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    Ravindra Jain Birthday : गीत-संगीत का ऐसा नायक, जिसने मन की आंखों से लिख डाली ब्रज की होली

    By Anil KushwahaEdited By:
    Updated: Mon, 28 Feb 2022 10:24 AM (IST)

    आज के दिन संगीत एवं गीतकार रविंद्र जैन का जन्‍म हुआ था। उनके लिखे गीत आज भी लोगों की जुबान पर हैं। ब्रज की होली विश्‍व विख्‍यात है। यहां की मस्‍ती को ...और पढ़ें

    28 फरवरी 1944 को जिला अलीगढ़ के मोहल्ला कनवरीगंज जन्मे थे रवींद्र जैन ।

    विनोद भारती, अलीगढ़ । क्या किसी दृश्य को देखे बिना उसका चित्रण संभव है? जवाब ना में ही मिलेगा। लेकिन प्रसिद्ध संगीत व गीतकार रवींद्र जैन ने बिना देखे ही जो लिखा, उसका पूरा देश दीवाना हो गया। उन्होंने मन की आंखों से ब्रज की होली लिख डाली। उनके लिखे, सुर व संगीतबद्ध होली गीतों की गूंज देश ही नहीं, पूरी दुनिया तक पहुंची। अपने गीत-संगीत से होली के रंगों को और गहरा कर दिया। होली आते ही उनके गीत जुबां पर चढऩे लगे हैं। ग्र्रामीण इलाकों में तो जोगी जी धीरे, धीरे, जोगी जी वाह...जोगी जी...गीत गाते, गुनगुनाते लोगों यह एहसास कराने लगे कि अब होली दूर नहीं।

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    ब्रज की होली की मस्‍ती को तरसती है दुनिया

    ब्रज की होली ही ऐसी है, जिसकी मस्ती को दुनियां तरसती है। एक झलक को लोग उमड़ते हैं। भगवान श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम रंग ने इस होली को जो रूप दिया, उसे रवींद्र जैन के गीतों से भी जाना और समझा जा सकता है। 28 फरवरी 1944 को जिला अलीगढ़ के मोहल्ला कनवरीगंज जन्मे रवींद्र जैन ब्रज के हर रंग में रसे बसे थे। जन्म से ही नेत्र दिव्यांग जरूर थे, पर मन की आंखों से होली का कोई रंग बचा नहीं। फिल्मों के लिए दर्जनों होली गीत लिखे और संगीतबद्ध किए। रंगों की बौछार करती टोली, आपसी नोकझोंक, हुरियारों की मस्ती, हंसी-ठिठोली को उन्होंने अपने गीत-संगीत से दुनिया को समझाया। फिल्म खून खराबा' के गीत-'होली आई रे...' में शुरुआत नजर आई। गोपाल कृष्णा फिल्म में-'आयो फागुन हठोलो, गोरी चोली पै पीलो रंग डारन दे...', ने खूब धूम मचाई। फिल्म षड्यंत्र में 'होली आई होली..हां मस्तानों की टोली, सबके लबों पे प्यार भरी बोली', का सुरूर भी लोगों पर खूब चढ़ा। इन गीतों में उनका कृष्ण से जुड़ाव भी परिलक्षित होता है। वहीं, ब्रज भूमि के गीत 'गोरौ रंग भयौ जी कौ जंजाल, कबहू होत गुलाबी, कबहू होत लाल, मौपे रंग डाल दे, कन्हैया मौपे रंग डाल दे से ब्रज की होली का महत्व बता पूरी दुनिया को ब्रज रस में सराबोर कर दिया।

    रवींद्र जैन और आरके स्टूडियो की होली

    एक समय आरके स्टूडियो में जमकर होली खेली जाती थी। इसमें तमाम फिल्में सितारे जुटते थे। रंग बरसे भीगे चुनर वाली, गीत से शुरुआत होती थी तो अंत 'जोगी जी धीरे-धीरे' से होती थी। फिल्म नदिया के पार का यह सुपरहिट गीत रवींद्र जैन ने ही लिखा और संगीतबद्ध किया था।

    ब्रज ते फागुन मास कबहू ना जावै...

    रवींद्र जैन ने होली ही नहीं, फाल्गुन मास की महत्ता को मन की आंखों से महसूस किया। ब्रज भूमि फिल्म में उन्होंने गाया 'श्याम लला दल लेके चला, भर-भर कै अबीर गुलाल ते झोली, छूट न जाय नवैली कोई, बिन भीजैं फिरे जाही ताक में टोली, अवसर पाय कै न चूके कौऊ, जो जाय रुचै ताहे कंठ लगावै, ऐसौ उपाय करौ ब्रज ते फागुन मास कबहू नहीं जावै।

    भजनों में भी होली

    फिल्मी गीतों के अलावा रवींद्र जैन ने टीवी सीरियल व एलबम के लिए भजन के रूप में होली के गीत लिखे और गाये। श्रीकृष्णा सीरियल में उनका लिखा गीत 'प्रेम भरा त्योहार, लिए रंगन के बौछार, ब्रज में होली आई रे' खूब पसंद किया गया। उन्होंने होली खेले मुनीराजा, होली खेले नंदनाल समेत दर्जनभर होली गीतों का सृजन किया।

    कोलकाता में ली संगीत की शिक्षा

    पिता इंद्रमणि जैन आयुर्वेदाचार्य थे। सात भाई-बहन थे। नेत्र दिव्यांग होने के कारण सभी उनके भविष्य को लेकर ङ्क्षचतित रहते थे। सूरदास से प्रेरित हो रवींद्र जैन ने स्वयं को साबित करने के लिए संगीत की साधना शुरू की। कोलकाता चले गए, जहां संगीत का अच्छा माहौल मिला। 1969 में मुंबई पहुंचकर फिल्मी दुनिया में कदम रखा। तब एसडी बर्मन, सलिल चौधरी, कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे दिग्गज संगीतकारों का दबदबा था। रवींद्र जैन ने भारतीय शास्त्रीय व लोक संगीत व उन पर आधारित कर्णप्रिय गीतों से जल्द ही लोगों के दिल में जगह बना ली। नौ अक्टूबर 2015 में उनका निधन हो गया।