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25 साल का हुआ 'चाणक्य', डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने बताया कैसे बना 'इतिहास'

मुझे इस बात का पता नहीं था। मैंने अचानक ऊपर देखा तो इरफ़ान से मैंने पूछा कि क्या हुआ यहां क्यों खड़े हो? इरफ़ान ने मुझे कहा कि थैंक्यू सर और उसकी आंखें नम हो गयी थीं।

By Manoj KumarEdited By: Published: Wed, 07 Sep 2016 05:26 PM (IST)Updated: Thu, 08 Sep 2016 05:14 PM (IST)

मुंबई। 8 सितंबर,1991 को डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी निर्मित धारावाहिक 'चाणक्य' का प्रसारण शुरू किया गया था। शो का प्रसारण जब दूरदर्शन पर हुआ, तो दर्शकों ने इसे काफी सराहा।

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इस धारावाहिक के माध्यम से भारतीय अर्थनीति और राजनीति के महागुरू कौटिल्य यानि चाणक्य की जीवनी को टीवी पर इतने वृहद तरीके से लोगों ने पहली बार देखा था, जो आज भी ऐतिहासिक विषयों पर बने धारावाहिकों में एक पुख्ता दस्तावेज के तौर पर देखा जाता है। इस शो को आज 25 साल पूरे हो रहे हैं। डॉ. द्विवेदी ने अनुप्रिया वर्मा से बातचीत में जागरण डॉट कॉम के साथ यादों को साझा किया है।

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कई नामचीन हस्तियों को मिला था पहला ब्रेक: इस शो के निर्देशक डॉ चंद्र प्रकाश द्विवेदी शो से जुड़ी अपनी पुरानी यादों को शेयर करते हुए बताते हैं कि जब उन्होंने यह तय किया था कि वे इस शो का निर्माण करेंगे, तो इसमें उन कलाकारों को प्राथमिकता देने का निश्चय कर लिया था, जो नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से अभिनय की ट्रेनिंग लेकर आये हों। यही वजह थी कि उन्होंने अभिनेता संजय मिश्रा, इरफ़ान खान, दीपराज राणा जैसे कलाकारों को शो में शामिल किया, जो बाद में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के बेहतरीन कलाकार साबित हुए।

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डॉ. द्विवेदी बताते हैं- "संजय मिश्रा को पहली बार मैंने ही इस शो के लिए एक्शन बोला था, और मुझे ख़ुशी हैं कि वह जो सपना लेकर मुंबई आये थे, उन्होंने इसे पूरा कर लिया। मुझे अच्छी तरह याद है, उस वक़्त इरफ़ान खान ने इस शो से पहले एक-दो शो किए थे। हमने फिल्मसिटी में सेट लगाया था और मैं वहां खटिया बिछाकर स्क्रिप्ट लिखता था। मैंने देखा कि वहां इरफ़ान खड़े थे कोने में। मुझे इस बात का पता नहीं था। मैंने अचानक ऊपर देखा तो इरफ़ान से मैंने पूछा कि क्या हुआ यहां क्यों खड़े हो? इरफ़ान ने मुझे कहा कि थैंक्यू सर और उसकी आंखें नम हो गयी थीं। और आज वह जिस मुकाम पर हैं। मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि इस तरह के टेलेंट के साथ मैंने काम किया।"

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डॉ. द्विवेदी बताते हैं कि इस शो में पहली बार कॉस्ट्यूम को अहमियत देना शुरू किया था हमने, और सलीम आरिफ भी इसी शो की खोज हैं। नितिन देसाई, जो फिलहाल हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सबसे बड़े और प्रसिद्ध आर्ट डायरेक्टर के रूप में जाने जाते हैं। इसी शो की खोज थे। 'बालिका वधू' के लेखक पुरेंद्रु शेखर ने भी इसी शो से अपनी पहली शुरुआत की थी।

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...और सेट पर होती रहती ये घटनाएं: चाणक्य के सेट पर सच कहूं तो अजीब से किस्से भी होते थे। सेट पर इतनी दुर्घटनाएं होती थीं कि लगता था कि पता नहीं हमलोग पूरे एपिसोड की शूटिंग कर पाएंगे भी कि नहीं। लेकिन इस टीम में काम करने वाले लोगों का यह जूनून ही था कि सब चोटिल होकर भी काम करना नहीं छोड़ते थे।

''मुझे याद है एक सीन में घोड़ों के साथ शूटिंग करनी थी। शाम कौशल ने एक्शन डिजाइन किया था। दिनेश शकुल, जिन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य का किरदार निभाया था। वो घोड़े पर थे , कि अचानक घोड़ा 360 डिग्री घूमा और दिनेश जमीं पर जा गिरे। वहीं दूसरी तरफ मैंने देखा कि सामने से 55 घोड़े आ रहे हैं। मैंने दिनेश को फौरन निर्देश दिया कि वो घोड़े पर बैठें, मैंने कट नहीं कहा था। दिनेश ने हाथ झाड़ा और फ़ौरन घोड़े पर बैठे। बाद में उन्हें यह बात समझ आयी कि अगर मैं उन्हें ऐसा करने को ना कहता तो वो 55 घोड़ों के बीच दबे रह जाते।''

इस सेट पर और भी कई दुर्घटनाएं हुई थीं । किसी ना किसी कारण से आग भी लग जाती थी। लेकिन सारी मुसीबतों को झेलकर भी कोई बीच में शो छोड़कर जाने को तैयार नहीं होता था। इस शो का सेट नितिन ने कई बार दुरुस्त किया था। तब जाकर इस शो की शूटिंग पूरी हो पायी थी।

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मिली पिंजर की शूटिंग की इजाजत : डॉ. द्विवेदी बताते हैं कि इस शो की वजह से ही 'पिंजर' फिल्म की शूटिंग पूरी हो पायी थी। हुआ यह था कि 'पिंजर' के लिए हमलोग भारत-पाक बॉर्डर के निकट ही शूटिंग के लिए जाना चाहते थे। लेकिन उस वक़्त बॉर्डर पर हालात खराब थे, सो हमें शूटिंग करने की इजाजत नहीं मिल रही थी, ऐसे में मैं जाकर डिफेंस सेक्रेटरी से मिला। तो उन्होंने फ़ौरन मुलाकात की और मुझसे कहा कि आपने 'चाणक्य' जैसा शो बनाया है, तो मैं जानता हूं कि आप गंभीर काम ही करते होंगे और करेंगे। सो, आप चिंता ना करें मैं आपको परमिशन दिलाऊंगा। इस शो की वजह से ही मुझे 'पिंजर' फिल्म की शूटिंग करने का मौका मिला।


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