'Nargis Dutt का जाना एक पुस्तक की समाप्ति...' एक्ट्रेस के निधन पर लेखक इंदर ने क्यों कही थी ये बात?
अभिनेत्री नरगिस दत्त की आज बर्थ एनिवर्सरी है। इस खास मौके पर उनके बेटे संजय दत्त ने एक पोस्ट शेयर की। नरगिस ने साल 1935 फिल्म तलाश-ए-हक से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। अभिनेता गुरु दत्त से उनकी मुलाकात बेहद फिल्मी थी और उन्हीं से बाद में उन्होंने शादी भी कर ली। आज आपको बताएंगे उनकी जिंदगी से जुड़ा दिलचस्प किस्सा।

कीर्ति सिंह, मुंबई।‘मदर इंडिया’ में नरगिस के पात्र राधा को अन्याय बर्दाश्त नहीं था, फिर सामने अपना बेटा ही क्यों ना हो। नरगिस असल जिंदगी में भी ऐसी ही थीं। आज यानी एक जून को नरगिस की जन्मतिथि पर उनके व्यक्तित्व के पहलुओं को याद कर रहे हैं फिल्मकार राहुल रवेल ।
मदर इंडिया के सेट पर हुई थी सुनील से मुलाकात
नरगिस के व्यक्तित्व में राजसी अंदाज था। उनका चलना, बातचीत करने का ढंग सब इतना गरिमापूर्ण था कि लोग मंत्रमुग्ध रह जाते थे। आस्कर में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि बनी ‘मदर इंडिया’ ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई, तो वहीं फिल्म ‘रात और दिन’ भी बेहतरीन थी। निजी जिंदगी की बात करें तो ‘मदर इंडिया’ के सेट पर लगी आग में सुनील दत्त जब उन्हें बचाते हुए स्वयं घायल हो गए, यहीं से एक सफल प्रेम कहानी का आरंभ हुआ। उस हादसे के बाद तो नरगिस का नियम बन गया था। जब तक सुनील दत्त ठीक नहीं हो गए, वह सुबह से रात तक रोजाना उनके साथ ही रहतीं। एक हादसे से शुरू हुई उनकी प्रेम कहानी मानो किसी स्क्रिप्ट की तरह थी, जिसमें प्रेम, त्याग, साहस, समर्पण और विछोह सब कुछ था।
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सभी से प्रेम से करती थीं बात
अभिनय से इतर भी उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व था। उनके कोमल हृदय में सभी के लिए प्रेम था, तो वहीं किसी के साथ भी अन्याय होता देख वह बर्दाश्त नहीं करती थीं। अभिनय से दूरी बनाई तो वह सामाजिक कार्यों से जुड़ गईं। मेरी मां अंजना रवेल के साथ उनकी गहरी दोस्ती थी, जिसकी वजह से भी मुझे उन्हें करीब से जानने का अवसर मिला। दोनों मिलकर सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहतीं। उस जमाने में एक बड़े निर्माता-निर्देशक थे ब्रिज सदाना, जिन्होंने ‘विक्टोरिया नं 203’ और ‘दो भाई’ जैसी चर्चित फिल्में बनाई थीं।
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अपनी सहेली सईदा की नरगिस ने की मदद
नरगिस को जब ये बात पता लगी कि पत्नी व अभिनेत्री सईदा के साथ उनका रवैया अच्छा नहीं है और बात-बात पर वह उन पर रिवाल्वर तान देते हैं,तो नरगिस और मां इसकी शिकायत लेकर पुलिस आयुक्त के पास पहुंच गईं। उन्होंने कहा कि ब्रिज जी की रिवाल्वर जब्त कर ली जाए ताकि वह सईदा को धमका ना सकें। उनकी बात का असर हुआ, एहतियात के तौर पर ब्रिज सदाना की रिवाल्वर पुलिस ने रख ली। उसके बाद सब कुछ सामान्य हो गया। कुछ दिनों बाद सईदा पुन: नरगिस से मिलीं और उन्हें बताया कि ब्रिज जी का व्यवहार उनके प्रति अब ठीक है। परिवार के साथ स्नेह के साथ रहते हैं, तो क्यों ना अब रिवाल्वर वापस कर दी जाए, क्योंकि शौक पूरा करने के लिए वह नकली रिवाल्वर रखने लगे हैं। पहले तो नरगिस नहीं मानीं, लेकिन जोर देने पर उन्होंने रिवाल्वर वापस दिलवा दी।
ब्रिज ने अपनी ही बेटी और पत्नी की कर दी थी हत्या
ये दुर्भाग्य ही रहा कि बाद में उसी रिवाल्वर से ब्रिज ने अपनी बेटी और पत्नी सईदा की हत्या के बाद स्वयं को गोली मार ली थी। नरगिस ने कभी किसी के प्रति द्वेष नहीं रखा। ऋषि कपूर की शादी में जब वह पहुंचीं,तो राज कपूर साहब और उनकी पत्नी कृष्णा जी ने बेहद आदर के साथ उनकी आवभगत की। कृष्णा जी के साथ उनकी खूब बातें हुईं। सुनील दत्त साहब और राज कपूर के परिवार में एक आत्मीयता आ चुकी थी।
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आज भी याद किया जाता है रात और दिन का वो रोल
सत्येन बोस निर्देशित फिल्म ‘रात और दिन’ में नरगिस ने जिस खूबसूरती से पात्र निभाया, वह सिर्फ वही कर सकती थीं। यह फिल्म साइकोलाजिकल ड्रामा थी, जिसमें वह दिन में संस्कारी विवाहिता के रूप में जिम्मेदारियां निभाती हैं, वहीं रात में नाइट क्लब में विचरने वाली युवती की छवि भी उन्होंने इस तरह जीवंत की कि आज भी सिनेप्रेमी याद करते हैं। अभिनय उनकी रगों में दौड़ता था, तभी लंबे ब्रेक के बाद जब उन्होंने यह फिल्म की तो उन्हें इसके लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। नरगिस का दोहरे मानकों पर यकीन नहीं था। जब वह सांसद बनीं, उसी दौरान एक बड़े अभिनेता ने धर्म परिवर्तित करके बालीवुड की बड़ी अभिनेत्री से शादी की थी।
लेखक इंदर ने कही थी बड़ी बात
नरगिस ने राज्यसभा में इस विषय को उठाया कि ऐसा करना कहां तक उचित है। हालांकि इस मामले में कुछ हुआ नहीं, पर ये नरगिस जी का दृष्टिकोण था कि सभी के लिए नियम समान होने चाहिए। जब नरगिस की मृत्यु हुई तो उनके अंतिम संस्कार के मौके पर बालीवुड की सभी बड़ी हस्तियां मौजूद थीं। किसी ने कहा कि नरगिस की मृत्यु एक अध्याय की समाप्ति है, तभी लेखक इंदर राज बोले नहीं, नरगिस का जाना तो अतुलनीय अभिनय और समाजसेवा की भावपूर्ण पुस्तक की समाप्ति है।

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