पर वह खरी उतरी हैं। फिल्‍म धोबी घाट के निर्देशन के करीब 13 साल बाद किरण राव ने निर्देशन में वापसी की है।

    साधारण सी कहानी में महिलाओं की आत्‍मनिर्भरता, शिक्षा, जैविक खेती जैसे मुद्दों के साथ उनकी दिशा और मनोदशा को कहानी में खूबसूरती साथ चित्रित किया गया है। उसके बावजूद फिल्‍म कहीं से भी उपदेशात्मक नहीं लगती है।

    फिल्‍म के संवाद चुटकीले, मारक और परिस्थिति अनुकूल है। फिल्‍म दो दुल्हनों के बहाने महिलाओं की जिंदगी से जुड़े कई पहलुओं को छूते हुए निकल जाती है। इस दौरान समाज की कई कड़वी वास्तविकताओं को बिना लाग लपेट के बता जाती है। फिल्‍म गांव की समस्याओं की ओर भी इंगित करती है कि रोजगार की तलाश में शहर की ओर पलायन जारी है।

    कलाकारों ने बढ़ाई स्क्रिप्ट की रौनक

    आम हिंदी फिल्‍मों की तरह यहां पर कोई खलनायक नहीं है। पुलिसकर्मी मनोहर भले ही भ्रष्‍ट और लालची है, लेकिन चरित्रहीन नहीं हैं। रवि किशन इस पात्र के लिए सटीक कास्टिंग हैं। वह अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराते हैं। वह हर दृश्‍य के साथ अपना प्रभाव छोड़ते हैं।

    वहीं, नितांशी गोयल, प्रतिभा रांटा और स्पर्श श्रीवास्‍तव पहली फिल्‍म होने के बावजूद किरदार में रमे नजर आते हैं। कई धारावाहिक का हिस्‍सा रहीं प्रतिभा का पात्र चालाक होने के साथ बुद्धिमान भी है। वह अपनी कुशाग्रता से किस प्रकार अपने सपने के लिए राहें बना रही हैं, वह चौंकाता है।

    प्रतिभा ने पुष्‍पा के मनोभावों को बहुत सहजता से आत्‍मसात किया है। पुष्‍पा की सच्‍चाई सामने आने पर वह सहानुभूति बटोरने में कामयाब रहती हैं। नितांशी टीवी धारावाहिकों का हिस्‍सा रहने के साथ सोशल मीडिया पर काफी लोकप्रिय हैं।

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    फूल की भूमिका में वह काफी मासूम दिखी हैं। फूल स्‍टेशन पर काम करने के दौरान सीखती है कि औरतों को अपने अस्तित्‍व को पहचानने की जरूरत है। उसका पात्र निरक्षर होने की वजह से किस प्रकार संकट में आता है, उसके प्रभाव कहानी में उबारे गए हैं। नितांशी ने उसे अपनी अदायगी से विश्‍वसनीय बनाया है।

    वेब सीरीज जामताड़ा से सुर्खियों में आए स्‍पर्श श्रीवास्‍तव नवविवाहित पत्‍नी के गुम होने का दर्द और दोस्‍तों के आक्षेप से परेशान युवक की भूमिका में प्रभावित करते हैं। छाया कदम का काम उल्‍लेखनीय हैं।

    उनके साथ आए सहयोगी पात्र की भूमिका में आए कलाकार भी कहानी में कई बार खामोश रहकर भी बहुत कुछ बयां कर जाते हैं। सिनेमेटोग्राफर विकाश नौलाखा ने ग्रामीण जीवन को बारीकी से अपने कैमरे से दिखाया है। राम संपत का संगीत और स्‍वानंद किरकिरे, प्रशांत पांडे, दिव्‍यनिधि शर्मा द्वारा लिखित गाने ग्रामीण पृष्‍ठभूमि केे अनुरूप हैं।