Agni Review: ओटीटी पर 'अग्नि' देखने से पहले जान लें इसका रिव्यू, फिसलती कहानी में भी दे गई बड़ा संदेश
फरहान अख्तर के निर्माण में बनी फिल्म अग्नि (Agni Review) ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हो गई है। अगर आप भी इस एक्शन थ्रिलर का आनंद लेने की सोच रहे हैं तो फिल्म का लुत्फ उठाने से पहले इसका रिव्यू जान लें। राहुल ढोलकिया ने सात साल बाद अग्नि से बतौर निर्देशक कमबैक किया है। कहानी एक फायरमैन की है।

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। फिल्म के एक दृश्य में दमकलकर्मी 'कहता है कि फायरब्रिगेड वालों का पसंदीदा शब्द पागल है। पागल में पा का अर्थ पानी, गा का मतलब गैस और एल का मतलब लाइट है। ये तीन बिंदु हैं, जो हर किसी को अपने घर से बाहर निकलने से पहले बंद करना चाहिए, ताकि आग लगने का कम से कम जोखिम हो। फायर ब्रिगेड का काम जितना आसान दिखता है, उतना होता नहीं है। दमकलकर्मी अपनी जान को जोखिम में डालकर लोगों की जिंदगी बचाते हैं। इसके बावजूद उन्हें वह सम्मान और स्वीकृति नहीं मिलती, जिसके वे हकदार होते हैं ।
इस विषय को राहुल ढोलकिया ने फिल्म 'अग्नि' में उठाया है। कहानी मुंबई के लोअर परेल की है। फायर ब्रिगेड टीम के मुखिया विट्ठल राव ( प्रतीक गांधी) को इस बात की नाराजगी है कि दमकलकर्मियों को यथोचित सम्मान नहीं दिया जाता। उसका बेटा पिता के बजाय पुलिस में कार्यरत मामा समित (दिव्येंदु शर्मा) को आदर्श मानता है। कहीं आग लगने का फोन आने पर विट्ठल की पत्नी ( सई ताम्हणकर) सहमी रहती है।
आगजनी की घटनाओं पर आधारित फिल्म
शहर में आगजनी की घटनाओं पर विट्ठल अपनी टीम के साथ तत्परता से भागता है, जिसमें महिला दमकलकर्मी अवनि (सैयामी खेर) भी है। विट्ठल और उसकी टीम आग लगने के कारणों की पड़ताल भी करते हैं। इसे लेकर समित के साथ उसकी तकरार भी होती है, जो इन मामलों की जांच को बहुत गंभीरता से नहीं लेता है। आगजनी की घटनाओं के पीछे कोई साजिश है या कुछ और, कहानी इन्हीं पहलुओं पर आगे बढ़ती है ।
7 साल बाद राहुल ढोलकिया का कमबैक
शाह रुख खान अभिनीत 'रईस' का निर्देशन करने के करीब सात वर्ष बाद राहुल ढोलकिया ने 'अग्नि' बनाई है। बिल्डिंग में आग लगने पर उसमें फंसे लोगों को निकालने के लिए दमकलकर्मी किस तत्परता से काम करते हैं? नियमों को किस प्रकार ताक पर रखा जाता है? राहुल ने यह बताने की कोशिश की है कि हमारी सेना, पुलिस और सभी स्तरों के सुरक्षा बलों की तरह, एक फायर फाइटर की भूमिका भी सैनिक सरीखी है।
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सही दिशा से भटकती कहानी
ढोलकिया और सह-लेखक विजय मौर्य द्वारा लिखित पटकथा आकर्षक है, लेकिन कहानी को सही दिशा देने में वह भटक गए हैं। रचना मंडल और बिधान गुहा ने फायर स्टेशन और आसपास के स्टाफ क्वार्टरों को प्रामाणिक तरीके से डिजाइन किया है। मुंबई की गलियों को सिनेमैटोग्राफर के.यू. मोहनन ने समुचित तरीके से कैमरे में कैद किया है।
स्टार कास्ट ने दिखाया दम
कलाकारों में कर्तव्यनिष्ठ मुख्य फायरमैन की भूमिका में प्रतीक गांधी फायरब्रिगेड कर्मियों की अंदरूनी ज्वाला को दर्शाने में चमकते हैं। स्वार्थी पुलिसकर्मी की भूमिका में दिव्येंदु का अभिनय सराहनीय है। अवनि की भूमिका में सैयामी खेर प्रभावित करती हैं। रुक्मिणी सुर्वे की भूमिका में सई ताम्हणकर पूरा योगदान देती है। अग्नि कुछ कमियों के बावजूद अहम संदेश देने में सफल रहती है।
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