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    'ऑस्कर' गई अमिताभ बच्चन की इस फिल्म में संगीत देकर हुए थे लोकप्रिय, 'रामायण' से घर-घर पहुंचे रवींद्र जैन के सुर

    Updated: Wed, 28 Feb 2024 09:30 AM (IST)

    म्यूजिक इंडस्ट्री के दिग्गज संगीतकार गीतकार और गायकों में से एक Ravindra Jain अब भले ही इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन वह अपने सदाबहार गीतों के जरिए चाहने वालों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे। 28 फरवरी को रविंद्र जी की बर्थडे एनिवर्सरी है। इस खास मौके पर हम आपको गायक के बारे में कुछ दिलचस्प किस्से बताने जा रहे हैं।

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    मंदिरों में भजन गाया करते थे रविंद्र जैन। फोटो क्रेडिट- इंस्टाग्राम

    एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। Ravindra Jain Birth Anniversary: गायक अपनी आवाज का जादू चलाते हैं, संगीतकार अपने संगीत की कला से गीत को और भी आकर्षक बनाते हैं और सबसे जरूरी गीतकार जो एक गीत की रचना करते हैं...

    संगीत की दुनिया में कोई बेहतरीन गायक बना, कोई संगीतकार तो कोई गीतकार... मगर एक ऐसी शख्सियत रही, जिन्होंने इन तीनों विभागों में महारत हासिल की और दुनियाभर में मशहूर हो गए। हम बात कर रहे हैं 28 फरवरी 1944 को अलीगढ़ में जन्मे रवींद्र जैन (Ravindra Jain) की।

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    संस्कृत के पंडित इंद्रमणि जैन और किरण जैन के घर जन्मे रवींद्र जैन दृष्टिहीन थे, लेकिन उनके अंदर प्रतिभा की तेज रोशनी थी, जो उन्हें दुनिया से अलग बनाती थी। बचपन में ही पिता को रवींद्र जी की प्रतिभा का एहसास हो गया था। उन्होंने जी.एल. जैन, जनार्दन शर्मा और नाथू राम जैसे दिग्गजों से संगीत की शिक्षा हासिल की थी।

    पहले गाने को मोहम्मद रफी ने दी थी आवाज

    रवींद्र जैन ने अपनी गायकी मंदिरों से शुरू की थी। जी हां, फिल्मों में आने से पहले वह मंदिरों में भजन गाया करते थे। फिर 1972 में उन्हें 'कांच और हीरा' मिली, जिसमें उन्होंने 'नजर आती नहीं मंजिल' गीत बनाया, जिसे आवाज दी थी मोहम्मद रफी ने। फिल्म भले ही न चली हो, लेकिन रवींद्र जी को अपना रास्ता मिल गया था। 

    Ravindra Jain

    इस फिल्म से मिली थी शोहरत

    रवींद्र जैन के करियर में मील का पत्थर साबित हुई थी अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) की फिल्म 'सौदागर' (1973)। ये फिल्म एकेडमी अवॉर्ड्स के लिए देश की ऑफिशियल एंट्री भी रही थी। भले ही 'सौदागर' ने रवींद्र जी की किस्मत का ताला खोल दिया था, लेकिन यह फिल्म 'चोर मचाए शोर' का गीत 'घुंघरू की तरह' था, जिसने गायक को रातोंरात शोहरत दिला दी थी। इस गीत को किशोर कुमार ने गाया था। 

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    पिता के निधन के बाद भी नहीं छोड़ा था स्टूडियो

    रवींद्र जैन अपने कमिटमेंट को लेकर कितने सीरियस हुआ करते थे, यह उनके एक इंसिडेंट से साफ जाहिर होता है। कहा जाता है कि जब रविंद्र जैन के पिता का निधन हो गया था, उस वक्त उन्हें यह खबर तब मिली थी, जब वह फिल्म 'सौदागर' के गीत 'सजना है मुझे सजना के लिए' को डायरेक्ट कर रहे थे। वह बिना गीत को पूरा किए रिकॉर्डिंग स्टूडियो से नहीं गए थे।

    Ravindra Jain

    सिर्फ इस संगीतकार को देखना चाहते थे रवींद्र जैन

    रवींद्र जैन का करियर तब आगे बढ़ा जब उनकी मुलाकात गायक केजे येसुदास से हुई। उन्हें येसुदास से इतना प्यार था कि उन्होंने एक बार कहा था कि अगर कभी उनकी रोशनी लौटेगी तो वे येसुदास का चेहरा देखना चाहेंगे। इस जोड़ी ने एक के बाद कई फिल्मों में हिट गीत दिये। चाहे वह 'गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा' (चितचोर, 1976) या 'तेरी भोली मुस्कान' (बाबुल) हो, रवींद्र जैन और येसुदास की जोड़ी ने संगीत की दुनिया को कई हिट गीतों से नवाजा।

    Ravindra Jain Yesudas

    रामायण को घर-घर में दिलाई पहचान

    फिल्मों में गीत बनाने वाले रवींद्र जैन धार्मिक एलबम के लिए भी मशहूर हुए। आज भी मंदिरों में उनके भजन गूंजते हैं। रामानंद सागर के पौराणिक टीवी शो 'रामायण' (Ramayan) के गीतों को उन्होंने अमर कर दिया था। उन्होंने न केवल इस सीरियल के लिए गीत बनाए, बल्कि चौपाई भी गाईं। 

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